जिन्होंने मृत्यु और अपमान में,
वरण किया था अपमान का।
उनकी बेटियां बिक रही है,
और क्या उम्मीद हो।
शकुनि के देश में,
गांधार का गौरव चकनाचूर होकर,
कन्धार बना खड़ा है।
आहत होना दुर्भाग्य बना है।
बन्दूक लिये मुजाहिद,
अल्लाह हो अकबर के नारे।
12 बरस की दुल्हनें
और 60 बरस के दूल्हे।
कोई क्या कहे
कैसे कहे।
कुछ भी सही है
जो हो रहा है।
और क्या उम्मीद हो
शकुनि के देश में।
9/11 की 20वीं बरसी,
लादेन मारकर,
अमेरिका समेट चुका लाव लश्कर।
एक लादेन के मरने से,
नही मरती दहशतगर्दी।
नही मरती वह सोच,
जो मोमिन को बेहतर
और काफिर को मानती है दूजा।
यह सोच चले जाती है,
वहाँ जहाँ तैमूर ने मारे थे,
बीस हजार हिन्दू एक तराई में,
और नाम रख दिया था उस जगह का हिंदुकुश।
आज भी हत्यारों में अपने बाप को ढूंढने
मिल जाती है पीढ़िया।
इन पीढ़ियों के होते,
कोई भी मुल्क कभी भी अफगानिस्तान हो सकता है।
कोई भी व्यक्ति इंसान से तालिबान हो सकता है।
इसे कौन बचाये।
चुप है संसद,
चुप है कानून,
चुप है मेरे देश की सरहद।
अब क्या उम्मीदें।
शकुनि के देश से।
सप्ताह के कवि

रायपुर, छत्तीसगढ़