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स्थापत्य कला में गजलक्ष्मी प्रतिमाओं का अंकन : छत्तीसगढ़

लक्ष्मी जी की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि देवों तथा असुरों द्वारा समुद्र मंथन करते समय उससे उत्पन्न हुये चौदह रत्नों में से लक्ष्मी जी भी एक रत्न थीं। वे कमल के आसन पर बैठी हुई कमल पुष्प हाथ में धारण किये हुये प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी जी भृगु की कन्या थीं तथा धाता एवं विधाता नामक इनके दो भाई थे। उनकी माता का नाम ख्याति था। यही लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हुई। गंगा आदि पवित्र नदियाँ अपने जल से लक्ष्मी को स्नान करवाने के लिये उपस्थित हुई।

स्नान के बाद उनके अंग प्रत्यंग में अनेक प्रकार के आभूषण विश्वकर्मा जी ने आकर पहनाये तथा खिले हुये कमल पुष्पों की माला क्षीरसागर ने उन्हें प्रदान की। इस प्रकार पवित्र जल से स्नान करायी हुई, दिव्य आभूषणों को धारण करने वाली सुन्दर वस्त्र एवं माला आदि से अलंकृत की हुई लक्ष्मी भगवान विष्णु में समा गयीं और वे उन्हीं के वक्ष स्थल पर विराजमान हो गयीं। सरस्वती ने मोतियों का हार, ब्रह्मा जी ने कमल तथा नागों ने दो कुण्डल समर्पित किये।

लक्ष्मी का यह रूप भरहुत, साँची, बोधगया, अमरावती, तथा अन्य स्थलों में कहीं-कहीं पर अंकित हैं। इनमें लक्ष्मी कमल के आसन पर या तो बैठी हुई या खड़ी प्रदर्शित हैं। हाथ में कमल पुष्प लिये, विकसित कमल से घिरी हुई हैं, कमल पुष्प के पत्र फैले हुये हैं। वे दो हाथियों से स्नान कराई जा रही हैं। मौर्य तथा शुंग काल की अनेक मुद्राओं पर लक्ष्मी का यही रूप है। ऋग्वेद के श्रीसूक्त में श्रीदेवी या क्षमा के नाम से लक्ष्मी का उल्लेख मिलता है। यजुर्वेद में श्री और लक्ष्मी को परम पुरूष की भार्या कहा गया है।

अथर्ववेद में श्री, रामायण तथा महाभारत में श्री तथा लक्ष्मी का उल्लेख हुआ है। कालान्तर में श्री और लक्ष्मी को एक माना जाने लगा। उपनिषद् और सूत्र लक्ष्मी की उत्पत्ति प्रजापति से, जबकि पुराण समुद्रगर्भ से मानते है। पौराणिक साहित्य में विष्णु-पत्नी लक्ष्मी, कल्याण, सौन्दर्य तथा समृद्धि की देवी के रूप में वर्णित है। भारतीय शिल्प में शुंग, सातवाहन काल से लक्ष्मी का अंकन प्रारंभ हुआ।

कुषाण काल तथा गुप्त काल में भी लक्ष्मी की अनेक प्रतिमाएँ निर्मित होने की जानकारी मिलती है। वैष्णव मंदिरों के द्वार उत्तरंग में लक्ष्मी अथवा गजलक्ष्मी की मूर्ति प्रतिष्ठित करने एवं पूजा करने का विधान जयाद्रि संहिता, अग्निपुराण, ईश्वर संहिता, अपराजितपृच्छा आदि ग्रंथों में उपलब्ध है।

डीपाडीह, सरगुजा संभाग से प्राप्त गजलक्ष्मी प्रतिमा

छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला में भी गजलक्ष्मी की प्रतिमाएँ देवरानी मंदिर ताला की द्वारशाखा के सिरदल में, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी जिला बलौदा बाजार के उत्तरी जंधा में, इन्दल देवल मंदिर खरौद जिला जांजगीर-चाँपा के शिखर भाग में, सिरपुर जिला महासमुंद स्थित हरिहर मंदिर के ललाटबिम्ब में, शिवमंदिर चन्दखुरी जिला रायपुर के सिरदल में, देवी का मंदिर तरेंगा जिला बलौदाबाजार की भित्ति में, महेशपुर के कुरिया झुरकी टीले से एक विलग तथा एक लघु आकार में, बंकेश्वर मंदिर तुमान जिला कोरबा की द्वारशाखा के उदुम्बर में, डीपाडीह जिला बलरामपुर स्थित सामत सरना मंदिर की द्वारशाखा के सिरदल में एवं एक विलग रखे सिरदल में, शिवमंदिर गनियारी जिला बिलासपुर की द्वारशाखा के सिरदल में शिवमंदिर किरारीगोढ़ी जिला बिलासपुर की जंघा में, राजीवलोचन मंदिर राजिम के मण्डप के स्तंभ में एवं प्राकार के प्रवेश द्वार के सिरदल में, नारायण मंदिर नारायणपाल जिला बस्तर की द्वारशाखा के सिरदल में सीतादेवी मंदिर देवरबीजा जिला बेमेतरा की द्वारशाखा के सिरदल में, फणिकेश्वरनाथ महादेव मंदिर फिंगेश्वर जिला गरियाबंद के गर्भगृह की द्वारशाखा के सिरदल में, छेरकी महल, जिला कबीरधाम के सिरदल में, दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के गर्भगृह के सिरदल में जगन्नाथ मंदिर राजिम के सिरदल में, दूधाधारी मठ जिला रायपुर की द्वारशाखा के सिरदल में गजलक्ष्मी की प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं जो विभिन्न कालों की हैं।

छत्तीसगढ़ में ताला स्थित देवरानी मंदिर के ललाटविम्ब के ऊपरी परत में उत्कीर्ण अभिषेक करते हुये गजलक्ष्मी का दृश्य बड़ा ही विशिष्ट प्रकार का है। इसमें पद्मासनस्थ लक्ष्मी का अभिषेक गजों के द्वारा कराने का दृश्य है, जिसमें दोनों पार्श्वों में दो-दो गजों का अंकन है तथा गजों के द्वारा अभिषेक करने की प्रक्रिया बड़ी ही मनोरम एवं कलात्मक है। डॉ. कृष्णदेव के अनुसार देवरानी मंदिर के सिरदल में गजलक्ष्मी को विद्याधर चार गजयुगल के द्वारा मतानुसार यह मंदिर 575-600ई. में निर्मित किया गया है। शिवमंदिर चंदखुरी, जिला रायपुर के ललाटबिम्ब में भी सोमवंशी कालीन निर्मित गजलक्ष्मी का अंकन है। इसमें लक्ष्मी पद्मासनस्थ जलाभिषेक करते हुये प्रदर्शित किये गये हैं तथा गज के पीछे भी दोनों तरफ एक-एक गज पीछे की ओर मुड़कर घट पकड़े हुये प्रदर्शित किये गये है जैसा कि देवरानी मंदिर ताला के सिरदल में गजलक्ष्मी का अंकन है।

सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, जिला बलौदाबाजार के बालसमुंद तालाब की मेंड़ में ईंट निर्मित मंदिर के जंघा भाग में भी उत्तरी भित्ति के भद्ररथ में गजलक्ष्मी का अंकन है। लक्ष्मी पद्मासन में विराजमान हैं तथा दोनों तरफ से गज अभिषेक करते हुये प्रदर्शित किये गये है। यह मंदिर 675-700 ई में निर्मित माना गया है। डॉ. कृष्णदेव के अनुसार सिद्धेश्वर मंदिर पलारी जिला बलौदाबाजार तथा इन्दल देवल मंदिर खरौद, जिला जांजगीर-चांपा के मंदिर में निर्मित गजलक्ष्मी में समानता हैं।

राजिम जिला गरियाबंद स्थित राजीवलोचन मंदिर के महामण्डप के एक स्तंभ पर गजलक्ष्मी का अंकन है तथा दूसरी प्रतिमा इसी मंदिर परिसर में प्राकार के प्रवेशद्वार के सिरदल के ललाट विम्ब में आसनस्थ अंकित की गई है। प्राकार के सिरदल के ललाटबिम्ब पर अंकित प्रतिमा में देवी (लक्ष्मी) पूर्ण उत्फुल्ल कमल पर आसीन है तथा उनके दोनों तरफ एक-एक गज की प्रतिमा है। जिनके सूँड़ ऊपर की ओर उठे हुये तथा वे अपने सूँड़ में कुम्भ लिये हुये हैं। कुम्भ अधोमुख है। इस तरह दो हाथियों द्वारा देवी के जलाभिषेक किये जाने का दृश्य यहॉं अंकित किया गया है।

इस प्रकार की प्रतिमा महेशपुर के ताराकृति शिवमंदिर परिसर में रखे प्रस्तर स्तंभ में भी उत्कीर्ण प्राप्त हुई है जिसमें गजलक्ष्मी के नीचे वानर का अंकन है। वानर अपने तीन पैरों के सहारे खड़ा हुआ प्रदर्शित है तथा आगे का एक हाथ माथे पर रखा हुआ है। वानर का मुख पीछे की तरफ मुड़ा होने से उसके मुख की स्थिति अस्पष्ट दिखती है लेकिन विशेष परीक्षण करने पर मुख के ऊपर दो ऑंखों के चिह्न भी दिखाई पड़ते हैं। गज अपने पिछले दो पैरों से खड़े हुये प्रदर्शित हैं। प्रो. ए.एल. श्रीवास्तव के अनुसार जलाभिषेक करते हुए गजों के द्वारा पानी की धार बहकर नीचे तक बहती हुई दिखाई गयी है। इसी स्तंभ के दूसरी सतह पर कुबेर तथा उसके नीचे मूषक का अंकन है।

महेशपुर सरगुजा से प्राप्त गजलक्ष्मी प्रतिमा

सरगुजा जिले के डीपाडीह स्थित सामत सरना समूह में शिवमंदिर की अवशिष्ट द्वारशाखा के सिरदल के ललाटबिम्ब में पद्मासन में बैठी हुई द्विभुजी गजलक्ष्मी प्रदर्शित है जिसके दोनों हाथों में सनाल कमलपुष्प है। इसके दोनों ओर कमल पर खड़े हुये एक-एक गज, लक्ष्मी का अभिषेक कर रहे हैं। सिरदल की प्रथम पट्टी में लतावल्लरी एवं मालाधारी विद्याधर युगलों का अंकन है। डॉ. विवेकदत्त झा के अनुसार यह गजलक्ष्मी चतुर्भुजी है तथा कमल के ऊपर पद्मासनस्थ है तथा सामान्य आभूषण है। वह ऊपरी हाथ में सनाल कमल धारण किये हुये तथा निचला हाथ खण्डित है।

यह प्रतिमा नौवीं शती ई. की है। मलवा सफाई से वर्ष 1988 में प्राप्त सिरदल की यह प्रतिमा पूर्व में दो खण्डो में विभक्त थी जिसे बाद में रसायनिक संरक्षण कार्य के दौरान लेखक द्वारा स्टीलराड एवं रसायनों के द्वारा जोड़कर अनुरक्षण कार्य से मूल स्थिति में खड़ा किया गया है। इसके अलावा डीपाडीह स्थित सामत सरना मंदिर परिसर में ही एक गजलक्ष्मी युक्त सिरदल प्राप्त हुआ है जिसके दोनों तरफ कीर्तिमुखों का एक पंक्ति में अंकन है।

विगत वर्षो में सिरपुर स्थित गंधर्वेश्वर मंदिर के उत्तर-पूर्व में हरिहर मंदिर में, उत्खनन निदेशक श्री अरूण कुमार शर्मा, द्वारा कराये गये उत्खनन कार्य में एक गजलक्ष्मीयुक्त सिरदल प्राप्त हुआ है जिसमें गजलक्ष्मी की प्रतिमा क्षरित है। शिवनाथ नदी के पुरातत्वीय सर्वेक्षण के दौरान लेखक को ग्राम तरेंगा जिला बलौदाबाजार के मंदिर की भित्ति में जड़ी हुई एक आठवीं शताब्दी की गजलक्ष्मी की प्रतिमा प्रकाश में आयी है।

गजलक्ष्मी पद्मासन मुद्रा में विराजमान है जो द्विभुजी प्रदर्शित है। दायां हाथ पालथी पर रखा है तथा बांये हाथ से घट धारण किये हैं। सिरोभाग में प्रभामण्उल, कर्ण कुण्डल, स्तनहार, बाजूबंद, तथा कंगन आभूषण हैं। लक्ष्मी के सिरोभाग में दो गज आमने सामने खड़े होकर घट से जलाभिषेक करते हुए प्रदर्शित हैं। लक्ष्मी के दोनो तरफ अर्थात गजों के नीचु दो सेविकायें अर्थात चॅंवरधारिणी खड़ी हुई प्रदर्शित हैं। प्रतिमा का काल 8-9वीं शताब्दी ई. संभावित हैं। यह प्रतिमा किसी वैष्णव मंदिर के सिरदल का भाग है।

इसके बाद विगत वर्षो में महेशपुर में उत्खनन के द्वारा कुरिया झुरकी नामक टीले से गजलक्ष्मी की एक विलग प्रतिमा प्राप्त हुई है जो छत्तीसगढ़ की अभी तक ज्ञात प्रतिमाओं में से स्वतंत्र कोटि की है।

विष्णु मंदिर जाँजगीर जिला जाँजगीर चाँपा के द्वारशाखा के सिरदल के मध्य में भी चतुर्भुजी गजलक्ष्मी का अंकन है जो 12वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर है। इसी प्रकार शिवमंदिर गनियारी जिला बिलासपुर के सिरदल में भी गज लक्ष्मी का अंकन दृष्टव्य है। इसमें लक्ष्मी पद्मासन में विराजमान है तथा दोनों ऊपरी हाथ में गज को ऊपर उठाये हुए हैं एवं निचले दोनों हाथ पालथी पर रखे हैं।

शिव मंदिर किरारीगोढ़ी, जिला बिलासपुर के कलचुरी कालीन मंदिर के अवशिष्ट अधिष्ठान भाग में पाँचवें थर के मध्य में अगल-बगल दो-दो गजों के मध्य पद्मासनस्थ लक्ष्मी का सुस्पष्ट अंकन दृष्टव्य है। मंदिर के अधिष्ठान के मध्यस्थ में गजलक्ष्मी अंकित है जिसमें दोनों तरफ से गज शुण्ड से घट पकड़कर अभिषेक कर रहे हैं। यह प्रतिमा तीनों मध्य रथों में है जबकि अनुरथ तथा कोणरथ में केवल गज पंक्ति है। सीतादेवी मंदिर देवरबीजा जिला दुर्ग के मंदिर के जंघा भाग के अलिंद में भी गजलक्ष्मी का अंकन है। उपर्युक्त सभी मंदिर लगभग 11-12 वी शताब्दी ई. में निर्मित प्रतीत होते हैं। सिरदल में अंकित लक्ष्मी प्रतिमाएं भी उसी समय की होना स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर सम्भाग में बारसूर, दन्तेवाड़ा, भैरमगढ़ बस्तर ग्राम और जगदलपुर में लक्ष्मी की मध्यकालीन प्रतिमाएँ निर्मित की गई है। नारायण मंदिर, नारायणपाल जिला बस्तर के गर्भगृह की द्वारशाखा के सिरदल में बायें कोने में द्विभुजी गजलक्ष्मी का अंकन है जो 12वीं शती ई. में निर्मित प्रतीत होती है।

देवरानी जेठानी मंदिर ताला की गजलक्ष्मी प्रतिमा

दन्तेवाड़ा में स्थित दन्तेश्वरी मंदिर के गर्भगृह के ललाट बिम्ब पर गजलक्ष्मी की आकृति उकेरी गई है। लक्ष्मी पद्मासन विराजमान हैं तथा दोनों तरफ से गज जलाभिषेक करते हुये प्रदर्शित किये गये हैं। दन्तेवाड़ा स्थित दन्तेश्वरी मंदिर के मएडप में प्रदर्शित गज लक्ष्मी प्रतिमा की द्विभुजी प्रतिमा प्रदशित है। प्रतिमा का ऊपरी हिस्सा अर्द्धगोलाकार है जिसके मध्य में एक बड़ा कलश दोनों गज अपनी सूड़ से ऊपर उठाये हुये प्रदर्शित हे। लक्ष्मी पद्मासन में विराजमान हैं जो अपने दोनों हाथों से कमलदल को पकड़े हुये हैं। लक्ष्मी के दोनों पार्श्व में दो गज चारों पैर से खड़े हुये हैं तथा अपनी सूँड़ों से घटों के द्वारा जलाभिषेक कर रहे हैं जिसके ऊपर एक और बड़ा घड़ा रखा है जो दक्षिण भारतीय कला तथा परवर्ती काल में निर्मित प्रतिमा का द्योतक है। यह प्रतिमा लगभग 13-14वीं शताब्दी ईस्वी में निर्मित प्रतीत होती है।

बस्तर ग्राम में देवी मंदिर के ललाटबिम्ब पर दोहरे पद्म पर पद्मासन मुद्रा में आसीन चतुर्भुजी देवी का अभिषेक, पद्मासन से उद्भूत कमल पुष्पों पर खड़े गज अभिषेक करते दिखाये गये हैं। देवी लक्ष्मी के ऊपरी हाथों में सनाल कमल, तथा निचला बांया हाथ अभय मुद्रा में तथा चौथा हाथ खण्डित है। सिरदल पर देवी प्रतिमा के दोनों तरफ पत्र पुष्पावली के अंदर सिंह, हाथी, और हंस का अंकन मनोहारी है। यह प्रतिमा भी 11वीं शती ई. की है।

कबीरधाम जिले के ग्राम चौरा में ईट निर्मित मंदिर छेरकी महल की द्वारशाखा के सिरदल के मध्य में चतुर्भुजी आसनस्थ लक्ष्मी का अंकन है। सिरदल के बांए कोने पर चतुर्भुजी गणेश बैठे हुये प्रदर्शित हैं। यह मंदिर भी कवर्धा के फणिनागवंशी शासकों के राजत्व काल में 14 वीं शती के उत्तरार्द्ध में निर्मित कराया गया होगा।

रायपुर जिला मुख्यालय में दूधाधारी मठ परिसर में स्थापित रघुनाथ मंदिर की द्वारशाखा के ललाटबिम्ब की निचली पट्टी में गजलक्ष्मी का अंकन है। इस मंदिर का निर्माण राजा जेत सिंह साव के समय में 16वीं शतीई. के मध्य में हुआ था। इसी काल के लक्ष्मीनारायण मंदिर राजिम जिला गरियाबंद के मराठा कालीन मंदिर के सिरदल में भी गज लक्ष्मी का अंकन है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला में भी 5-6वीं शताब्दी अथवा पूर्व मध्य काल से लेकर अद्यतन लक्ष्मी प्रतिमाओं का निर्माण होता रहा है। लक्ष्मी विष्णु की आत्मा तथा शक्ति हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि लक्ष्मी की प्रतिष्ठा और अंकन सभी धर्मों में समान रूप से लोकप्रिय रहा है।

संदर्भः

  1. विष्णु पुराण, 1/8/15
    2 विष्णु पुराण, 1/9/104
    3 श्रीमद्भागवत, 8/8/12-16
    4 जे.एन.बैनर्जी, डे. हि. आ, पृष्ठ 209
    5 एनु. रि. आ. आर. सर्वे. आफ इण्यि, 1913-14, पृष्ठ 116
    6 ऋग्वेद श्री सूक्त 5,87,25,
    7 बाजसनेयी संहिता 31,22
    8 ए.के. कुमारस्वामी, हिस्ट्री आफ इण्डियन एण्ड इण्डोनेशियन आर्ट, पृष्ठ 43,
    9 शशिबाला श्रीवास्तव, भारतीय मंदिर एवं देवमूर्तियॉं भाग2, पृष्ठ 255,
    10 रिडिल आफ इण्डियन आइकोनोग्राफी (जेटेटिक आन रेयर आइकान फ्रॉम ताला,) सम्पादक, एल. एस. निगम, 2000, पृष्ठ 48.
    11 कृष्णदेव, महाकोसल स्टाइल (लगभग ई. सन्550-750) पुरातन, अंक 9, पृष्ठ 6
    12 उक्तानुसार , पृष्ठ 9
    13 विष्णु सिंह ठाकुर, राजिम, 1972, पृष्ठ 123.
    14 कामता प्रसाद वर्मा, महेशपुर की कला, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, रायपुर 2012, पृष्ठ 10.
    15 विवेकदत्त झा, ्यआर्ट आफ सरगुजा्य, पुरातन, अंक 9, 1994, पृष्ठ 14,
    16 कामता प्रसाद वर्मा, छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला, सरगुजा जिले के विशेष संदर्भ में, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, रायपुर, 2010, पृष्ठ 47.
    17 ए. के. शर्मा, एन्शियन्ट टेम्पलस आफ सिरपुर, 2012, पृष्ठ 201, प्लेट 47-ए
    18 कामता प्रसाद वर्मा, संस्कृति सरिता शिवनाथ, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, रायपुर, 2012, पृष्ठ 67.
    19 कला वैभव , संयुक्तांक 13-14, (2003-2004), शिव मंदिर गनियारी, कामता प्रसाद वर्मा, पृष्ठ 95.
    20 पुरातन, अंक 9, दुर्ग जिले के कलचुरी कालीन मंदिर, संतोष कुमार वाजपेयी, पृष्ठ 115.
    21 विवेकदत्त झा, बस्तर का मूर्तिशिल्प, 1989, पृष्ठ 93
    22 कामता प्रसाद वर्मा, बस्तर की स्थापत्य कला, शताक्षी प्रकाशन, रायपुर, 2008, पृष्ठ 114.
    23 पूर्वोक्त, पृष्ठ 93.
    24 जी. के. चन्द्रौल, भोरमदेव प्रदशिका, 2001, पृष्ठ 27.

आलेख

डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
उप संचालक (से नि) संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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