हमारा छत्तीसगढ़, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की ननिहाल, जो अतीत में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। यहां भगवान श्रीराम से जुड़ी अनेक घटनाएं घटित हुई है। यह पुण्य धरा भगवान श्रीराम से जुड़ी अनेक घटनाओं का साक्षी रही है।
कदम कदम पर बिखरी लोकगाथाओं में रामायण से जुड़े कथानकों का उल्लेख मिल जाता है। भगवान श्री राम की अर्धांगिनी माता सीता के एक अद्भुत रुप के दर्शन ग्राम सोरिद के पास स्थित रमईपाट की पहाड़ियों में होते हैं। लोकमान्यता है कि अयोध्या त्यागने के बाद माता सीता ने सर्वप्रथम यहीं आश्रय लिया।
यहां आदिशक्ति जगदंबा सीता मां रमईपाट देवी के रूप में विराजित है। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी के साथ यहां माता सीता की गर्भवती स्वरूप वाली प्राचीन मूर्ति स्थापित है। ये प्रतिमा अद्भुत है, ऐसी प्रतिमा कहीं और प्राप्त नहीं हुई है।
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम से लगभग 25 किमी की दूरी पर सोरिद ग्राम स्थित है। मुख्य मार्ग से लगभग एक किमी की दूरी पर ही माता का धाम है। यहां माता रमईपाट बिना कोई ताम-झाम के खदर की कुटिया में वास करती है। फिंगेश्वर जमींदारी की आराध्य देवी है माता रमईपाट। फिंगेश्वर में आयोजित होने वाले भव्य शाही दशहरे के दिन फिंगेश्वर के जमींदार माता के पूजन अर्चन के लिए पहुंचते हैं।
माता रमईपाट पर क्षेत्र के लोगों में अगाध श्रद्धा है। मान्यता है कि माता रमईपाट निसंतान दंपति के गोद भरती है। लोग यहां संतान प्राप्ति के लिए माता से मनौती मांगते हैं और पूर्ण होने पर लोहे की सांकल चढ़ाते हैं। लोगों की मनौती और उसके फलित होने के साक्ष्य के रुप में माता के प्रांगण में एक स्थान पर चढ़ाई गई लोहे की सांकल का अंबार इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और प्राचीन मूर्तियों से भरपूर है। यहां कालभैरव, नरसिंहनाथ, विष्णुजी, बरमपाट, गरुड़ देव की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है। यहां हनुमान जी की विराजित एक अद्भुत प्रतिमा के भी दर्शन होते हैं, जिसने एक पैर में अहिरावण को दबा रखा है।
कहते हैं जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी को अहिरावण मूर्छित करके पाताल लोक में बलि देने के लिए ले गए थे तब हनुमानजी ने अहिरावण की कैद से श्रीराम जी और लक्ष्मण को छुडाया था। यहां स्थापित कुछ प्राचीन मूर्तियां खंडित है, जिस पर सीमेंट से कलाकारी कर उसको पूर्णता प्रदान किया गया है।
यहां अब अनेक मंदिर श्रद्धालुओं के द्वारा निर्मित किए गए हैं। जिसमें से माता गंगा, शिव जी, लक्ष्मीनारायण, श्री राम-जानकी, हनुमान मंदिर और दुर्गा माता के मंदिर प्रमुख है। संपूर्ण छत्तीसगढ़ राममय है। यहां के लोकजीवन में राम समाहित है।चूंकि माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की बेटी है, इसलिए भगवान राम के प्रति यहां विशेष लगाव है। यहां भगवान श्रीराम के बालस्वरूप के साथ माता कौशल्या की प्रतिमा भी स्थापित है।
एक स्थान पर आम वृक्ष के जड़ के पास से निरंतर जल प्रवाहित होते रहता है। कहते हैं जब माता सीता यहाँ पहुंची तब प्यास से व्याकुल हो गई तो उन्होंने माता गंगा को पुकारा। तब माता गंगा यहां प्रकट हुईं। मान्यता है कि तब प्राकृतिक जल यहाँ प्रवाहित हो रहा है।
स्थानीय श्रद्धालुओं के सहयोग से यहां पर भोजन शाला का निर्माण भी किया गया है जहां नवरात्र के अवसर पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के अतिरिक्त यहां चैत्र पूर्णिमा के दिन भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है और मेला लगता है। छत्तीसगढ़ में इसे चइत रई जात्रा के नाम से जाना जाता है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य और भगवान श्रीराम और रामायण से जुड़ी कहानियां मन को तृप्त कर देती है।
संदर्भ – ललित डॉट कॉम
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