दक्षिण कौशल का दक्षिणी भाग बस्तर संभाग कहलाता है, बस्तर में किसी भी नए फसल उपज को सबसे पहले अपने परगना के देवता कुलदेवता इष्ट देवता और पितृ देवता में अर्पण करने की परंपरा है। उसके बाद ही बस्तर का जाति एवं जनजाति समाज उस फसल या उपज को ग्रहण करता है इसे जोगनी कहते हैं।
जोगनी का अर्थ जागृत करने से है देवताओं को अर्पित करने से फसल या उपाय जागृत हो जाता है उसके बाद उसे ग्रहण करते हैं। इससे पहले उसे तोड़ना तो क्या छूना तक वर्जित होता है, ऐसा करने से परिवार में या गांव में भारी संकट आने की संभावना होती है जिसका निदान बस्तर के लोक देवता ही करते हैं।
इस प्रकार आदिवासी समाज या अन्य जाति के लोग अपने कृषि कर्म को बहुत ही श्रद्धा एवं आस्था के साथ करते हैं जब भाद्र मास की पंचमी से बस्तर का जाति एवं जनजाति समाज नवा खानी का उत्सव मनाता है।
बस्तर की ग्रामीण व्यवस्था परगनाओं में बंटा है और परगनों में एक मुख्य देवता जिसे मंडादेव कहा जाता है, उनके अंतर्गत अन्य गांव में स्थापित देवता आते हैं वे उनके सगा विषम गोत्रीय या सहोदर सम गोत्रीय होते हैं। सम गोत्रीय देवताओं को मांडोदेव और विषम गोत्रीय देवताओं को ताड़ो देव कहते हैं।
मंडा देव के नवा खाने के पूर्व मंडा देव के स्थापित ग्राम में एक संक्षिप्त बैठक की जाती है और 2-3 टोली बना दी जाती है। जो देवता का प्रतीक लेकर परगने के सब गांव में जाती है इसे पेन जोडिंग कहते हैं, इसका अर्थ है देवत देवता के द्वारा निमंत्रण यह दल हरितालिका व्रत याने भाद्र पक्ष के तीज को परगने के मंदिर में पहुंचता है उसे उस दिन वही विश्राम करना होता है।
इनके साथ ग्राम का माटी का गांयता और उसका सहायक दोनों सोते हैं इसे न्योता सोनी कहा जाता है दूसरे दिन परगने के समस्त ग्रामवासी अपने अपने देवता के साथ मंडा देव के मंदिर में आते हैं वहां मंडादेव के नवा खाने का कार्यक्रम संपन्न किया जाता है।
यह समय धान पकने का नहीं होता केवल भाटा में होने वाले धान में बाली निकली होती है, इस बाली को माटी गांयता लाकर रखता है बाली में धान का दूध आ चुका होता है। उस वाली को पुराने धान के साथ कूट लिया जाता है और नए चावल का अंश पुराने चावल में आ जाता है और वह नया हो जाता है।
इसकी बनाई जाती है खीर इसे गोंडी भाषा में “बाल” कहते हैं इस बाल को और धान की बाली को पूजा करने के बाद मंडा देव को अर्पित किया जाता है, इस दिन मंडा देव के अनुयाई इस बाल को ग्रहण नहीं करते हैं कारण की उनके कुलदेवता और पितृ देवता में बाल नहीं चढ़ा होता है। इसलिए सब बाल का टीका लगाते हैं और फिर अलग जाकर सामूहिक भोज होता है इस प्रकार मंडा देव का नया खानी संपन्न होता है।
बस्तर के ग्रामीण अंचल में हर ग्राम का देवता संबंधी काम करने का एक निश्चित दिन होता है, उसी दिन देवता का काम किया जाता है यह दिन मंगलवार शुक्रवार या शनिवार हो सकता है मंडा देव को खीर अर्पण करने के बाद गांव के लोग अपने निश्चित दिन गांव की माटी तलुरमुत्ते सामूहिक पितृदेव का स्थान आना कुड़मा में नए चावल का खीर अर्पण करते हैं।
इसी दिन तय किया जाता है कि गांव के सब लोग कब नया खानी का उत्सव मनाएंगे इस बैठक में यह भी देखा जाता है कि गांव के किस व्यक्ति के पास नया खाने के लिए पर्याप्त साधन मौजूद नहीं है, उसकी पूर्ति गांव के लोगों के द्वारा की जाती है इस प्रकार अपने सबसे बड़े उत्सव को निश्चित दिन बड़े ही उत्साह उमंग के साथ मनाया जाता है।
नवा खाने के दिन गांव के सब लोग अपने अपने सगा सहोदर मीत मितान को आमंत्रित करते हैं इस दिन घर के लोग नए कपड़े पहनते हैं या पुराने ही कपड़े को अच्छे से धो कर पहनते हैं। इस दिन घर का मुखिया खेत से धान की बाली लाता है, घर की महिलाएं उसे कूटकर नए चावल से खीर बनाते हैं और नए चावल के खीर को पूजा करने के बाद अपने घर में स्थापित आना कुड़मा में पितृदेव को और इष्ट देव को अर्पित करते हैं।
इस दिन खानदान के सब लोग एक साथ बैठते हैं यदि आमंत्रित सदस्य नवा खा लिये हैं तो वह भी उनके साथ बैठ सकते हैं, वरना खानदान के लोग ही एक साथ बैठते हैं। घर की बुजुर्ग महिला एक विशेष पत्ते से जिसे बालोड़ आकिंग कहते हैं में बाल परोसती है। उसका सब टीका लगाते हैं, सेवन करते हैं और अपने से बड़े बुजुर्ग का पैर पड़ते हैं छोटे को दुलार देते हैं और उसके बाद सभी लोग आमंत्रित सदस्य और घर के लोग सामूहिक भोज करते हैं, इस तरीके से नवाखाने का त्यौहार प्रत्येक घर में संपन्न होता है।
बस्तर में एक परंपरा है कि किसी भी त्योहार के दिन वे अपने देवताओं की पूजा करने में समय व्यतीत कर देते हैं, और दूसरे दिन बासी त्यौहार मनाते हैं और उस दिन में बहुत उत्साह और उमंग से इस त्योहार को मनाते हैं। नवा खानी के दूसरे दिन गांव के सभी लोग माटी गांयता के यहां थोड़ी-थोड़ी शराब लेकर भेंट करने जाते हैं। इसे गायताजोहरानी कहते हैं, इस तरीके से सारा गांव माटी गायता के घर उपस्थित रहता है।
सभी महिला पुरुष जवान बच्चे अपने से बड़े का पैर छूते हैं और गांयता को अपने साथ लाए हुए शराब भेंट करते हैं, गांव के जितने भी बुजुर्ग होते हैं वह एक लाइन में खड़े होकर सभी अपने से छोटे लोगों को आशीर्वाद देते हैं कि इसी तरीके से उत्सव मनाओ हिल मिलकर रहो गांव में सुख समृद्धि आए और उसके बाद सब लोग गांव के द्वारा लाए हुए शराब को पीते हैं और रेला नृत्य करते हैं।
यह क्रम दोपहर तक चलता है इसके बाद सब अपने अपने घर में आकर उस दिन पका हुआ मांस मदिरा का सेवन करते हैं खाना खाते हैं इसी दिन गांव के जवान लड़का लड़की पास के किसी पहाड़ी में जाकर खूब उत्सव मनाते हैं गीत गाते हैं गीतों की प्रतियोगिता होती है और शाम को सब अपने घर आ जाते हैं इस तरीके से जो हारने भी संपन्न होता है।
बस्तर में नवा खाने का त्यौहार सबसे बड़ा उत्सव है जनजाति समाज के लिए दो समय बहुत खास होता है जब उसके सगा सहोदर मीत मितान एक साथ जमा होते हैं, पहला होता है नवा खाने और उसके बाद मंडई का त्यौहार त्यौहार में सभी लोग बहुत उत्साह और उमंग से भाग लेते हैं। यहां यह बताना बहुत जरूरी है कि किसी गांव का एक व्यक्ति यदि उसने नवा खा लिया है और किसी काम से वह दूसरे गांव जाता है।
वह गांव में नवा खाने का त्यौहार नहीं मनाया गया होता है तब वह व्यक्ति उस गांव का पानी भी नहीं पिएगा इसी प्रकार जिस गांव का व्यक्ति नया खानी नहीं मनाया होता है और वह नया खाने वाले गांव में जाता है, तो वह भी उस गांव का पानी नहीं पिएगा। यह बहुत विकट परिस्थिति निर्मित होती थी इसलिए गोंडवाना समाज का संभागीय परिषद एक निश्चित नवाखानी मनाने के लिए तारीख तय कर देता है।
आजकल उसी दिन प्रशासन भी छुट्टी घोषित करता है और सब एक साथ सामूहिक रूप से नवा खाने का उत्सव मनाते हैं, यह सबसे लंबा चलने वाला उत्सव है नवा खाने के बाद वह अपने सगा संबंधी और मीत मितान के घर जा जाकर नवा खाने का उत्सव मनाता है।
इस तरह लगभग दशहरा तक नवाखाने का उत्सव मनाया जाता है। दशहरा के दिन राजा और दंतेश्वरी के साथ बचे हुए सब लोग कुंम्हडा़कोट में नवा खाने का त्यौहार मनाते हैं और आकर अपने अपने घरों में इस तरीके से बस्तर में नवा खाने का सबसे बड़ा उत्सव संपन्न होता है।
(लेखक आदिवासी संस्कृति के जानकार हैं एवं विशेषकर गोंडी संस्कृति के विशेषज्ञ माने जाते हैं।)
आलेख
आपकी लेखनी को सलाम ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️👏👏👏
बहुत सुंदर