महिषासुर राक्षस का उल्लेख देवी भागवत में हुआ है, जिसका संहार देवी दुर्गा ने किया था। वह पहाड़ी कन्दराओं एवं बीहड़ जंगलों में विचरण करता था । देवी भागवत में उपर्युक्त सभी कथाओं का वर्णन तो है, लेकिन महिषासुर का उद्भव कहाँ हुआ था? तथा उसका मर्दन किस स्थान पर हुआ था ? आदि का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु यह उल्लेख जनश्रुतियों और किंवदन्तियों में मिलता है।
कौन था महिषासुर
देवी भागवत में उल्लेखित कथा के अनुसार पौराणिक काल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ वर्षों तक घोर संग्राम हुआ था । इस युद्ध में असुरों के स्वामी महिषासुर थे और देवताओं के नायक इन्द्र थे । मायावी राक्षस महिषासुर समस्त देवताओं को पराजित कर स्वर्ग का अधिपति बन बैठा तथा देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर दिया।
इतना ही नहीं वह देवताओं को तरह-तरह से सताने भी लगा । देवताओं में हा-हा कार मच गया, पीड़ित देवताओं ने करुण नाद के साथ माँ आदि शक्ति की स्तुति की । तब समस्त देवताओं की समन्वित शक्ति लेकर माँ दुर्गा प्रकट हुई और महिषासुर का मर्दन कर देवताओं की रक्षा की ।
महिषासुर राक्षस पहाड़ी कन्दराओं एवं बीहड़ जंगलों में विचरण करता था । देवी भागवत में उपर्युक्त सभी कथाओं का वर्णन तो है, लेकिन महिषासुर का उद्भव कहाँ हुआ था ? तथा उसका मर्दन किस जगह पर हुआ था ? आदि का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता ।
बस्तर (दंडकवन) में महिषासुर
महाभारत कालीन महाकान्तार और रामायण कालीन दण्डक वन को ही आज बस्तर कहा जाता है। क्षेत्र में पीढ़ियों से प्रचलित जनश्रुतियों और दन्त कथाओं के अनुसार बस्तर के बीहड़ पर्वत श्रृंखलाओं में महिषासुर विचरण करता था । केशकाल की सुरम्य घाटी से लेकर बस्तर की पूर्व राजधानी ग्राम बड़ेडोंगर तक पहाड़ियों की लम्बी श्रृंखला है ।
इन्हीं पहाड़ियों में से महिषासुर को खदेड़ती हुई माँ दुर्गा बड़ेडोंगर के एक पहाड़ी पर पहुँची । जहाँ महिषासुर एवं माँ दुर्गा के बीच नौ दिन नौ रात तक घमासान द्वन्द्व युद्ध हुआ और द्वन्द्व युद्ध में अन्ततः महिषासुर मारा गया । आज भी इस पहाड़ी को महिषा द्वन्द्व पहाड़ी, या स्थानीय बोली में भैंसा दोंद डोंगरी के नाम से जाना जाता है ।
मायावी महिषासुर बड़े डोंगर पर
कथानुसार महिषासुर क्षण-क्षण रुप बदल कर, अनेक छद्म रुपों में लड़ता था । आलोर के लिंगई डोंगरी और पीला डोंगरी के चट्टानों पर दैत्याकार महिषासुर के विशालकाय पैरों के निशान अंकित हैं। बड़ेडोंगर पहुँच कर महिषासुर राक्षस, भैंसा का रुप धारण कर लिया ।
महिषा द्वंद्व पहाड़ी के नीचे चट्टान पर भैंसा के खुर के निशान आज भी स्पष्ट देखे जा सकते हैं, इस स्थान को भैंसा खोज के नाम से जाना जाता है । ऊपर चढ़ने पर पहाड़ी के मध्य में चट्टानी मैदान है, देवी मन्दिर से लेकर चट्टानी मैदान तक सफेद रेखा बनी हुई है, इन रेखाओं को रथ के निशान बताये जाते हैं ।
महिषासुर का वध स्थल
चट्टानों पर अनेक गड्ढे बने हुए हैं, ये गड्ढे युद्ध के दौरान महिषासुर के खुर से बने हैं । बताया जाता है कि इसी स्थान पर माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच द्वन्द्व युद्ध हुआ था । कुछ ऊपर चढ़ने के बाद पत्थरों पर भी गड्ढे बने हुए हैं, इन्हें माँ दुर्गा की सवारी, शेर के पंजों के थपेड़ों के निशान बताये जाते हैं ।
यहाँ से ऊपर कुछ ही दूरी पर पहाड़ी की चोटी है, जहाँ माँ दुर्गा ने मायावी राक्षस महिषासुर का वध किया था । पहाडी के इस अंतिम शिखर पर माँ महिषासुर मर्दिनी के पद चिन्ह अंकित हैं । क्षेत्र के ग्रामीण माताजी के चरण चिन्हों की श्रद्धापूर्वक पूजा कर अक्षत, पुष्प एवं मुद्रा (सिक्का) अर्पित करते हैं ।
आलेख एवं छायाचित्र