राजनीति के गलियारे में, निंदा की लगती झड़ियाँ।
आतंकी पोषित हैं किनके, जुड़ी हुई किनसे कड़ियाँ।।
बंद करो घड़ियाली आँसू, सत्ता का लालच छोड़ो।
बिखर रही है व्यर्थं यहाँ पर, गुँथी एकता की लड़ियाँ।।
वह जुनून अब रहा नहीं क्यों, देश प्रेम का भाव नहीं।
पनप रही कट्टरता केवल, लिए साथ अलगाव वहीं।।
स्वर्ग धरा पर बिछती लाशें, चलते सियासती चालें।
मुक्त मुल्क हो गद्दारों से, दो उनको अधिकार नहीं।।
मन में जैसा आता वो कर।
कहलाये चाहे तू जोकर।।
समाधान में लगा हुआ है।
पत्थर हटा हटा खा ठोकर।।
देश प्रेम की चिंता किसको ।
कुर्सी के दीवाने होकर।।
पूर्ण हुआ यह देश हमारा।
समानता का हार पिरोकर।।
‘कांत’ मुकुट भारतमाता का।
भारतवासी रखे सँजोकर।।
सप्ताह के कवि