विजयादशमी जिसे सामान्यतः दशहरा के नाम से जाना जाता है। असत्य पर सत्य की जीत और पराक्रम का पर्व है। जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ का बस्तर दशहरा देश भर में प्रसिद्ध है, जो लगभग चार महीने तक चलता है। बस्तर दशहरे के बाद भव्यता के आधार पर फिंगेश्वर दशहरा बहुत प्रसिद्ध है।
फिंगेश्वर की गिनती छत्तीसगढ़ के प्रमुख गढ़ के रूप में होती है। यह नगरी अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण विख्यात है। यहां पर फणिकेश्वरनाथ मंदिर, पंचमंदिर, बालाजी मंदिर, राजमहल और मौलीमाता मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल है। यहां के भव्य दशहरे आयोजन की प्रसिद्धि दूर दूर तक है।
फिंगेश्वर में दशहरा मनाने की परंपरा प्राचीन है। यहां के जमींदारों पर कुल देवी मौली माता की असीम कृपा रही है। मौली माता मूलतः बस्तर की आराध्य देवी है। बताते हैं कि किसी समय फिंगेश्वर राजघराने के चौथी पांचवीं पीढ़ी के राजा ठाकुर मनमोहन सिंह बस्तर प्रवास पर थे, तब फिंगेश्वर वापस लौटते समय मार्ग पर एक तेजोमय वृद्धा से उनकी भेंट हुई। तब राजा ने उनसे पूछा कि आप कहां जा रही है? और उनसे अपने नगर में आतिथ्य स्वीकार करने का निवेदन किया।
तब उस वृद्धा स्वरूपा मावली माता ने बताया कि वो अगर उसे सांग में बैठाकर ले जा सकते हैं तो उनके नगर जा सकती है। तब राजा ने उनको सांग में बिठाया और फिंगेश्वर लेकर आए। फिंगेश्वर पहुंचकर माता अंतर्ध्यान हो गई। तब राजा को माता की महिमा का ज्ञान हुआ। इसके बाद उन्होंने माता के भव्य मंदिर के लिए निर्माण सामग्री एकत्रित किया।
लेकिन माता ने उनको स्वप्न में आकर बताया कि वो खदर (घास) की मामूली कुटिया में ही निवास करेगी और भक्तों की पीड़ा दूर करेगी। साथ ही उन्होंने बस्तर में निवास करने वाली हल्बा जाति के लोगों को अपने पूजन का अधिकार दिया। तब राजा ने माता के आज्ञा को शिरोधार्य कर हल्बा लोगों को फिंगेश्वर नगर में बसाया और तब से अब तक माता उसी खदर की कुटिया में वास करती है।
जानकार बताते हैं कि पहले दशहरे के दिन मंदिर में पंड़वा (नर भैंसे) की बलि देने का प्रचलन था। जो बाद में बकरा बलि के रूप में परिवर्तित हो गया। वर्तमान में यहां बलि पूर्णतः निषिद्ध कर दिया गया है। फिंगेश्वर की दशहरा देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। राजा अपनी प्रजा के साथ मुलाकात करते थे और फिंगेश्वर में जगह-जगह पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
फिंगेश्वर राजघराने के राजा ठाकुर दलगंजन सिंह की मृत्यु दशहरे के दिन होने के कारण फिंगेश्वर दशहरे का आयोजन क्वांर तेरस तिथि को आयोजित किए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई। राजा दलगंजन सिंह और रानी श्याम कुमारी देवी के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी बेटी गायत्री कुमारी के सुपुत्र राजा महेंद्र बहादुर सिंह को गोद लिया। जो फूलझर राजघराने के भी राजकुमार थे।
राजा महेंद्र बहादुर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से वो राजनीति में सक्रिय थे। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पश्चात प्रथम प्रोटेम स्पीकर होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। राजा साहब की शिक्षा दीक्षा राजकुमार कालेज में हुई थी। जेजे स्कूल आफ आर्ट्स से उन्होंने चित्रकला की बारीकियां सीखीं थी। वे एक कुशल चित्रकार, हाकी और पोलो के उत्कृष्ट खिलाड़ी होने के साथ ही तबला वादन में भी निपुण थे।
उन्होंने फिंगेश्वर के शाही दशहरे को भव्यता प्रदान की। एक दिन के दशहरे पर्व को उन्होंने तीन दिवसीय दशहरा महोत्सव का रूप दिया। दशहरे के अवसर पर राजमहल को दुल्हन की तरह सजाया जाता था। प्रथम दिवस पर आकर्षक आतिशबाजी और प्रतिष्ठित लोकमंच की प्रस्तुति होती थी। अस्त्र-शस्त्र की पूजा और भव्य शोभायात्रा का आयोजन होता था। जनसामान्य उनसे राजमहल में भेंट करने आते थे।
दशहरा महोत्सव के शुभारंभ का सुबह बालाजी, पंच मंदिर, मौली माता मंदिर एवं फणिकेशवरनाथ महादेव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ होता है। सभी मंदिरों में ध्वजारोहण के बाद आधी रात भगवान श्री रामचंद्र, सांग देवता के साथ राजा की मौजूदगी में विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है। हाई स्कूल खेल मैदान में आकर्षण और भव्य आतिशबाजी की जाती है।
दूसरे दिन भी कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है और मेला लगता है। राजा महेंद्र बहादुर सिंह कलाकार होने के साथ ही साहित्यिक अभिरुचि वाले व्यक्ति थे इसलिए तीसरे दिन बालाजी मंदिर प्रांगण में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता था, जहां देशभर के प्रतिष्ठित कवि शरद पूर्णिमा की शीतल छांव में रचना पाठ करते थे।
छत्तीसगढ़ में फिंगेश्वर दशहरा की एक विशेष पहचान है, दूर दूर से लोग दशहरा कार्यक्रम में सम्मिलित होने आते हैं। इसे एक दुर्योग ही कहा जायेगा कि फिंगेश्वर दशहरे की पहचान राजा साहब का आकस्मिक निधन भी गत वर्ष दशमी तिथि को वैश्विक महामारी कोरोना के कारण हुआ और पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण की भयावहता और शोक संतप्त होने के कारण शाही दशहरे का आयोजन नहीं किया जा सका।
इस वर्ष उनकी बरसी है। इसलिए इस वर्ष भी दशहरे का आयोजन सादगीपूर्ण ढंग से किये जाने का निर्णय वर्तमान राजा नीलेंद्र बहादुर सिंह और संचालन ट्रस्ट द्वारा लिया गया है। किसी भी प्रकार की कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा। लेकिन आशा है भविष्य में फिंगेश्वर के शाही दशहरे की भव्यता के पुनः दर्शन होंगे।
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