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डॉ निलिम्प त्रिपाठी भोपाल एवं डॉ ब्योमकेश त्रिपाठी भुबनेश्वर उड़ीसा

राम वनगमन पथ में रामगढ़ का महत्व विषयक वेबीनार सम्पन्न

ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, सेंटर फॉर स्टडी ऑन हॉलिस्टिक डेवलपमेंट रायपुर और दक्षिण कोशल टुडे छत्तीसगढ़ के तत्वाधान में ऑन लाईन शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया यह वेबीनार ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के संयोजक ललित शर्मा की होस्टिंग में राम वनगमन पथ में रामगढ़ का महत्व विषय पर आयोजन शाम 5:00 से लेकर 6:15 तक किया गया। इस वेबीनार के मुख्य वक्ता थे प्रोफेसर डॉक्टर निलिम्प नाथ त्रिपाठी, डॉ भास्कराचार्य त्रिपाठी शोध संस्थान, भोपाल के अध्यक्ष थे तथा संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ ब्योमकेश त्रिपाठी कुलपति उत्कल कल्चर यूनिवर्सिटी भुबनेश्वर उड़ीसा ने की।

संगोष्ठी का शुभारंभ सेंटर फॉर स्टडी ऑन हॉलिस्टिक डेवलपमेंट रायपुर के सचिव श्री विवेक सक्सेना द्वारा उपस्थित सभी विद्वानों एवं अध्येताओं के स्वागत से हुआ। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्व संगोष्ठी के आयोजन से राम बन गमन पथ में रामगढ़ के महत्व पर विषद चर्चा करने के लिए उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों का स्वागत है।

आषाढ मास के प्रथम दिन 6 जून 2020 को शनिवार को वेबिनार का आयोजन किया गया था। संगोष्ठी आयोजक ललित शर्मा ने कहा कि इस समय सरगुजा में रामगढ़ महोत्सव का आयोजन किया जाता था परंतु इस कोरोना काल में रामगढ़-महोत्सव का आयोजन नहीं किया जा सका था। ललित शर्मा ने बताया कि रामायण के ऊपर ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण 200 खंडों में प्रकाशित होगी। ललित शर्मा ने आषाढ़स्यय प्रथम दिवसे का नाम लेकर इस वेबीनार की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि रामगढ़ का भगवान राम के वन गमन से क्या नाता रहा है, उन्होंने यह भी बताया कि कालिदास जी ने मेघदूतम की रचना इसी रामगढ़ की पहाड़ी पर की थी । इसके बाद और भी जानकारी देते हुए उन्होंने वेबीनार के मुख्य प्रवक्ता डॉक्टर श्री नीलिम्प त्रिपाठी जी को आमंत्रित किया।

डॉ निलिम्प त्रिपाठी ने अपना उद्बोधन मंगलाचरण के साथ प्रारंभ किया और कालिदास जी को याद किया। उन्होंने कहा कि आज से हजारों साल पहले, जब पाश्चात्य को शौचाचार की जानकारी नहीं थी, तब भारत में संस्कृत पल्लवित हो रही थी। सम्राट विक्रमादित्य ने कवि कालिदास को उज्जैन से रामगढ़ स्थानांतरित कर दिया था। तब कालिदास ने रामगढ़ आकर यहाँ की प्रकृति से प्रभावित होकर मेघदूतम की रचना की। रामगढ़ इतिहास, पुरातत्त्व और संस्कृति इत्यादि की अनूठी संगम स्थली है । यहाँ पर तत्कालीन कलेक्टरों, अन्य विद्वानों और रोहित यादव जी आदि ने भी कई काम किया है। रोहित यादव जी ने शुक्ल अभिसारिका और कृष्ण अभिसारिका को शुक्ल और कृष्ण पक्ष को लेकर नामकरण भी किया था। उन्होंने यहाँ रामगढ़ अकादमी की स्थापना की भी बात कही।

उन्होंने बताया कि रामगढ़ त्रेतायुग की नाट्यशाला है। उस समय पर्वत उपत्यका को काटकर नाट्यशाला बनाया गया था । जिसे देखकर भरतमुनि जी को नाट्यशास्त्र की रचना की प्रेरणा मिली । उन्होंने यहाँ नाट्यशास्त्र की रचना की। सीता बेंगरा को देखकर ही भरतमुनि को नाट्यशास्त्र की रचना करने की इच्छा जागी होगी। यहाँ अप्सराएं गायकों की रुमझुम धुनों से युक्त नृत्य करती रही होंगी। इस क्षेत्र को उन्होंने तुम्दबु के राम के साथ संबंध जोड़ते हुए उनकी स्वागत करने की बात बताई। तुम्बुंद आदि का वनगमन के समय यहाँ से संबंध मिलता है।

रामगढ़, रामायण-महाभारत कालीन धरोहरों की धरती है। 3000 से अधिक फीट की ऊंचाई पर बसा रामगढ़ पहाड़, प्राचीन गुफाओं और शैल चित्रों से सुशोभित है। यह सरभंग ऋषि का आश्रम क्षेत्र था। उनके लाखों शिष्य थे। प्राचीन काल में 400 सीटों पर एक गुरु होते थे। विद्या संपन्न होने से कोई क्षेत्र संपन्न होता है विद्या से विहीन क्षेत्र संपन्न नहीं हो सकता। यक्ष उसी का होता है जिसके पास धन होता है, इस क्षेत्र पर रक्षकों का भी निवास स्थान था। यहाँ सीता बेंगरा नामक जगह पर नाट्यशाला का निर्माण किया गया था। यहाँ तक पहुँचने के लिए 180 फीट लंबी सुरंग को पार करके पहुँचना पड़ता है। जिसे हाथीगुंफा के नाम से जाना जाता है । हाथीगुंफा को पार करने पर दो गुफाएं मिलती हैं। उत्तरी गुफा को सीता बेंगरा और दक्षिणी भाग को जोगीमारा कहा जाता है। जहाँ चित्र भी बने हुए हैं।

सीता बेंगरा में माता सीता राम के साथ निवास करती थी और जोगीमारा में लक्ष्मण जी निवास करते थे। इस जगह की खोज 1903-०4 में अंग्रेजो के द्वारा की गई थी। सीता बेंगरा 44 फीट लंबा, 15 फीट चौड़ी और सामने तरफ 6 फीट की ऊंचाई तो अंदर की तरफ 4 फीट की ऊंचाई पर युक्त नाट्यशाला है। यहाँ आवाज प्रतिध्वनि न हो। इको न हो करके कई छिद्रों की निर्माण किया गया है। जहां पर्दे नुमा कपड़े टांग सकते थे। उस समय भी इकोसिस्टम को ध्यान में रखकर इस नाट्यशाला का निर्माण किया गया था। जिससे संवाद गोपनीय रह सके। वन्य जीव जंतुओं से युक्त पहाड़ी रम्य है। जहाँ नाटक होता है उसके आसपास की गुफाओ को मत्ववारिणी कहा जाता है। नाट्यशाला में खंभे गाड़ने के लिए दो छिद्र बनाए गए हैं। नाट्यशाला के पास भगवान राम के 2 पद चिन्ह अंकित हैं।

उन्होंने कहा कि शब्द है तो संवाद होता है, अंतह में प्रेम है तो विश्वास होता है। श्रद्धा जब प्रगाढ़ होती है तो आस्था प्रकट होती है। महाकवि कालिदास इन चरणों की आराधना करते रहे होंगे। रघुपति के पद चरणों पर निरंतर ध्यान लगाते रहे होंगे। डॉक्टर वि वि मिराशी जी ने नागपुर के पास रामटेक को कालिदास जी की मेघदूतम् की रचना स्थल बताया था उन्होंने बताया कि वहां दो खड़ाऊ है जिससे स्पष्ट होता है कि रामटेक ही रामगिरि पहाड़ है। जहाँ पर कालिदास ने मेघदूतम् की रचना की होगी। परंतु रामटेक प्राकृतिक रूप से इतना सुंदर स्थान नहीं है जितनी सुंदर रामगढ़ में की उपत्यकाओं में है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता अनुपम है। राम ने यहाँ वन गमन के 10 वर्ष की लंबी अवधि इस क्षेत्र पर बिताई है। यहां के वन दण्ड की तरह है इसलिए इस क्षेत्र को दंडकारण्य कहते हैं। राम ने नर्मदा को कभी पार नहीं किया। इसलिए रामटेक रामगिरि नहीं हो सकता है। रामगढ़ ही रामगिरि है। रामगिरि की प्राकृतिक सुंदरता हृदय को छूती है। काव्य अपने आह्लाद से ही प्रकट होता है। काव्य वह है जो अनायास फूट पड़े, मेघदूतम् वह काव्य है, जिसमें काव्य आत्मा को छू जाता है।

यहाँ सूतनुका का उल्लेख करना भी आवश्यक है । यहाँ सुतनुका नाम की एक देवदासी थी जिसको लुपदख से प्यार हो गया था। आज भी नायक नायिका कहीं भी जाते हैं तो चट्टानों पर अपना नामअंकन कर जाते हैं। यह परंपरा आज की नहीं है। यह अत्यंत प्राचीन परंपरा है। ऐसे ही सूतनुका और लुपदख की प्रेम की कहानी जोगीमारा में भी उत्कीर्ण हुई है। रामगढ़ पहाड़ में अनेक प्रकार की औषधियां हैं। बांसों के झुरमुट है हाथियों का झुंड इस क्षेत्र पर विचरण करते हैं। धान के कटोरा इस क्षेत्र को कहा जाता है और यह अत्यंत प्राचीन काल से ही है।

महाकवि कालिदास जी की रचना को आधार मानकर, यहां की संस्कृति, रचना आदि को ध्यान में रखकर इस क्षेत्र को समुन्नत बनाने की अपील भी उन्होंने की। सीता जी के पवित्रस्नान युक्त जल वहाँ से बहता है। यक्ष अपने कर्तव्य से च्यूत हो गया था। तब यही उसने निवास किया था। यह जब तब हमारे व्यवहार में नहीं आएगा तब तक हम इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर के केंद्र नहीं बना सकते हैं। क्षेत्र की भाषा संस्कृति आदि को समुन्नत बनाए जाने की प्रयास होना चाहिए। निरंतर इस पर बात की जाए। यहाँ लोक कल्याणकारी योजनाएँ लानी चाहिए। जिस प्रकार लोक कल्याण करने के लिए दधीचि हुए, उसी प्रकार भास्कराचार्य, चरक, भारद्वाज जिन्होंने विमान की रचना की, लोग कहते हैं कि राइट ब्रदर्स ने विमान बनाया जबकि भारद्वाज मुनि ने विमान की रचना पहले ही कर ली थी। भारत में विमानों की रचना हुई। रामायण में पुष्पक विमान का उल्लेख है। पतंजलि ने योग दर्शन आदि को उजागर किया। वशिष्ठ, विश्वामित्र ,अगस्त आदि ऋषियों की यह भूमि रही है। सरभंग ऋषि का हम स्मरण करते हैं। हम अपने धर्म और कर्तव्य के प्रति समर्पित रहेंगे तो ही कुछ कर पाएंगे। पाश्चात्य् देश में भूख हैं पर हमारे देश में त्याग हैं। जब भगवान राम ने लंका विजय प्राप्त की तब सभी उत्साहित थे। सोने से बने हुई लंका में रहने के लिए राम को आमंत्रित किया गया। तब राम ने कहा कि यद्यपि लंका सोने की बनी हुई है फिर भी अपनी मातृभूमि से बड़ी नहीं है। इस क्षेत्र का रामगढ़, डीपाडीह, महेशपुर आदि का मान हमें करना चाहिए। राम के चरण चिन्हों और राम दूतों को हम प्रणाम करते हैं। इस प्रकार उद्बोधन करते हुए उन्होंने रामगढ़ और उनसे जुड़े हुई अनेक बातों को अपने शोध आलेख में कहा।

वेबीनार के होस्ट ने श्री ललित शर्मा ने आज के इस वेबीनार के अध्यक्ष डॉक्टर ब्योमकेश त्रिपाठी जी को अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया। डॉक्टर व्योमकेश त्रिपाठी जी उत्कल कल्चरल यूनिवर्सिटी भुवनेश्वर उड़ीसा के कुलपति हैं और वे इस क्षेत्र पर वर्षों से आते-जाते रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव के रूप में बताया कि छत्तीसगढ़ प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। जो राम से जुड़ा हुआ था। इसे राम के वनगमन के दक्षिणा पथ से जोड़ा जाता है। यह क्षेत्र समुद्रगुप्त के दक्षिण अभियान से भी जुड़ा है। यह ट्रेड रूट भी था। रामगढ़, राम से भी जुड़ा है। राम के लिए, हर समय, हर काम को हम तैयार हैं।

ललित जी ने राम-काज के लिए जुड़ने के लिए कहा। इतिहास का आदमी, इतिहास और पुरातत्व को लेकर हलचल करना चाहता है, तो एंथ्रोपोलॉजी वाले स्मारक को देखते ही अपना काम करते हैं। इतिहास के अध्ययन को भारत के इतिहासकारों ने सही नहीं लिखा है। छत्तीसगढ़ के इतिहास लिखने के लिए रामगढ़ गेटवे बन सकता है।

रामगढ़ उत्तर और दक्षिण दोनों से ही जुड़ा है, इतिहासकार स्रोत पूछते हैं। राम का स्थापत्य साँची में सामंत जातक के रूप में आता है। जिसमें दशरथ की एक कथा है। मध्य प्रदेश के कई मंदिर, पन्ना के पास नचना कुठारा, उत्तर प्रदेश में मंदिरों में राम पैनल बनाए गए हैं। राम पैनल पांचवी छठवीं शताब्दी से 18 व 19 वीं शताब्दी तक अनेक मंदिरों में बनाए गए। जांजगीर के विष्णु मंदिर में रावण पैनल बनाए गए हैं। तो कई शिव मंदिरों में भी राम पैनल बनाए गए हैं। गुप्त काल के बाद छत्तीसगढ़ के मंदिरों में रामायण पैनल मिलने लगे थे।

बिहार में एक दशरथ गुफा है। यहाँ पहली बार लेख मिला है जो दशरथ से जुड़ा है। राम से जुड़ा है। लोकल ट्रेडिशन को समझने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ में सोने के सिक्के में उड़ता हनुमान दिखता है। मध्यकाल में राम टंका में राम राम दरबार दिखता है। बस्तर, तुरतुरिया आदि जगह राम से जुड़ा है। सबको जोड़ कर राम का इतिहास बनाया जाए। तब छत्तीसगढ़ के इतिहास को समझ सकते हैं।

घर में बैठकर इतिहास नहीं लिखा जा सकता है। ऐसे ही एक उदाहरण है, ललित शर्मा जी सब जगह जा जाकर, वहाँ की संस्कृति को जोड़कर, इतिहास लिखते रहे हैं, जो सराहनीय है। महानदी को छोड़कर बस्तर क्षेत्र राम से जुड़ा हुआ है। बैगा, गौड़ आदि की ट्रेडिशन में राम के इतिहास को खोजने की आवश्यकता है। राम का बस्तर के साथ सीधा जुड़ाव है। छत्तीसगढ़ का गेटवे रामगढ़ है। छत्तीसगढ़ के इस महत्वपूर्ण भाग 2000 से 2300 साल में थिएटर के रूप में बनाया गया था। यहाँ सीता बेंगरा के साथ जोगीमारा और हाथीगुंफा भी जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र की स्टडी होलिस्टिक होना चाहिए । आर्ट, ट्रेडिशन, कल्चर, एन्थरोपोलाजी आदि को जोड़ा जाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में रामनामी संप्रदाय हैं। राम का इतिहास लिखने के लिए होलिस्टिक इतिहास एंथ्रोपोलॉजी आदि को जोड़कर इतिहास लिखा जाना चाहिए। राम का नाम शुभ होता है। राम काज शुभ होता है। रामगढ़ की खोज होना चाहिए कल्चरल पुरातत्त्व आदि को जोड़कर, होलिस्टिक ज्ञान को विकसित करना चाहिए। संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन किया जाना चाहिए। भारत की संस्कृति को दुनिया के पटल में पहुँचाने के लिए एक प्रयास होना चाहिए। छत्तीसगढ़ का वनाँचल इतिहास और पुरातत्व से अत्यंत समृद्ध है। जो देश की किसी भी वनाँचल के पुरातत्त्व और इतिहास से कम नहीं है। अंत में डाक्टर ब्योमकेश त्रिपाठी ने सबको धन्यवाद दिया फिर कार्यक्रम के होस्ट ललित शर्मा ने डॉ नीलिम्प त्रिपाठी और डॉक्टर व्योमकेश त्रिपाठी एवं उपस्थित सभी जनओं का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया।

इस वेबीनार में प्रदेश के बाहर के विद्वान एवं अध्येता उपस्थित थे, जिनमें डॉ शैलेन्द्र सर्राफ़, डॉ सतीश देशपाण्डे, अशोक तिवारी, डॉ नितेश मिश्रा, डॉ पुरषोत्तम चंद्राकर, शुभा रजक, वेद राजपूत, रायपुर, श्रीमती संध्या शर्मा, लखेश चंद्रवंशी, हेमंत केतकर नागपुर, श्रीमती कविता वर्मा इंदौर, डॉ प्रताप पान्डेय, बिलासपुर, हरि सिंह क्षत्री कोरबा, गिरीश गुप्ता, अरविंद मिश्रा, श्रीमती रेखा पाण्डेय, शिरीष मिश्रा, अनिता मंडिलवार, डॉ मोहन साहू, राजनारायण द्विवेदी, श्रीमती गीता द्विवेदी, अजय चतुर्वेदी, सपन सिन्हा, सरगुजा सहित अनेक विद्वान एवं अध्येता प्रमुख थे।

रिपोर्टिंग

हरि सिंह क्षत्री
कोरबा

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