छत्तीसगढ़ में ईष्टिका निर्मित तीन मंदिर हैं, जिसमें पहला सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर दूसरा सिरपुर का राम मंदिर और तीसरा पलारी का सिद्धेवर महादेव मंदिर है। रायपुर राजधानी से बलौदा बाजार मार्ग पर यह मंदिर लगभग 70 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। भारत में ईष्टिका निर्मित मंदिर बहुत कम ही पाए जाते हैं। इनमें कानपुर के पास भीतरगाँव के मंदिर का प्रमुख रुप से उल्लेख आता है।
पलारी ग्राम में बालसमुंद तालाब के तटबंध पर यह शिवालय स्थित है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 7-8 वीं शती ईस्वीं में हुआ था। ईष्टिका निर्मित यह मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। मंदिर की द्वार शाखा पर नदी देवी गंगा एवं यमुना त्रिभंगमुद्रा में प्रदर्शित हुई हैं। प्रवेश द्वार स्थित सिरदल पर शिव विवाह का दृश्य सुन्दर ढंग से उकेरा गया है एवं द्वार शाखा पर अष्ट दिक्पालों का अंकन है।
गर्भगृह में सिध्देश्वर नामक शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। इस मंदिर का शिखर भाग कीर्तिमुख, गजमुख एवं व्याल की आकृतियों से अलंकृत है जो चैत्य गवाक्ष के भीतर निर्मित हैं। विद्यमान छत्तीसगढ़ के ईष्टिका निर्मित मंदिरों का यह उत्तम उदाहरण है। जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर एवं तालाब का निर्माण नायक बंजारों ने छैमासी रात में किया गया।
इस अंचल में घुमंतू नायक जाति नमक का व्यापार करती थी। उनका कबीला नमक लेकर दूर दूर तक भ्रमण करता था। कहते हैं कि इस पड़ाव पर नायकों को जल की समस्या हमेशा बनी रहती थी। उन्होंने यहां तालाब बनवाने का कार्य शुरु किया।
नायकों द्वारा तालाब निर्माण की कहानी अन्य स्थानों पर भी सुनाई देती हैं, खारुन नदी के उद्गम पेटेचुआ का तालाब भी नायकों ने बनवाया था। ग्राम वासी बताते हैं कि पेटेचुआ के तालाब का निर्माण के लिए मजदूरी के रुप में कौड़ी मुद्रा का प्रयोग हुआ था।
इससे ज्ञात होता है कि नायक अपने व्यापार के मार्ग में जलसंसाधन का निर्माण करते थे। अपने मार्ग के पड़ाव में जल की व्यवस्था करने के लिए कुंए, तालाबों का निर्माण स्वयं के खर्च पर कराते थे। जिससे व्यवसाय यात्रा निर्बाध रुप से चलती रहे तथा पड़ाव डालने पर पशुओं और मनुष्यों की निस्तारी के लिए जल उपलब्ध हो सके।
पलारी ग्राम में भी इन्होंने तालाब का निर्माण करवाया, लेकिन निर्माण के पश्चात इस तालाब में जल नहीं भरा। इस समस्या के समाधान के लिए सयानों से सम्पर्क किया तो उन्होंने समाधान बताया। सयाने के कहने से नायकों के प्रमुख ने अपने नवजात शिशु को परात में रख कर तालाब में छोड़ दिया, इसके बाद तालाब में भरपूर पानी आ गया और यह लबालब भर गया। बालक भी सुरक्षित परात सहित उपर आ गया।
तब से इस तालाब का नाम बालसमुंद रखा गया। इस तालाब का विस्तार 120 एकड़ में है। जल साफ़ एवं सुथरा है। तालाब का पानी कभी नहीं सूखता। तालाब की बीच में एक टापू बना हुआ है, कहते हैं इसका निर्माण तालाब खोदने के दौरान तगाड़ी झाड़ने से झड़ी हुई मिट्टी से हुआ।
छत्तीसगढ़ी की पहली फ़ीचर फ़िल्म “कहि देबे संदेश” का प्रदर्शन 1965 में हुआ था, इसके निर्माता मनु नायक ने एक गाने का फ़िल्मांकन इसी तालाब एवं मंदिर के आस पास किया था। “बिहनिया के उगत सुरूज देवता, तोरे चरनन के प्रभुजी मै दासी हवंव” गीत गायिका मीनू पुरषोत्तम ने गाया था।
इस मंदिर का जीर्णोद्धार तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री बृजलाल वर्मा ने 1960-61 के दौरान करवाया तथा गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित करवाया। इस स्थान पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा दे दिन मेला भरता है, जिसमें हजारों श्रद्धालू आकर बालसमुंद में स्नान कर पूण्यार्जित करते हैं।
इस तरह लगभग 1500 वर्षों से पलारी का सिद्धेश्वर महादेव मंदिर अपने स्थान पर अटल खड़ा है तथा भारतीय संस्कृति का अनुपम उदाहरण बना हुआ है। जिसकी किंवदंतियाँ एवं जनश्रुतियाँ लोक में वर्तमान में भी प्रचलित हैं। पुरातत्व की दृष्टि से इस मंदिर का शिल्प महत्वपूर्ण है तथा यह हमारी कीमती धरोहर है।
आलेख एवं छायाचित्र