छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले व मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के साथ अन्य आस-पास के जिलों में भी बैगा जनजाति निवास करती है। इन जिलों की सीमा में प्रतिवर्ष पर्व विशेष पर मेला-मड़ई का आयोजन होता है। जहाँ बैगा पहुंच कर मेले का आनंद लेते हैं। यह मेले मड़ई इनके जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं।
ऐसा ही एक मेला इन दोनों जिलों के सीमा क्षेत्र में भरता है, जिसे लोग डागोना मेला के नाम से जानते हैं। यह क्षेत्र सागौन के वृक्षों से आच्छादित है तथा बैगा बाहुल्य क्षेत्र भी है। बताते हैं कि डागोना में 1968 से इस मेले का आयोजन हो रहा है।
डागोना के बगल में कन्हारी गांव है, जहाँ से लोग डिंडोरी जिला जाते हैं। इसके साथ ही अजगर, ढाबा, चाड़ा, ततार, घुरकुटा, गोरा कन्हारी नामक गांव भी इस क्षेत्र से लगे हुए हैं, जहाँ के लोग मेले में सम्मिलित होते हैं।
बैगा जनजाति अपने को भगवान ब्रह्मा की संतान मानती है। जिस तरह पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा के द्वारा मनु एवं सतरुपा से सृष्टि का आरंभ माना जाता है उसी तरह बैगा लोग नागा बैगा एवं नागी बैगिन को प्रथम मानव मानते हैं और इनकी मान्यतानुसार इन्हें उत्पन्न करने वाले ब्रह्मा जी ही थे।
यहां पर एक विशाल चट्टान है जिसके बीचों-बीच से पानी निकलता है, जिसे बुड़नेर नदी कहते है और यहां पर शंकर भगवान का मूर्ति स्थापित है।
डागोना का नाम इसलिए पड़ा कि नदी चोधा पार है, एक छलांग में आदमी कूद के पार जा सकता है। नीचे दोनों तरफ खाई है, वहीं बगल में मन्दिर है। इस स्थान को पवित्र माना जाता है, लोग यहाँ स्नान करते हैं, कुंड के जल का आचमन करते हैं तथा नरमदा माई मानकर यहाँ पर मुंडन जैसे संस्कार भी सम्पन्न करते हैं।
यह मेला प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पर्व से अगले दिन तक भरता है। बैगा मोरपंख लगी हुई डाँग (सांग) लेकर मेले का भ्रमण करते हैं तथा देवी-देवताओं की पूजा भी करते हैं।
मेले में ये अपने दूर-दराज के परिवार रिश्तेदार से मुलाकात करते है, वहीं डांग को लेकर हर मड़ई मेला में स्वागत करते है। इस मेले में नौजवान युवक-युवतियां की खासी उपस्थिति रहती है।
यहाँ वे अपने प्यार का प्रकटन पान खिला कर या गाना गाकर करते हैं, अगर लड़की प्रभाव में आ जाती है तो उसको भगा ले जाते है और शादी के बाद परिवार से मिलने जाते है।
मड़ई में खासकर युवक-युवतियां ज्यादातर भागकर शादी करते है। यह इस बैगा मड़ई का खास महत्व है। अगर लड़का-लड़की परिवार के मर्जी से शादी करते है तो परिवार के लोग साड़ी ओर कपड़े की खरीदारी करते है।
मेले-मड़ई में लोगों का अपने रिश्तेदारों से मेल-मिलाप हो जाता है। स्थानीय लोग अपने रिश्तेदारों की आवभगत यथाशक्ति करते हैं तथा मेहमानों के लिए एक अलग कमरे की लिपाई पुताई कर तैयार करके रखा जाता है। डागोना मेला डिंडोरी से 75 किमी एवं कवर्धा से 100 किमी की दूरी पर भरता है।
कवर्धा जिला से भी बैगा ओर अन्य जाति के लोग भी मड़ई में जाते है, खैर आधुनिक युग का असर बैगाओं के पहनावे एवं मेले मड़ई पर भी दिखाई देता है, परन्तु लोग अभी तक अपनी परम्पराएं नहीं भूले हैं एवं प्राचीन परम्पराएं एवं संस्कृति सतत जारी है।
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