युगदृष्टा शंकराचार्य ने भारत को एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में देखते हुए, इसको और अधिक सुदृढ़ करने की दृष्टि से देश के चार कोनों पर चार मठों की स्थापना की। दक्षिण में ‘शृंगेरीमठ’, पश्चिम में द्वारिका का ‘शारदामठ’, उत्तर में बद्रीनाथ का ‘ज्योतिर्मठ’ तथा पूर्व में जगन्नाथपुरी के ‘गोवर्धनमठ’ …
Read More »पंचायतन पूजा पद्धति एवं चतुर्मठ की स्थापना : आदि शंकराचार्य
चाण्डाल से संवाद की घटना मनीषा पचकम्’ की रचना के लिए मात्र एक भूमिका रही होगी। भगवान् विश्वनाथ ने एक दृश्य रचकर आचार्य शंकर को इस निमित्त प्रेरित किया। अब सच्चे अर्थों में सर्वात्मैक्य तथा अद्वैत का भाव श्री शंकराचार्य के मन में जग चुका था। प्राणीमात्र की समानता के …
Read More »आदि शंकराचार्य के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ देने वाली घटना : जयंती विशेष
लोकमान्यता है कि केरल प्रदेश के श्रीमद्बषाद्रि पर्वत पर भगवान् शंकर स्वयंभू लिंग रूप में प्रकट हुए और वहीं राजा राजशेखरन ने एक मन्दिर का निर्माण इस ज्योतिर्लिंग पर करा दिया था। इस मन्दिर के निकट ही एक ‘कालडि’ नामक ग्राम है। आचार्य शंकर का जन्म इसी कालडि ग्राम में …
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