पहाड़ियाँ, घाटियाँ, जंगल, पठार, नदियाँ, झरने आदि न जाने कितने प्रकार के गहनों से सजाकर प्रकृति ने बस्तर को खूबसूरत बना दिया है। बस्तर के इन्हीं आभूषणों में से एक है, कटुमकसा घुमर। कुएमारी (पठार) से बहता हुआ एक नाला घोड़ाझर गाँव की सीमा में आता है।
यहाँ एक जलप्रपात है, जिसे कोडा खड़का जलप्रपात कहते हैं। फिर आगे कमका कसा झरना के बाद पुनः एक नाला के रुप में बहता हुआ होनहेड़ पहुँचता है। यह नाला घोड़ाझर सीमा से बहता हुआ आता है इसलिए ग्रामीण इस नाले को घोड़ाझर नाला कहते हैं। जंगल और पहाड़ियों के बीच बसे ग्राम होनहेड़ के उत्तर-पूर्व में यह नाला एक सुन्दर जलप्रपात बनाता है।
लगभग पचास फुट ऊपर से फिसलता, पत्थरों से अठखेलियाँ करता यह जलप्रपात नयनाभिराम दृश्य उपस्थित करता है। तथा मस्ती में उछलता हुआ नीचे आकर चट्टानों के बीच दो जलकुण्ड बनाता है। एक जलकुण्ड का नाम है कटुम कसा तथा दूसरे जलकुण्ड को हेटाड़ कसा कहते हैं।
इन्हीं दोनों जलकुण्डों के नाम से इस जलप्रपात को कटुम कसा या हेटाड़ कसा घुमर के नाम से सम्बोधित करते हैं। इन जलकुण्डों से ग्रामीणों की धार्मिक आस्थाएँ भी जुड़ी हुई हैं । यहाँ पर निवास करने वाले देवी-देवताओं की विभिन्न पर्वों एवं त्यौहारों में पूजा अर्चना की जाती है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 पर केशकाल से लगभग तीन किलोमीटर दूर ग्राम बटराली स्थित है। यहाँ से केशकाल क्षेत्र के प्रसिद्ध धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल गोबरहीन (गढ़धनोरा) के लिए सड़क मार्ग बना हुआ है। गढ़धनोरा से आगे ग्राम रांधा होते हुए महज 7 किलो मीटर की दूरी तय कर ग्राम होनहेंड़ पहुँचा जा सकता है।
घने जंगल की प्राकृतिक सुन्दरता और पक्षियों के कलरव के बीच ग्राम होनहेड़ तक पक्का सड़क मार्ग है। किन्तु गाँव से जलप्रपात तक पहुँचने के लिए लगभग किलोमीटर भर का रास्ता पगडंण्डी से तय करना पड़़ेगा। यहाँ किसी भी मौसम में बिना किसी प्राकृतिक बाधा के आसानी से पहुँचा जा सकता है। फिर भी अक्टूबर से फरवरी के बीच यहाँ भ्रमण के लिए सबसे उपयुक्त समय है ।
प्रचार-प्रसार एवं जानकारी के अभाव में यह जलप्रपात अल्पज्ञात है। कुछ खोजी प्रवृति के लोग या प्रकृति प्रेमी लोगों के अलावा इसकी जानकारी जनसामान्य को नहीं है। इसलिए बाहरी दुनियाँ से इसे अब तक का अज्ञात जलप्रपात कहना ही ज्यादा उचित होगा।
राष्ट्रीय राजमार्ग से नजदीक एवं सुगम मार्ग होने के कारण आसानी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। पर्याप्त प्रचार प्रसार हो और जन-सामान्य को इसकी जानकारी हो तो, जिन्दगी की आपा-धापी से समय निकाल कर प्रकृति की गोद में पल भर शुकून पाने, लोग यहाँ जरुर आयेंगे । और विश्वास है कि बार-बार आयेंगे ।
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