भारत में विभिन्न धर्मों, समुदायों और जातियों का समावेश है इसलिए यहाँ अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि यहाँ सभी धर्मों के त्यौहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है चाहे वह दीपावली हो, ईद हो, क्रिसमस हो या भगवान झूलेलाल जयंती।
कहा जाता है कि दुनिया में जब – जब अत्याचार बढ़ा है, तब- तब भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए धरती में जन्म लिया है. युगों से ये बात चली आ रही है, भारत देश में कई भगवान, साधू संत ने जन्म लिया और दुनिया को सही गलत में फर्क समझाया है। ऐसे ही एक अवतार इस धरती पर आये, जिन्हें झूलेलाल नाम से जाना जाता है। इन्हें सिन्धी जाति का इष्ट देव कहा जाता है।
सिंधी समुदाय का त्यौहार भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव ‘चेटीचंड’ के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी हुई वैसे तो कई किवंदतियाँ हैं परंतु कहा जाता है कि चूँकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है, अतः जब ये व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे तो इन्हें कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था। जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्टानें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचाकर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे।
इसलिए की यात्रा की निर्विघ्न सफलता के लिए जाते समय ही महिलाएँ वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नते माँगती थीं। चूँकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: ये सिंधी लोग के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग अपनी व्यापारिक यात्रा से सकुशल लौट आता था। तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। मन्नतें पूरी की जाती थी व भंडारा किया जाता था।
पार्टीशन के बाद जब सिंधी समुदाय भारत में आकर बिखर गया। इस बिखराव को सन् 1952 में प्रोफेसर राम पंजवानी ने भगवान झूलेलाल का पर्व मनाकर एकजुट करने का प्रयास किया। वे हर उस जगह गए जहाँ सिंधी समुदाय रह रहे थे। उनके प्रयास से दोबारा भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।
झूलेलाल हिन्दू धर्म अनुसार के भगवान वरुण का अवतार है, जिनका जन्म 10 वीं शताब्दी के आस पास हुआ था। कुछ लोग इन्हें सूफी संत मानते हैं, जिन्हें मुस्लिम भी पूजते थे। तो कहीं इन्हें जल देव का अवतार मानते थे।
भगवान झूलेलाल के अवतरण का उद्देश्य –
सिंध में पहले हिन्दू राजा का शासन हुआ करता था, राजा दाहिर सेन आखिरी हिन्दू राजा थे, उन्हें मोहम्मद बिन कासिम ने हरा दिया था। मुस्लिम राजा के सिंध की गद्दी में बैठने के बाद उसके चारों ओर इस्लाम समाज ने पैर फैला लिए थे। दसवी शताब्दी के द्वितीय भाग में सिंध के ‘थट्टा’ राज्य में मकराब खान का शासन था, जिसे शाह सदाकत खान ने मार डाला व मिरक शाह के नाम से गद्दी पर बैठ गया। उनका कहना था, अगर दुनिया में इस्लाम बढेगा, तो जन्नत यही बन जाएगी और हिंदुओ पर जुल्म करना शुरू कर दिया, सभी हिंदुओ को बोला गया, कि उन्हें इस्लाम अपनाना होगा, नहीं तो उन्हें मार डाला जायेगा।
ऐसे में सिंध के सभी हिन्दू बहुत घबरा गए, तब सभी हिंदुओ को सिन्धु के नदी के पास इक्कठे होने के लिए बुलावा भेजा गया. हज़ारों लोग इकट्टा हुए, सबने मिलकर जल देवता दरियाशाह की उपासना और प्रार्थना की, कि इस विपदा उबारें। सभी ने लगातर 40 दिनों तक तप किया, तब भगवान वरुण ने खुश होकर उन्हें आकाशवाणी के द्वारा बताया, कि वे नासरपुर में देवकी व ताराचंद के यहाँ जन्म लेंगें, वही बालक इनका रक्षक बनेगा।
भगवान झूलेलाल का जन्म –
आकाशवाणी के 2 दिन बाद चैत्र माह की शुक्ल पक्ष में नासरपुर (पाकिस्तान की सिन्धु घाटी) के देवकी व ताराचंद के यहाँ एक बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम उदयचंद रखा गया। आगे चलकर यही बच्चा हिन्दू सिन्धी समाज का रक्षक बना, जिसने मिरक शाह जैसे शैतान का अंत किया। अपने नाम को चरितार्थ करते हुए उदयचंद जी ने सिंध के हिंदुओ के जीवन के अँधेरे को खत्म कर उजयाला फैला दिया।
पहले उन्हें भगवान का रूप नहीं समझा गया, लेकिन अनेक चमत्कारों के कारण उन्हें भगवान का स्वरुप माना जाने लगा। उनके माता पिता ने उनके मुख के अंदर पूरी सिन्धु नदी को देखा, जिसमें पालो नाम की एक मछली भी तैर रही थी जो किसी साधारण मानव के लिए असम्भव था। इसलिए झूलेलाल जी को पल्ले वारो और अमरलाल भी कहा जाता है।
झूलेलाल जी को उदेरो लाल भी कहते है, संस्कृत में इसका अर्थ है जो पानी के करीब रहता है या पानी में तैरता हो। बाल्यकाल में उदयचंद को झूला बहुत पसंद था, वे उसी पर आराम करते थे, इसी के कारण उनका नाम झूलेलाल पड़ गया।
झूलेलाल जी द्वारा किये गए कार्य-
इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिर्ख शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई।
बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहां पहुंचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन मिर्ख शाह की फौजी ताकत पंगु हो गई। उन्हें सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की।
उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढांढस बंधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करें। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया।
बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान मांगा। उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। इसका असर यह हुआ कि मिर्ख शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया।
झूलेलाल के अनेकों नाम-
झूलेलाल को जिंद पीर, लाल शाह के नाम से भी जाना जाता है विशेषकर पाकिस्तान में इन्हीं नामों की मान्यता है। हिंदुओं में भी उन्हें उदेरोलाल, लालसांई, अमरलालस जिंद पीर, लालशाह आदि नामों से जाना जाता है। उपासक इन्हें झूलेलाल के साथ-साथ घोड़ेवारो, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो आदि नामों से भी पूजते हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्रदर्शन के दिन भगवान झूलेलालजी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
चूंकि भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटे में जल लेकर उसपर ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।
जिन मंत्रों से इनका आह्वान किया जाता है उन्हें लाल साईं जा पंजिड़ा कहते हैं। वर्ष में एक बार सतत चालीस दिन इनकी अर्चना की जाती है जिसे ‘लाल साईं जो चाली हो’ कहते हैं। इन्हें ज्योतिस्वरूप माना जाता है अत: झूलेलाल मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है, शताब्दियों से यह सिलसिला चला आ रहा है।