Home / संस्कृति / लोक संस्कृति / पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता हरेली तिहार

पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता हरेली तिहार

प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त कर करने के लिए छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है हरेली का त्यौहार। छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली सावन मास की अमावस्या को मनाया जाता है। खेती किसानी का काम जब संपन्न हो जाता है और इस दिन कृषि औजारों को साफ कर उनकी पूजा की जाती है।

हरेली की अलसुबह नीम की डाली हर घर के दरवाजे में लगाने बच्चे आ जाते हैं। लोहार अनिष्ट की आशांका से बचाने के लिए दरवाजे की चौखट पर खींल ठोक जाते हैं। फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए दइहान में गांव वाले पूजा अर्चना करते हैं।

छत्तीसगढ़ के हर गांव में इस दिन ग्राम देवता को पूजा जाता है। ठाकुर देव, बूढ़ादेव साहाड़ा देव, रामदेव, खेत -खलिहान के देवों का आव्हान कर उन्हें पूजा जाता है। गांव की सीमा जहां समाप्त होती है वहां पर दूसरे गांव के पुरुष जा कर पूजा करते हैं इसमें बैगा की प्रमुख भूमिका होती है।

होम, धूप दीप, नैवेद्य में नारियल लेकर ग्राम देवता का आह्वान किया जाता है। बैगा गांव की चारों दिशाओं में होम,धूप देते हुए प्रार्थना करता है कि गांव की सीमा के अंदर कोई महामारी आदि नहीं आए। गांव हमेशा हरा भरा रहे। गांव बंधन कर के चारों दिशाओं में हल को गाड़ा जाता है। हल कृष्ण के बड़े भाई बलराम का अस्त्र है जो रक्षा करता है।

पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए औषधि युक्त आहार आटे में मिलाकर खिलाने की रस्म भी इसी दिन होती है। औषधि में दशमूल की पत्तियां, बगरंडा,भेलवा की टहनी, नीम आदि को लिया जाता है।

हरेली में गेड़ी पर चढ़कर बच्चे, युवा गांव की गलियों में निकल पड़ते हैं। कीचड़ से बचते हुए गेड़ी में चढ़कर अपने करतब दिखाते हैं तो गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता भी होती है। हर्ष उल्लास के साथ तरह तरह के खेल कहीं नारियल फेंक प्रतियोगिता, कहीं गेड़ी दौड़ जैसे परंपरागत खेल होते हैं।

हरियाली अमावस्या का त्यौहार पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। पूरे भारत में हरियाली अमावस्या का त्यौहार अपने- अपने रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में हराला त्यौहार मनाया जाता है। मध्यप्रदेश में मालवा, मेवाड़, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिम इलाकों के साथ हरियाणा व पंजाब में भी हरियाली अमावस्या का त्यौहार मनाया जाता है।

गांव ही नहीं कई शहरों में हरियाली अमावस्या के दिन मेले सज उठते हैं जिसमें सभी वर्ग के लोग उत्सव में शामिल हो आनंद से त्योहार मनाते हैं। हरेली प्रकारान्तर से प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हुए प्रकृति को सहेजने का पर्व है जिसमें मानव जीवन उत्थान समाहित है।

आलेख

श्री रविन्द्र गिन्नौरे भाटापारा, छतीसगढ़

About hukum

Check Also

बारहमासी लोकगीत : छत्तीसगढ़

लोककला मन में उठने वाले भावों को सहज रुप में अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *