लौट आए हैं नगर में भेड़िये एक बार फ़िर से।
कत्ल कर रहे मानवता का एक बार फ़िर से॥
लोगों की भीड़ में शिनाख्त कर लो तुम इसकी,
जाग गये हैं कातिल शैतान एक बार फ़िर से॥
नोच-नोच कर लहूलूहान कर गये इंसानियत को,
हमले लगातार कर रहे हैवान एक बार फ़िर से॥
कल तक दम उखड रहा था जिन काले नागों का,
गलियों में घूम रहे हैं दरिन्दे एक बार फ़िर से॥
जिनके हाथ में सौंपी थी हमने हवेली की चाबियाँ,
आज आँखे दिखा रहे बेईमान एक बार फ़िर से॥
जाग जाओ तुम, उठाओ शमशीरें हाथों में अपने,
बताओ उठ खड़े हैं वीर हिन्द के एक बार फ़िर से॥
सप्ताह का कवि