प्रकृति ज्ञान और आनंद का स्रोत है। प्रकृति मनुष्य को सदैव अपनी ओर आकर्षित करती है। प्रकृति के आकर्षण ने मनुष्य की जिज्ञासा व उत्सुकता को हरदम प्रेरित किया है। इसी प्रेरणा के फलस्वरूप मनुष्य प्रकृति के रहस्यों को जान-समझ कर ही ज्ञानवान बना है। प्रकृति के हर उपादान उसे प्रेरित और आकर्षित करते हैं।
इधर अन्वेषण की प्रवृत्ति ने ही मनुष्य को अधिक सुसंपन्न बनाया है। प्रकृति तो रहस्यों का पिटारा है। जंगलों में, पहाड़ो में प्रकृति के न जाने कितने अलौकिक और चमत्कारिक रूप विद्यमान हैं। उसके इन रूपों का साक्षात्कार तो उन स्थानों पर ही जाकर किया जा सकता है, जहां प्राकृतिक सौन्दर्य अपनी संपूर्णता के साथ वन-प्रान्तरों में अन्वेषकों की प्रतीक्षा में हैं।
ऐसा ही एक रम्य रोमांचकारी स्थान है, “मंडीप खोल।” इसे मंडीप खोह के नाम से जाना जाता है। खोह अर्थात् गुफा। मंडीप खोल एक प्राकृतिक गुफा है, जिसके गर्भ में प्रकृति के नाना रूप अपनी विचित्रता और रहस्यमयता के साथ समाविष्ट हैं। मंडीप खोल गंडई से लगभग 35 कि.मी. दूर पश्चिम में ठाकुरटोला जमींदारी के पास स्थित है।
यहाँ पहुँचने के लिए गंडई (नर्मदा) बालाघाट मुख्य मार्ग के किमी. 10 से आगे पश्चिम दिशा की ओर लगभग 15 कि.मी. वन मार्ग से जाना पड़ता है। यहां यह भी बताना आवश्यक है कि मंडीप खोल दर्शनार्थियों के लिए वर्ष में एक ही बार खुलता है, बैशाख शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले प्रथम सोमवार को। इसका कारण शायद इस स्थान की बिहड़ता व निर्जनता हो सकती है। इस दिन मंडीप खोल में प्रकृति को जानने-समझने के लिए पर्यटकों की बड़ी भीड़ एकत्रित होती है।
ग्राम नर्मदा अर्थात नर्मदा मैय्या के पवित्र कुंड से 1 कि.मी. की दूरी के बाद वन क्षेत्र प्रारंभ हो जाता है। सड़क के किनारे की पहाड़ियां लोगों को आमंत्रित करती हैं। हरे-भरे पेड़-पौधे जैसे हवा में हाथ लहराकर प्यार से सिर झुकाकर सबका स्वागत करते हैं। गरगरा घाटी का मनोरम दृश्य, ऊंचे-ऊंचे सागैन के वृक्ष और जंगलों से आती वनफूलों की खुशबु मन को आनंद से विभोर कर देती है। गरगरा के पास ही स्थित है-डोंगेश्वर धाम चोड़रापाट। कितनी उदार है यहां प्रकृति, जो अपने सौन्दर्य से आंखों को से तृप्त करती है।
जंगलपुर, अचानकपुर, चुचरूंगपुर, ठाकुरटोला रास्ते में पड़ने वाले गांव हैं। जहां के भोले-भाले और सहृदय ग्रामीण जन हंसते-मुस्कराते मिल जाते हैं। ठाकुरटोला पुरानी जमींदारी है। ठाकुरटोला के जमींदार परिवार द्वारा ही मंडीप खोल की प्रथम पूजा-अर्चना की जाती है। यह परम्परा कब से है ? इसकी निश्चित जानकारी कोई नहीं दे पाता। पर मंडीप खोल में जमींदार परिवार द्वारा पूजा-अर्चना की परम्परा प्राचीन है।
मंडीप खोल के भूतपूर्व जमींदार स्व. कप्तानलाल पुलस्त्य ने व्यवस्थित व प्रचारित किया। वर्तमान में उसके सुपुत्र वासुदेव सिंह पुलस्त्य के मार्गदर्शन में यहां मेला सम्पन्न होता है। ठाकुरटोला राज परिवार द्वारा मेले में आये यात्रियों के लिए भोजन आदि का प्रबंध किया जाता है। यह उल्लेखनीय बात है। अब तो यह भी प्रयास किया जा रहा है कि यात्री जब चाहें यहां आकर मंडीप खोल का भ्रमण व अवलोकन कर सकें।
ठाकुरटोला से आगे चलकर जैसे ही मंडीप खोल की ओर पश्चिम दिशा में प्रवेश करते हैं, मार्ग थोड़ा कठिन हो जाता है। उबड़-खाबड़ रास्ते पर थोड़ी कठिनाईयों के बाद दो पहिया या चार पहिया वाहनों से गन्तव्य तक पहुँचा जा सकता है। जंगली रास्ते में एक ही नाले को 10-12 बार पार करना पड़ता है। नाले का शीतल जल तन-मन को शान्ति देता है। ऊंचे-ऊंचे पेड़, बांसों के झुरमुट, घनी छाया वाले आम के फल व चार-तेंदू यात्रियों के मन को ललचाते हैं।
शाखों से फूटती नन्हीं-नन्हीं कोपलें, चिड़ियों का कलरव और मदमाती हवा तन-मन को पुलकित करती है। लोगों की भीड़ हृदय में उत्साह का संचार करती है। चारों ओर ऊंची पहाड़ियाँ यात्रियों को प्रेरित करती हैं, ऊंचा बनने के लिए। यहाँ आकर यात्री प्रकृति की सुन्दरता में खो जाता है। पर धीरज रखिये प्रकृति की अलौकिकता और उसके रहस्य को जानने के लिए मंडीप खोल के भीतर प्रवेश करना होगा। भीतर जाने के लिए अपने साथ प्रकाश की समुचित व्यवस्था यथा-बड़ा टार्च, पेट्रोमेक्स या सर्च लाईट आवश्यक है।
मंडीप खोल की गुफा अत्यंत प्राचीन है। यह उतनी ही प्राचीन है जितनी की हमारी सृष्टि। वह इसलिए कि गुफा का निर्माण एक पहाड़ी नाले से जान पड़ता है। वर्षा के दिनों में नाले का जल पहाड़ी के भीतर प्रवेश कर उसी पहाड़ी की दूसरी ओर निकल गया है। जहां से झरने के रूप में यह नाला अपनी यात्रा प्रारंभ करता है। इस स्थान को “सेतगंगा” कहते हैं। सेतगंगा का निर्मल जल कभी नहीं सूखता, जलस्रोत अदृश्य है। जैविक दृष्टि से सेतगंगा की अपनी अलग ही महत्ता है। यहां पर पायी जाने वाली मकड़ी, झिंगुर व मछलियां विशेष प्रकार की जान पड़ती हैं। यह जीव विज्ञानियों के लिए अनुसंधान का विषय है। लोग यहां आकर सेतगंगा में स्नान कर पुण्य का भागी बनते हैं।
मंडीप खोल के भीतर घना अंधकार है। यहां हाथ को हाथ नहीं सूझता। ऐसे में प्रवेश की समुचित व्यवस्था साथ में होना जरूरी है। प्रकाश व्यवस्था के बिना गुफा में प्रवेश करना संभव ही नहीं है। मंडीप खोल क मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर की ओर है। दक्षिण की ओर से भी प्रवेश किया जा सकता है, किन्तु यह मार्ग कठिन और सकरा है। कई स्थानों पर लेटकर या घसीट कर निकलना पड़ता है। जानकार लोगों के साथ ही यहाँ इस मार्ग से प्रवेश करना उचित है। प्राकृतिक रूप से निर्मित उत्तरी प्रवेश द्वार से भीतर जाने के बाद आगे बढ़ने के लिए झुककर चलना पड़ता है। फिर एक बड़े हाल की तरह आह्लादकारी स्थान यात्री के मन को रोमांच से भर देता है।
गुफा के भीतर कई गुफाएं, मंडीप खोल की विशेषता है। लम्बी और चौड़ी गुफाएं। यहां आकर ही प्रकृति की विचित्रता का अनुभव किया जा सकता है। बांयी ओर की गुफा चमगादड़ खोल कहलाती है। यहां चमगादड़ होने के कारण स्थानीय लोगों ने इस गुफा को चमगादड़ खोल का नाम दिया है। चमगादड़ खोल में शुभ्र रजतमय प्रकृति संरचना को देखकर अंचभित होना स्वाभाविक है।
यहां की प्राकृतिक संरचना को देखना स्वर्गिक सुख की प्राप्ति करना है। ऊपर उन संरचनाओं पर प्रकाश पड़ता है, तो वहां से अलौकिक किरणें निकलती दिखायी पड़ती हैं और देखने वाला वाह-वाह कर अभिभूत हो जाता है। चमगादड़ खोल में पैरो के नीचे नरम भुरभुरी मिट्टी, ऊपर रासायनिक क्रिया से निर्मित होने वाली धवल प्रस्तर संरचनाएं भू-वेत्ताओं व रसयानज्ञों के शोध से ही यहां की अदभूत संरचनाएं आम लोगों के समझ में आ पायेंगी। तब यह सिद्ध हो पायेगा कि मंडीप खोल की प्राकृतिक संरचना हजारों वर्ष पुरानी है।
चमगादड़ खोल से वापस लौटकर आगे बढ़ने पर ऊपर शिवलिंग की मूर्ति है। जहाँ श्रद्धालुओं द्वारा उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पहुँचने के लिए बांस की सीढ़ी लगायी जाती है। तभी लोग ऊपर पहुंच पाते हैं। यह काफी कठिन चढ़ाई है, पर प्रकृति को जानने की उत्सुकता सारी कठिनाईयों को सरल बना देती है।
मंडीप खोल में पाताल खोल की अपनी अलग विशेषता है। इसकी गहराई बहुत अधिक है। और नीचे घना अंधकार है। अतः लोगों ने इसे पाताल खोल का नाम दिया है। मंडीप खोल में कई स्थानों पर छत से पानी की बूंदें टपकती दिखायी पड़ती हैं, जो प्रकाश पड़ने पर अद्भूत रूप से प्रकाशित होती हैं। फलस्वरूप कौतुहलवश उन बूंदों को स्पर्श कर आनंद का सहज अनुभव होता है। जैसे-जैसे गुफा में आगे बढ़ते हैं, प्रकृति तन्मयता के साथ इस गुफा के रहस्यों के नये-नये अध्याय और उसके लिए नये-नये द्वार खोलती जाती है। लेटकर, घसीटकर आगे बढ़े कि गुफा का विस्तृत दायरा मन को रोमांचित कर देता है।
गुफा के अन्दर की मनोरम आकृतियाँ और संरचना उस निराकार चितेरे का कमाल है, जिसे हम देख नहीं पाते। किन्तु यहाँ आकर उस कृतिकार के कलारूप और उसकी उपस्थिति का अनुभव किया जा सकता है। प्रकृति द्वारा इन अनोखी आकृतियों को देखकर आंखे थकती नहीं। देखते ही रहने का मन करता है। यहां की विचित्रता, सुन्दरता और उसकी विशेषताएं देखकर लोगों ने इन गुफाओं को अलग-अलग नाम दिया है। इन्द्रलोक गुफा, इन्द्रलोक की तरह ही शोभायमान, मीना बाजार गुफा आदि। इन सबकी संरचनाओं की विशेषताएं भिन्न-भिन्न हैं।
सैकड़ों की संख्या में प्राकृतिक रूप से उद्भूत यहाँ शिवलिंग विशेष दर्शनीय हैं। ये आकृतियाँ अमरनाथ गुफा की स्मरण कराती हैं। इन्हें देखकर बरबस ही हृदय आस्था से भर जाता है, सिर श्रद्धा से झुक जाता है। प्रकृति के ये विस्मयकारी शिवलिंग अंग-अंग को आह्लादित कर देते है। ऐसा सुदर्शन और आंनददायक स्थान अन्यत्र शायद ही मिले। मंडीप खोल की गुफाएं और उसकी प्राकृतिक संरचनाएँ हृदय को रहस्य व रोमांच से भर देती है।
मंडीप खोल की गुफाएँ किसी भी रूप में कुटुमसर की गुफाओं से कमतर नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि समुचित ढंग से व समग्र रूप से मंडीप खोल की गुफाओं का वैज्ञानिक सर्वेक्षण हो। यहां की प्राकृतिक सरंचनाओं और यहां पाये जाने वाले जीव-जन्तुओं पर शोध हो। यहां तक पहुंचने के लिए सुगम मार्ग का निर्माण हो। यात्रियों के लिए पेयजल, विश्राम आदि की व्यावस्था हो। इसकी विशेषताओं को प्रचारित किया जाये। क्योंकि राजनांदगांव जिले में इस तरह की गुफाएँ अन्यत्र शायद ही हों।
मंडीप खोल की गुफाओ की ओर संभवतः छत्तीसगढ़ शासन पर्यटन विभाग का ध्यान नहीं गया है। यदि पर्यटन विभाग इस गुफा को अपने संरक्षण में ले लेता है तो निश्चित रूप से पर्यटन विभाग के लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी और इसका विकास भी संभव हो पायेगा। इसके लिए इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के द्वारा प्रयास की दरकार है।
आज मंडीप खोल गुफा की सुरक्षा की भी बड़ी आवश्यकता है। क्योंकि यहां आने वाले यात्री कौतुहल वश गुफा की भीतरी संरचनाओं को तोड़कर नुकसान पहुंचाते हैं। उन्हें क्या मालूम कि ऐसी प्राकृतिक संरचनाओं के निर्माण में हजारों वर्ष लग जाते है? वे इसके महत्व से अनभिज्ञ हैं। उन्हें इन प्राकृतिक संरचनाओं के महत्व को समझाना होगा, ताकि रहस्य व रोमांच से भरी मंडीप खोल की अमूल्य प्राकृतिक धरोहर भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके।
आजकल तो लोगों में मंडीप खोल के खोजकर्ता बनने की होड़ लगी हुई है। कुछ स्वनाम धन्य लोगों ने अपने आपको मंडीप खोल के खोजकर्ता कह कर प्रचारित किया है। भला जिस गुफा में जमींदार परिवार द्वारा लगभग तीन-चार पीढ़ियों से पूजा-अर्चना की जा रही है। तब से क्षेत्र के लोगों के लिए जो गुफा आस्था का केन्द्र है।
उस गुफा में भला तीन-चार साल या साल भर से आने वाले लोग मंडीप खोल के खोजकर्ता कैसे हो सकते है? इन महानुभवों ने तो मंडीप खोल के पांरपरिक नाम को ही बदल कर किसी ने “मनदीप खोल” तो किसी ने गिरिकंदरा मंडी खोल बना दिया है। ऐसे महानुभाव मंडीप खोल के खोजकर्ता बनने के बजाय मंडीप खोल की भीतरी संरचनाओं, जीव-जन्तुओं आदि पर शोध कर मंडीप खोल की विशेषताओं से लोगों को अवगत करायें तो यह ज्यादा श्रेयस्कर होगा।
आलेख एवं छायाचित्र
Very informative post of Mandip khol
With beautiful picture ❣️❣️