प्राचीन इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि राजे-रजवाड़ों एवं जमीदारियों में शक्ति की उपासना की जाती थी और वर्तमान में भी की जाती है। शक्ति की उपासना से राजा शत्रुओं पर विजय के लिए शक्ति प्राप्त करता था। वह शक्ति को चराचर जगत में एक ही है पर वह भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है।
ऐसी ही एक शक्ति की देवी हैं खम्भेश्वरी माता, जो छत्तीसगढ़ के भैना राजाओं की कुल देवी एवं सर्वजनों की आराध्य हैं। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना तहसील से पदमपुर रोड पर 10 कि मी की दूरी मे स्थित गढ़फ़ूलझर कौडिया-राज कहलाता है। जिसका विस्तार कोमाखान से सोनाखान तक रहा है।
यहाँ भैना राजा का गढ़ वर्तमान मे खंडहर रुप मे विद्यमान है। यहां पर फ़ूलझर राज के भैना राजाओं की कुलदेवी खम्भेश्वरी पाटनेश्वरी और समलेश्वरी देवी की स्थापना गढ़ के अंदर एक विशालकाय इमली वृक्ष के नीचे है स्थापित है, जहाँ स्थानीय लोगों द्वरा मंदिर तैयार करवा दिया गया है।
जनश्रुति के अनुसार क्षेत्र के जनमानस खम्भेश्वरी देवी को अत्यंत शक्तिशाली देवी व महिमामयी देवी मानते है। देवी अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए रात्रि मे गांव मे भ्रमण करती है, जिससे उस राज्य का जनमानस सुरक्षित रहे और किसी विपदा का शिकार न हो। कहते हैं कि जब देवी निकलती है तो शेर की पदचापों की आवाज आती है।
भगवान नरसिंह नाथ जी हिरण्यकश्यप का वध करने के लिये खम्भे से प्रकट हुए तो उस खंभा स्वरूप गर्भ में धारण करने वाली देवी को खम्भेश्वरी माता के रूप मे देवी मानते आ रहे हैं।गर्भ या खंभा रुपी देवी रौद्र-रुप नरसिंह नाथ को भी अपने अंदर समाहित रखती है या धारण करती है।
जो देवी भगवान नरसिंह नाथ को खम्भे से जन्म देनी की शक्ति रखती है उसका निश्चय ही अति शक्तिशाली होना स्वभाविक है और खम्भेश्वरी देवी की स्थापना इसी कारण भैना राजाओं के द्वारा कुलदेवी के रूप में गढ़ की रक्षा हेतु गढ़ अर्थात राज्य की रक्षिका देवी के रूप में गढ़ के अंदर स्थापित की गई।
छत्तीसगढ़ में देवी देवताओं से मानता करने को बदना या गेरुआ बांधना कहा जाता है। जिस भी देवता से आप कुछ मांगते हैं तो उस मांग के संकल्प के निमित्त देव स्थान में धागा, नारियल आदि बांध दिया जाता है एवं मांग पूर्ण होने पर उसे खोला जाता है तथा देवी देवता को भेंट दी जाती है। खम्भेश्वरी माता में भी छोटा बदना एवं बड़ा बदना बांधा जाता है। मान्यतानुसार छोटे बदना में देवी को सिंदूर चढ़ाया जाता है तथा बड़े बदना में खैरा बोकरा (गेंहूआ रंग का बकरा) दिया जाता है।
गढ़फ़ूलझर का एक बाल ब्रम्हचारी प्रतापी राजा हुए जिनका नाम मानसराज सागरचंद भैना था। जिनकी समाधि मान सरोवर (गढ़ का तालाब) के तट पर विद्यमान है। उनके द्वारा ही खंभेश्वरी देवी की स्थापना कुल देवी के रूप में गढ़फ़ूलझर में की गई है क्षेत्र का जनमानस मंझला राजा के रूप में आज भी उनकी पूजा अर्चना करता है।
इस तरह गढ़फ़ूलझर कौड़िया राज के भैना राजाओं की कुलदेवी खम्भेश्वरी माता आज भी गढ़ में विराजमान है तथा मातृस्वरुपा स्नेहा देवी वर्तमान में भी अपने भक्तों की रक्षा कर रही हैं उन्हें शक्ति दे रही है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में यहाँ मेला भरता है तथा भक्तजन ज्योति जलाते हैं।
स्रोत – श्री राजाराम राजभानू, मल्हार बिलासपुर
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