मित्र का सभी मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। किसी व्यक्ति के मित्रों के व्यक्तित्व से ही संबंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंदाजा सहज रूप से लगाया जा सकता है। सरल शब्दों में कहा जाये तो दो मित्र एक दूसरे का प्रतिबिंब होते हैं। ये एक ऐसा नाता होता है जिनमें रक्त संबंध नहीं होता पर ये उससे बढ़कर होता है।
हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी राम-सुग्रीव, राम-विभिषण, कृष्ण-सुदामा, कृष्ण-अर्जुन, दुर्योधन-कर्ण जैसे मित्रों का वर्णन मिलता है। मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में भी मित्रता ने स्थान पाया है। चाहे वह इंसान से इंसान की मित्रता हो जानवर की।
छत्तीसगढ़ में भी मित्रता के नाते को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। हमारे यहां मितान बदने की परंपरा है। मतलब किसी धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुओं का साक्षी रखकर जीवन भर के लिए मित्र (मितान) बनाया जाता है। मितान बदने वाले दो परिवार जीवनपर्यंत इस संबंध का निर्वहन करते हैं।
महापरसाद, गंगाजल, गंगाबारू, गजामूंग, भोजली, जंवारा, तुलसीदल, रैनी, दौनापान, गोबरधन आदि मितान के संबोधन है। मितान बदने के बाद मितान का नाम नहीं लिया जाता बल्कि उसे उपरोक्त संबोधन से संबोधित किया जाता है। परस्पर भेंट होने पर सीताराम महापरसाद, भोजली या अन्य संबोधन का प्रयोग होता है। कुल जमा कहने का तात्पर्य है कि मितान को परस्पर भेंट के समय सीताराम कहना अनिवार्य है।
भिन्न-भिन्न अवसर और पर्व आदि पर मितान बदने की परंपरा
गजामूंग-आषाढ महीने में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है और इस अवसर पर गजामूंग (अंकुरित चना व मूंग) के प्रसाद का वितरण होता है। महाप्रभु के इस प्रसाद को साक्षी मानकर गजामूंग मितान बदा जाता है।
महापरसाद– छत्तीसगढ का पड़ोसी राज्य ओडिशा से विशेष जुडाव है। यहां की संस्कृति में उत्कल प्रभाव देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के लोगों की जगन्नाथ भगवान पर अगाध श्रद्धा है। हर साल बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के श्रद्धालु जगन्नाथपुरी की यात्रा करते हैं। वहां पर मिलने वाले जगन्नाथ महाप्रभु के भोग महापरसाद को लोग लेकर आते हैं। महापरसाद खिलाकर महापरसाद बदा जाता है।
गंगाजल– हिंदू धर्मावलंबियों का गंगा मैया पर विशेष श्रद्धा है।जब किसी को गंगा मैया के दर्शन लाभ का अवसर मिलता है तो अपने साथ गंगाजल लेकर जरूर लौटते हैं। गंगाजल लेकर गंगाजल बदा जाता है।
गंगाबारू– गंगाजल की तरह गंगा की रेत, जिसे गंगाबारू कहा जाता है। इसका भी बड़ा महत्व है। गंगा की रेत से गंगाबारू बदा जाता है।
भोजली– भादो मास में छत्तीसगढ़ में भोजली बोने की परंपरा है। भोजली आदिशक्ति जगदंबा की आराधना का माध्यम है। भोजली के विसर्जन के समय भोजली बदा जाता है।
जंवारा– छत्तीसगढ मातृशक्ति का उपासक राज्य है। यहां ठांव-ठांव पर आदिशक्ति जगदंबा भिन्न-भिन्न नाम रूप में विराजित है। चैत्र और क्वांर दोनों नवरात्र पर छत्तीसगढ़ में जंवारा बोने की परंपरा है।जंवारा विसर्जन के समय जंवारा बदा जाता है।
रैनी– नवरात्र पर्व के बाद आता है। अच्छाई की बुराई पर जीत का महापर्व दशहरा। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में रावण दहन किया जाता है। रावण दहन पश्चात एक दूसरे को रैनी पान भेंटकर दशहरे की शुभकामना दी जाती है। इस अवसर पर रैनी बदने की परंपरा है।
गोबरधन– दीपावली का पर्व छत्तीसगढ़ में धूम धाम से मनाया जाता है। गौ-पालन की संस्कृति से जुड़े छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा की विशिष्ट परंपरा है। गोवर्धन पूजा के दिन गोठान में छोटे से बछड़े को सोहाई बांधकर और उसका पूजन कर अन्य ग्राम्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद गौ के गोबर का एक दूसरे के ऊपर तिलक लगाकर गोवर्धन पूजा की बधाई दी जाती है। इस अवसर पर गोवर्धन बदा जाता है।
दौनापान– छत्तीसगढ के ग्रामीण क्षेत्रों के घर और बाड़ी में एक खुशबूदार पेड़ दौना जरूर लगाया जाता है। इस पौधे की पत्तियों को एक दूसरे के कान में खोंसकर दौनापान बदा जाता है।
तुलसीदल- तुलसी का पेड़ छत्तीसगढ़ के घर-घर में मिलता है। जनमानस में तुलसी के प्रति अगाध श्रद्धा देखने को मिलती है। हर शाम तुलसी चौरा में दीपक जलाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में पुरातन काल से चली आ रही है। तुलसी की पत्तियों से तुलसीदल बदा जाता है।
पर्व विशेष से जुड़े मितान बदने की परंपरा पर्वादि पर ही होती हैं जबकि महापरसाद, गंगाजल, तुलसीदल, दौनापान कभी भी बदा जा सकता है। खासतौर से गांव में बूढी औरतें जो कि मुंहबोली दादियां होती है छोटे-छोटे नाती सदृश्य बच्चों के साथ उपरोक्त मितान जरूर बदती हैं।
मितान को जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है। इसलिए विशेष रूप से पूरी जिम्मेदारी के साथ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। विभिन्न पर्व आदि पर एक दूसरे के घर दाल-चावल और सब्जियों आदि का भेंट भिजवाया जाता है। एक व्यक्ति के किसी परिवार में मितान बदने के साथ ही पूरा परिवार मितानी संबंध से बंध जाता है।
सामान्यतः इसे फ़ूलवारी संबंध कहा जाता है। मतलब मितान के पिताजी को फ़ूलबाबू, माता को फ़ूलदाई कहा जाता है और भाई बहनों को फ़ूलवारी भाई बहन। मितान बदने में ऊंच-नीच, जाति-पाति, धर्म और अमीरी-गरीबी आड़े नहीं आती। प्राय: सुख-दुख के सभी मौके पर मितान एक दूसरे के साथ दृढ़ता से खड़े मिलते हैं। मितानी परंपरा सीख देती है अपने मित्र (मितान) के प्रति विश्वास और जिम्मेदारी को जीवन पर्यन्त पालन करने की। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा भी है-
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरू समाना।
सीताराम मितान
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