वर्तमान बस्तर को पहले चक्रकाट, महाकान्तार, महावन, दण्डकारण्य, आटविक राज्य आदि नाम से संम्बोधित किया जाता था। अचल में प्रचलित एक किंवदन्ती के अनुसार वारंगल के राजा प्रताप रुद्रदेव का भाई अन्नमदेव राज्य स्थापना की नीयत से यहां आया तो बाँस तरी में (बाँस झुरमुट के नीचे) अपना पहला पड़ाव …
Read More »दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में नृत्य एवं वाद्यों का शिल्पांकन
ऐसा कौन अभागा है, जिसे गायन, वादन, नृत्य दर्शन एवं संगीत श्रवण न रुचता होगा। प्रकृति में चहूं ओर संगीत भरा पड़ा है, कहीं शुन्यता नहीं है। इसी संगीत से मनुष्य ने भी स्वयं को जोड़ा एवं विभिन्न ध्वनियों के लिए वाद्य निर्मित किए एवं स्वयं को उसकी लय-ताल में …
Read More »जानो गाँव के प्रस्तर शिल्पकार
बचपन की यादें जब स्मृतियों में आकार लेती हैं, तो मन कौतूहल और प्रसन्नता से भर जाता हैं। बचपन यादों का पिटारा है, जिनमें रंग-बिरंगी और मजेदार यादें समाहित रहती हैं। अवसर पाकर ये यादे हमारी आँखों के सामने नाचने लगती हैं। जब हम छोटे थे तो सभी बच्चे परस्पर …
Read More »छत्तीसगढ़ी लोक शिल्प : कारीगरी
भारतीय संस्कृति की प्रवृति बड़ी उदात्त है। वह अपने संसर्ग में आने वाले तत्वों का बड़ी उदारता के साथ अपने आप में समाहित कर लेती है। संस्कृति का यही गुण भी है। जो सबको अपना समझता है, वह सबका हो जाता है। हमारी संस्कृति इसी गुण के कारण विश्व में …
Read More »भारतीय हस्तशिल्प: रचनात्मकता और कलात्मकता का अनूठा संगम
भारत का हस्तशिल्प/ परम्परागत शिल्प विश्व प्रसिद्ध है, प्राचीन काल से ही यह शिल्प विश्व को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर करता रहा है। तत्कालीन समय में ऐसे शिल्पों का निर्माण हुआ जिसने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। नवीन अन्वेषण प्राचीन काल में परम्परागत शिल्पकारों द्वारा होते रहे हैं। …
Read More »महाभारत के लेखक फ़ाउंटेन पेन के अविष्कारक
यम द्वितीया या भाई दूज के दिन ही चित्रगुप्त पूजा होती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त पूजा होती है। दिवाली के बाद चित्रगुप्त पूजा का खास महत्व होता है। चित्रगुप्त की पूजा प्राचीन काल से ही होती है लेकिन गुप्तकाल में इनके पूजा को …
Read More »पहाड़ी कोरवाओं की आराध्या माता खुड़िया रानी एवं दीवान हर्राडीपा का दशहरा
दक्षिण कोसल में शाक्त परम्परा प्राचीन काल से ही विद्यमान है, पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त सप्त मातृकाओं, योगिनियों तथा महिषासुर मर्दनी की प्रतिमाएं इसका पुष्ट प्रमाण हैं। अगर हम सरगुजा से लेकर बस्तर तक दृष्टिपात करते हैं तो हमें प्रत्येक स्थान पर देवी सत्ता की दिखाई देती है। इन्हीं में …
Read More »शाक्त धर्म एवं महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएं : छत्तीसगढ़
भारतवर्ष में मातृदेवी एवं शक्ति के रूप में देवी पूजन की परम्पराएं प्रचलित रही हैं। भारतीय संस्कृति की धार्मिक पृष्ठभूमि में शाक्त धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सृष्टि के उद्भव से लेकर वर्तमान काल तक के संपूर्ण विकास में शक्ति पूजा का योगदान दिखाई देता है। नारी शक्ति को …
Read More »दक्षिण कोसल के शिल्प एवं शिल्पकार : विश्वकर्मा पूजा विशेष
शिल्पकारों ने कलचुरियों के यहाँ भी निर्माण कार्य किया, उनकी उपस्थिति तत्कालीन अभिलेखों में दिखाई देती है। द्वितीय पृथ्वीदेव के रतनपुर में प्राप्त शिलालेख संवत 915 में उत्कीर्ण है ” यह मनोज्ञा और खूब रस वाली प्रशस्ति रुचिर अक्षरों में धनपति नामक कृती और शिल्पज्ञ ईश्वर ने उत्कीर्ण की। उपरोक्त …
Read More »गाँव का रक्षक घुड़सवार देवता : बस्तर अंचल
एक फ़िल्म का गीत याद आता है, अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर, हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है…… कुछ ऐसी कहानी बस्तर के लोकदेवता राजा राव की है। खडग एवं खेटक धारण कर, घोड़े पर सवार होकर राजाराव गाँव की सरहद पर तैनात होते हैं और सभी …
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