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भीम का बनाया यह मंदिर अधूरा रह गया

छत्तीसगढ़ के जांजगीर में कलचुरीकालीन भव्य विष्णु मंदिर है। यह जांजगीर नगरी कलचुरी राजा जाज्वल्य देव की नगरी है तथा विष्णु मंदिर कल्चुरी काल की मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में जड़े पत्थर शिल्प में प्राचीन परंपरा को दर्शाया गया है। अधूरा निर्माण होने के कारण इसे “नकटा” मंदिर भी कहा जाता है। 

अधूरा होने के पीछे किंवदंती है कि एक निश्चित समयावधि (कुछ लोग इस छैमासी रात कहते हैं) में शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण में प्रतियोगिता थी। भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगा, वे उसी में प्रविष्ट होंगे। शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण उसमें प्रविष्ट हुए। जांजगीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा रह गया।

एक अन्य दंत कथा के अनुसार इस मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में पाली के शिव मंदिर को भी सम्मिलित बताया गया है। इस कथा में पास में स्थित शिव मंदिर को इसका शीर्ष भाग बताया गया है। एक अन्य दंतकथा जो महाबली भीम से जुड़ी है, भी प्रचलित है। कहा जाता है कि मंदिर से लगे भीमा तालाब को भीम ने पांच बार फावड़ा चलाकर खोदा था। किंवदंती के अनुसार भीम को मंदिर का शिल्पी बताया गया है। 

इस दंतकथा के अनुसार एक बार भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था।

लेकिन एक बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा हो गया। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर उसने हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम द्वारा खंडित हाथी की प्रतिमा है। खंडित हाथी की प्रतिमा सीढियों के उपर लगी है।

जाज्वल्य देव द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण 12 वीं शताब्दी में होना बताया जाता है। विष्णु मंदिर कचहरी चौक से आधा किलोमीटर की दूरी पर जांजगीर की पुरानी बस्ती के समीप है। यह मंदिर कल्चुरी कालीन मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित इंस मंदिर की दीवारें भगवान विष्णु के अनेकों रूपों के अलावा अन्य देवताओं कुबेर, सूर्यदेव, ऋषि मुनियों, देवगणिकाओं की मूर्तियों से सुसज्जित किन्तु खंडित है। 

विष्णु मंदिर के पास ही कल्चुरी काल का एक शिव मंदिर भी है। मंदिर का अधिष्ठान पांच बंधनों में विभक्त है। नीचे के बंधन सादे किन्तु उपरी बंधनों में रत्न पुष्प अलंकरण है। अधिष्ठान के पार्श्व में गजधर दो भागों में विभक्त है। अंतराल और गर्भगृह के भद्ररथों पर देव कोष्ठ हैं। कर्णरथों पर दिपाल एवं अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई।

लंबोदर तथा त्रिशीर्ष मुकुट युक्त कुबेर का अंकन है। मंदिर के शिखर में मृदंगवादिनी, पुरुष से आलिंगनबद्ध मोहिनी, खड्गधारी, नृत्यांगना मंजुघोषा, झांझर बजाती हंसावली आदि देवांगनाएँ अंकित हैं। मंदिर की उत्तरी जंघा में आंखों में अंजन लगाती अलसयुक्त लीलावती, चंवरधारी चामरा, बांसुरी बजाती वंशीवादिनी, मृदंगवादिनी, दर्पण लेकर बिंदी लगाती विधिवेत्ता आदि देवांगनाएं स्थित हैं।

दक्षिण जंघा में वीणा वादिनी सरस्वती, केश गुम्फिणी, लीलावती, हंसावली, मानिनी, चामरा आदि देवांगनाएँ स्थित हैं।मंदिर के उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी जंघा में विभिन्न मुद्राओं में साधकों की मूर्तियाँ अंकित है। इसके अतिरिक्त उत्तरी जंघा के निचले छेद में स्थित मूर्ति तथा प्रवेशद्वार के दोनों पार्श्वों में अंकित संगीत समाज के दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्य देव विराजमान हैं। मूर्ति का एक हाथ भग्न है लेकिन रथ और उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट हैं। यहीं नीचे की ओर कृष्ण कथा से सम्बंधित एक रोचक अंकन मंदिर के है, जिसमें वासुदेव कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाए गतिमान दिखाये गये हैं। इसी प्रकार की अनेक मूर्तियाँ नीचे की दीवारों में खचित हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय में बिजली गिरने से मंदिर ध्वस्त हो गया था जिससे मूर्तियां बिखर गयी। उन मूर्तियों को मंदिर की मरम्मत करते समय दीवारों पर जड़ दिया गया। मंदिर के चारो ओर अन्य कलात्मक मूर्तियों का भी अंकन है जिनमे से मुख्य रूप से भगवान विष्णु के दशावतारो में से वामन, नरसिह, कृष्ण और राम की प्रतिमाएँ है।

छत्तीसगढ के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बंधित इतने दृश्य कहीं नही मिलते जितने इस विष्णु मंदिर में हैं। यहाँ रामायण के 10 से 15 दृश्यो का भव्य एवं कलात्मक अंकन देखने को मिलता है। इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, यह मंदिर सूना है।

विष्णु मंदिर में राम के द्वारा बाली को दंड देते हुए प्रसंग उकेरा गया है। जिसमें वृक्षों की आड़ से राम बाली पर तीर चला रहे हैं। स्थापत्य शिल्प में इस तरह के प्रसंगों का अंकन देखा जाता है। रामचारित में उद्धृत है…… 


बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि।
मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि॥8॥
भावार्थ : सुग्रीव ने बहुत से छल-बल किए, किंतु (अंत में) भय मानकर हृदय से हार गया। तब श्री रामजी ने तानकर बालि के हृदय में बाण मारा॥8॥

धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥3॥
भावार्थ : हे गोसाईं। आपने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है और मुझे व्याध की तरह (छिपकर) मारा? मैं बैरी और सुग्रीव प्यारा? हे नाथ! किस दोष से आपने मुझे मारा?॥3॥

अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई॥4॥
भावार्थ : (श्री रामजी ने कहा-) हे मूर्ख! सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या- ये चारों समान हैं। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता॥4॥

वर्तमान में भग्नावस्था में दिखाई देता यह मंदिर प्राचीन काल में भव्य रहा होगा। इसके ऊंचे अधिष्ठान एवं अधिष्ठान की भित्तियों में जड़ी प्रतिमाओं को देखकर ही इसकी भव्यता एवं सौंदर्य का आकलन हो जाता है। जांजगीर, बिलासपुर-रायगढ़ सड़क मार्ग पर स्थित है तथा यहाँ चांपा तक रेलमार्ग से भी जा सकते हैं।

आलेख एवं छाया चित्र

ललित शर्मा इंडोलॉजिस्ट

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