संत गहिरा का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले के उड़ीसा से लगे गहिरा गांव में सावन महीने की अमावस के दिन हुआ था, इनका मूल नाम रामेश्वर था , गुरू जी सनातन धर्म, जिसे सच्ची मानवता का धर्म कहा जाता है, के प्रवर्तक थे।
गुरूजी ने छत्तीसगढ़ में जहाँ अपने धार्मिक स्थल को संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति साथ दिया था, वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिया। इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित थे।
संतों में ज्ञान और भक्ति दोनों होती है। संतों का ज्ञान परमात्मा के विषय में निजी अनुभवों पर आधारित होता है। वह जगत में सर्वत्र भगवान को देखता है, उसका प्रेम मंदिर में स्थित मूर्ति तक सीमित नहीं होता बल्कि समस्त विश्व में प्रवाहित होता है, उसका प्रेम विश्वजनी है, उसमें सर्वोच्च दर्शन, तीव्र भक्ति और संपूर्ण अहंकार शून्यता रहती है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश ऐसे अनन्य संतों की जन्मस्थली और कार्यस्थली रही है। सतयुग में महर्षि मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम शिवरीनारायण क्षेत्र में था, यहाँ शबरी निवास करती थी। उनका उद्धार करने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण यहाँ आये थे। उनकी स्मृति में शबरीनारायण बसा है।
गहिरा गुरु एक सन्त एवं समाजसुधारक थे जिन्होने छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के आसपास के वनवासी क्षेत्रों में के बीच कार्य किया। सन १९४३ में उन्होने “सनातन धर्म सन्त समाज” की स्थापना की।
वे उत्तरी छत्तीसगढ़ में सामाजिक चेतना के अग्रदूत थे उन्होंने उत्तरी छत्तीसगढ़ के अविभाजित सरगुजा, जशपुर, कोरिया, रायगढ़ सहित पड़ोसी राज्य झारखण्ड, उत्तरप्रदेश से लगे क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के साथ अन्य समाज में सामाजिक चेतना और जागरूकता लाने में अहम योगदान दिया।
वे जंगल में दूर एकांत में बैठकर चिंतन-मनन करते थे। उन्होंने लोगों को प्रतिदिन नहाने, घर में तुलसी लगाने, उसे पानी देने, श्वेत वस्त्र पहनने, गांजा, मासांहार एवं शराब छोड़ने, गौ सेवा एवं खेती, रात में सामूहिक नृत्य के साथ रामचरितमानस की चौपाई गाने हेतु प्रेरित किया।
प्रारम्भ में अनेक कठिनाई आयीं; पर धीरे-धीरे लोग बात मानकर उन्हें ‘गाहिरा गुरुजी’ कहने लगे। वे प्रायः यह सूत्र वाक्य बोलते थे – ” चोरी दारी हत्या मिथ्या त्यागें, सत्य अहिंसा दया क्षमा धारें।
गहिरा गुरु ने अपने कार्य के कुछ प्रमुख केंद्र बनाए जिनमें से गहिरा ग्राम, समरबार, कैलास गुफा और श्रीकोट है, श्रीकोट एक तीर्थ के रूप में विकसित स्थल है। विद्वान एवं संत वहाँ आने लगे है
संत गहिरा गुरु ने सभी जन समुदाय को सार्वजनिक जीवन-जीना सिखाया, सनातन समाज की रक्षा और मानवता के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वे सत्य, शांति, दया, क्षमा जैसी विचारधारा का समर्थन करते हुए इसे आगे बढ़ाया और सामाजिक बुराइयों एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
गहिरा गुरु के विचार केवल वनांचल के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए है। गुरु जी ने अपने जीवन काल में जो महत्वपूर्ण कार्य किये ,गुरुजी ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विद्यालय की स्थापना की और समाज से कुरीतियों को दूर किया।
सामाजिक सेवा करने का उपदेश दिया। वनवासी धीरे धीरे उनके अनुयायी बनते गये, कैलास गुफा उनका निवास और लोगों के लिए एक तीर्थ बन गया। 35 वर्ष की आयु में उनका पूर्णिमा के साथ पाणिग्रहण हुआ ।
धीरे धीरे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गयी और नेता, अभिनेता सभी उनके दर्शन लाभ के लिए गहिरा आश्रम आने लगे। यहाँ संस्कृत विद्यालय खोला गया। सामर बहार, श्री कैलास नाथेश्वर गुफा और श्री कोट में संचालित संस्कृत विद्यालय में लगभग 800 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
सांकरवार में इस आश्रम का मुख्यालय है। उनकी सेवा के कारण मध्यप्रदेश शासन द्वारा 1986 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2005 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सामाजिक सेवा पुरस्कार प्रदान किया है।
गहिरा गुरु समाज सुधारक महान तपस्वी दार्शनिक संत थे, सनातन समाज की रक्षा और मानवता के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे सत्य, शांति, दया, क्षमा जैसी विचारधारा का समर्थन करते हुए इसे आगे बढ़ाया और सामाजिक बुराइयों एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
भूतपूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जी ने अंबिकापुर सरगुजा विश्वविद्यालय को संत गहिरा विश्वविद्यालय नाम से अलंकृत किया, गहिरा गुरु जी सादगी और निस्वार्थ सेवा-गुणों में विश्वास करते थे जो उन्हें मानवता के प्रति समर्पण के प्रतीक के रूप में अलग खड़ा करते हैं।
उनके जीवन के अन्दर जागृति, जन्म और भौतिकवाद से दूरदर्शिता सीखकर केवल नियंत्रण ही किया जा सकता था। मन और मुक्ति और आत्मज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए। वह एक महान संत थे, जो अपने शिष्यों को संस्कारों से पवित्रता की ओर, घृणा से निरंतर प्रेम की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और दुःख से आनंद की ओर ले गए थे।
गहिरा गुरु जी सादगी और निस्वार्थ सेवा-गुणों में विश्वास करते थे जो उन्हें मानवता के प्रति समर्पण के प्रतीक के रूप में अलग खड़ा करते हैं। उनके जीवन के अन्दर जागृति, जन्म और भौतिकवाद से दूरदर्शिता सीखकर केवल नियंत्रण ही किया जा सकता था। मन और मुक्ति और आत्मज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए। वह एक महान संत थे, जो अपने शिष्यों को संस्कारों से पवित्रता की ओर, घृणा से निरंतर प्रेम की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और दुःख से आनंद की ओर ले गए थे।
वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने को जाति-धर्म, गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है और उस ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया है। धर्म एक पवित्र अनुष्ठान भर है, जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है।
धर्म मनुष्य में मानवीय गुणों के विचार का स्रोत है, जिसके आचरण से वह अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। मानवता के लिए न तो पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है और न ही भावना की, बल्कि सेवा भाव तो मनुष्य के आचरण में होना चाहिए। जो गुण व भाव मनुष्य के आचरण में न आए, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है।
युगों-युगों से संत-सतगुरु इस सृष्टि पर अवतरित होते रहे हैं। क्योंकि संत-महापुरुष सृष्टि का आधार होते हैं, उनके बिना सृष्टि का आधार ही नहीं है। संतों की पवित्र हजूरी में ही मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं का समाधान करने में सफल हुआ है।
उनका आश्रय लेकर ही मनुष्य महा मनुष्य बन सका है। इतिहास में नजर डालें तो ऐसे कितने ही श्रेष्ठ उदाहरण मिलते हैं कि पाप-कर्माें में डूबे इन्सान संतों की शरण लेकर भक्तों का दर्जा हासिल कर गए और अन्य लोगों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत साबित हुए।
संदर्भ
1.अक्षर वार्ता सन 2023
2.कल्याण पत्रिका सन 2020, 3. अखंड ज्योति सन 2023, 4. कल्याण सन 2023
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