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स्वर्ण मंदिर की नींव रखने वाले गुरु श्री अर्जुन देव

सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव साहिब का जन्म वैशाख वदी 7, संवत 1620 तिथि को अमृतसर में हुआ था। जो कि 2024 में 30 अप्रेल के दिन है। इनके पिता सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास जी थे। अर्जुन देव जी का धर्म के प्रति समर्पण, निर्मल हृदय और कर्तव्यनिष्ठा को देखकर 1581 में उन्हें पांचवें गुरु के रुप में गद्दी दी गई।

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव रखी और नक्शा तैयार किया –
अर्जुन देव जी ने 1570 ईस्वी में गुरू रामदास द्वारा निर्मित अमृतसर तालाब के बीच में हरमंदिर साहिब नामक गुरूद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे वर्तमान में स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस गुरूद्वारे की नींव लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिलाई गई थी। माना जाता है कि लगभग 400 साल पुराने इस गुरूद्वारे का नक्शा खुद गुरूअर्जुन देव जी ने तैयार किया था।

गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्पादन किया –
गुरुद्वारा रामसर साहिब वाली जगह गुरु साहिब ने 1603 में भाई गुरदास से बाणी लिखवाने का काम शुरू किया था। जो 1604 में संपन्न हुआ। इसके बाद उसे आदि ग्रंथ नाम दिया गया। गुरु अर्जुन देव ने इसमें बिना कोई भेदभाव किए तमाम विद्धानाेें और भगताें की बाणी शामिल करते हुए श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का संपादन का काम किया। उन्होंने रागों के आधार पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का वर्गीकरण किया है।

माना जाता है कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब में 2 हजार से ज्यादा शब्द श्री गुरू अर्जुन देव जी के हैं, जबकि अन्य शब्द भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास, भक्त धन्ना जी, भक्त पीपा जी, भक्त सैन जी, भक्त भीखन जी, भक्त परमांनद जी, संत रामानंद जी के हैं। इसके अलावा सत्ता, बलवंड, बाबा सुंदर जी तथा भाई मरदाना जी व अन्य 11 भाटों की बाणी भी गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज है।

गुरु अर्जन देव जी ने किया पहला प्रकाश –
गुरु अर्जन देव जी ने 1604 में दरबार साहिब में पहली बार गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया था। 1430 अंग (पन्ने) वाले इस ग्रंथ के पहले प्रकाश पर बाबा बुड्ढा जी ने बाणी पढ़ने की शुरुआत की। पहली पातशाही से छठी पातशाही तक अपना जीवन सिख धर्म की सेवा को समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा जी इस ग्रंथ के पहले ग्रंथी बने।

गुरु अर्जुन देव शहादत दिवस-
मुगल शासक जहांगीर के आदेश के मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया।

सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी महाराज को मुगल बादशाह जहांगीर ने 1606 को लाहौर में शहीद कर दिया गया था। शहीदी के समय मिंया मीर ने गुरु अर्जुन देव जी से पूछा कि आपके शरीर पर छाले पड़ रहे हैं। इसके बावजूद आप शांत हैं। तब गुरु अर्जुन देव ने कहा था कि जितने जिस्म पर पड़ेंगे छाले, उतने सिख होंगे सदके वाले। यानि मेरे शरीर में जितने छाले पड़ेंगे, उतने हजारो-करोड़ों सदके वाले सिखों का जन्म होगा।

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