गुरु नानक देव जी का जन्मदिन प्रति वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। गुरु नानक देव सिख धर्म के प्रथम गुरु हैं। सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव ने ही की थी। गुरु नानक देव ने अपने पारिवारिक जीवन के सुख का ध्यान न करते हुए कई जगहों पर यात्राएं कीं। इस दौरान इन्होंने लोगों के मन में बस चुकी कुरीतियों को दूर करने की दिशा में काम किया।
कहा जाता है कि जिस वर्ष गुरुनानक जी का जन्म हुआ था उस दिन 12 नवंबर, मंगलवार था। इसी खुशी में गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। गुरू नानक देव बचपन से ही शांत प्रवृति के थे। वह बचपन में आंखें बंद कर ध्यान और चिंतन में लगे रहते थे। यह देख उनके माता-पिता को चिंता होने लगी।
एक बार गुरु नानक के पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल भेज दिया। वहां पर नानक देव ने ऐसे प्रश्न अपने गुरु से किए वो निरुत्तर हो गए। गुरू नानक देव के ज्ञान को देख उनके गुरु इस निष्कर्ष पर पहुंचे की उन्हें ईश्वर ने ज्ञान देकर इस धरती पर भेजा है।
कहा तो यह भी जाता है कि गुरू नानक देव को एक मौलवी के पास भी पढ़ने के लिए भेजा गया था। लेकिन वो भी उनकी जिज्ञासा शांत नहीं कर पाए। अपने विवाह के कुछ समय बाद ही गुरू नानक देव अपना घर-द्वार छोड़कर अन्य देशों में भ्रमण के लिए चले गए थे।
इनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य हैं। गुरू नानक देव ने इन देशों में लोगों को घूम-घूमकर उपदेश दिया। साथ ही पंजाब में कबीर की निर्गुण उपासना का प्रचार किया। इससे ही वो सिख संप्रदाय के गुरू बने। माना जाता है कि इसी समय से नानक देव सिखों के पहले गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है, इस दिन सारे गुरुद्वारों में रोशनी की जाती है और लंगर प्रसाद बांटा जाता है। गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस को सिर्फ़ सिख समाज ही नहीं वरन हिन्दू समाज भी उसी श्रद्धा के साथ मनाता है। हम आपको भारत के प्रसिद्ध गुरु द्वारों के भी दर्शन करवा रहे हैं।
पंजाब प्रांत के अमृतसर में बना स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब सिंह के नाम से भी जाना जाता है। यह गुरुद्वारा पूरे संसार में अपनी खूबसूरती के चलते प्रसिद्ध है। इस गुरुद्वारे की दीवारे सोने की बनी हुई है। इस गुरुद्वारे की स्थापना महाराजा रणजीत सिंह ने की थी।
सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह नें इस गुरद्वारे का निर्माण किया था। यह गुरुद्वारा उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और पहाड़ों और झील के किनारे पर बना है।
देश की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित गुरुद्वारे शीशगंज को बघेल सिंह ने सिख धर्म के नौवें सिख गुरु तेग बहादुर की शहादत की याद में बनवाया था। यह वही स्थान है जहां बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर के इस्लाम स्वीकार न करने पर उनकी हत्या करवा दी थी।
फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा साहिबजादा फतेह सिंह और जोरावर सिंह की शहादत की याद में बनवाया गया था। यह गुरुद्वारा वास्तुकला का एक नायाब नमूना है।
यह गुरुद्वारा नई दिल्ली के बाबा खड़गसिंह मार्ग पर स्थित है। इस गुरुद्वारे का निर्माण राजा जय सिंह ने करवाया था। सिखों के आठवें गुरु हरकिशन सिंह के द्वारा यहां पर किए गए चमत्कारों की याद में यह गुरुद्वारा काफी प्रसिद्ध है। सिखों और हिन्दुओं दोनों के लिए यह एक पवित्र स्थान है।
हजूर साहिब गुरुद्वारा महाराष्ट्र के नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इसी स्थान पर सन 1708 में गुरु गोविंद सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था। महाराजा रणजीत सिंह ने बाद में इस गुरूद्वारे का निर्माण किया था।
इस स्थान पर गुरु गोविंद सिंह जी ने जीवन के चार साल बिताए थे और दसवें ग्रंथ की रचना की थी।
यह गुरुद्वारा पंजाब के बटिंडा में दक्षिण-पूर्व के तलवंडी सबो गांव में स्थित है। गुरु गोविंद सिंह जी यहां आकर रुके थे और यहां आकर उन्होंने मुगलों का सामना किया था।
पटना साहिब सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का जन्मस्थान है। महाराजा रंजीत सिंह ने इस गुरुदारा का निर्माण करवाया था। यह गुरुद्वारा स्थापत्य कला का सूंदर नमूना है।
मणिकरण गुरुद्वारा को लेकर ऐसी मान्यता है कि सिखों के पहले गुरु नानकदेव ने इसी स्थान पर ध्यान लगाया था। यह पहाड़ियों के बीच बना बहुत सुंदर गुरुद्वारा है।
आलेख एवं चित्र
हिन्दूस्थान से साभार