लोक-व्यवहार ही कालांतर में परंपराएँ बनती हैं और जीवन से जुड़ती चली जाती हैं। जब पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनका निर्वाह किया जाता है तब वह आगे चलकर संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। वास्तव में लोक-व्यवहार ही एक है जो कि संस्कृति को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। लोक-परंपराएँ यूँ ही नहीं …
Read More »बैगा जनजाति में मृतक संस्कार की परम्परा
वैदिक कालीन मानव का जीवन सोलह संस्कारों में विभक्त था एवं उसी के अनुसार उनके कार्य और व्यवहार थे। परन्तु जनजातीय समुदाय में संस्कार तो होते हैं पर सोलह संस्कारों जैसी कोई सामाजिक मान्यता नहीं है। जनजातीय समाज मुख्य रुप से जन्म, नामकरण, विवाह और मृत्यु संस्कार को मानता है। …
Read More »युवा बैगा वनवासियों का प्रिय दसेरा नृत्य
वनवासी संस्कृति में उत्सव मनाने के लिए नृत्य प्रधान होता है। जब भी कोई उत्सव मनाते हैं वहाँ नृत्य एवं गान आवश्यक हो जाता है। ढोल की थाप के साथ सामुहिक रुप से उठते हुए कदम अद्भुत दृश्य उत्पन्न करते हैं। यह नृत्य युवाओं को प्रिय है क्योंकि इससे ही …
Read More »ऐसी चित्रकारी जहाँ देह बन जाती है कैनवास
भारत विभिन्नताओं का देश है, यहाँ आदिम जातियाँ, आदिम संस्कृति से लेकर आधुनिक संस्कृति भी दिखाई देती है। यहाँ उत्तर से लेकर दक्षिण तक एक ही कालखंड में विभिन्न मौसम मिल जाएंगे तो विभिन्न प्रकार के खान पान के साथ विभिन्न बोली भाषाओं भी सुनने मिलती हैं, इतनी विभिन्नताएं होते …
Read More »जब आपकी होली खत्म होती है तब इनकी शुरु होती है, जानिए कौन हैं ये
बैगा जनजाति भारत के मध्य प्रांतर क्षेत्र की प्रमुख जनजाति है, ये अपने पहनावे, खान-पान, तीज-त्यौहार, आवास-व्यवहार अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। छत्तीसगढ़ अंचल में ये कवर्धा जिले एवं उसके अगल-बगल के जिलों में निवास करते हैं तथा इनका विस्तार छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे हुए मध्यप्रदेश के कुछ जिलों …
Read More »ऐसा मेला जहाँ युवक-युवती गंधर्व विवाह के लिए हैं स्वतंत्र
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले व मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के साथ अन्य आस-पास के जिलों में भी बैगा जनजाति निवास करती है। इन जिलों की सीमा में प्रतिवर्ष पर्व विशेष पर मेला-मड़ई का आयोजन होता है। जहाँ बैगा पहुंच कर मेले का आनंद लेते हैं। यह मेले मड़ई इनके जीवन …
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