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सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी डॉ गया प्रसाद कटियार

10 फरवरी 1993 : का निधन, स्वतंत्रता के बाद जन आंदोलन में दो वर्ष जेल में रहे

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुछ ऐसे सेनानी हुये जिनका पूरा जीवन संघर्ष में बीता। पहले स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों से संघर्ष किया और स्वतंत्रता के बाद जन समस्याओं के निवारण के लिये अपनी ही सरकार से। सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ.गया प्रसाद कटियार ऐसे ही संघर्षशील सेनानी थे। स्वतंत्रता के लिये वे दोनों संघर्ष में सहभागी रहे। अहिसंक आँदोलन में भी और क्राँतिकारी गतिविधियों में भी।

ऐसे विलक्षण स्वाधीनता संग्राम सेनानी डाक्टर गया प्रसाद कटियार का जन्म 20 जून 1900 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला अंतर्गत बिल्हौर तहसील के ग्राम जगदीशपुर में हुआ था। उनके पिता मौजीराम भारतीय औषधियों के वैद्य थे और माता नंदरानी भारतीय परंराओं के अनुरूप अपना जीवन निर्वाह करने वाली सुघड़ गृहस्थ थीं।

परिवार आर्यसमाज से जुड़ा था। हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कानपुर में मेडिसिनल प्रैक्टिस कोर्स किया और नाम के आगे डाक्टर उपाधि लगी। अपनी आजीविका और जनसेवा के लिये उन्होंने कानपुर में चिकित्सक व्यवसाय अपनाया। 1919 में उनका विवाह रज्जो देवी से हुआ।

परिवार दायित्व और चिकित्सा व्यवसाय के साथ वे कानपुर आर्यसमाज शाखा से जुड़े। उन दिनों कानपुर आर्यसमाज भारतीय स्वाधीनता आँदोलन के लिये एक वैचारिक केन्द्र था। यहाँ उनकी भेंट अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से हुई और वे अहिसंक आँदोलन से जुड़ गये।

कानपुर में होने वाली प्रभात फेरी एवं सभाओं के आयोजन में सक्रिय हुये। असहयोग आँदोलन आरंभ हुआ तो डाक्टर गया प्रसाद ने आँदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुये। तभी चौरी चौरा काँड हुआ और गाँधीजी ने आँदोलन स्थगित कर दिया।

डाक्टर गयाप्रसाद कटियार गाँधी जी के इस निर्णय से सहमत नहीं हुये। वे संघर्ष निरन्तर रखना चाहते थे। कानपुर आर्य समाज में उनका परिचय उस समय के सुप्रसिद्ध पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी से हुआ था। विद्यार्थी प्रताप समाचार पत्र के संपादक थे। यह समाचार पत्र क्राँतिकारियों का एक प्रमुख मिलन केन्द्र था।

विद्यार्थी के माध्यम से डाक्टर गयाप्रसाद जी क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़े। यहाँ उनका परिचय क्राँतिकारी आँदोलन का नेतृत्व कर रहे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु जैसे क्राँतिकारियों से बना और डा गयाप्रसाद कटियार का चिकित्सा केन्द्र भी इस क्राँतिकारी आँदोलन का गुप्त केन्द्र बन गया। डाक्टर गयाप्रसाद जी के लगभग सभी क्राँतिकारियों से गहरे संबंध थे। भगत सिंह और राजगुरु दोनों होली मनाने के लिए 20 मार्च, 1926 को डॉ. गया प्रसाद के गाँव जगदीशपुर भी गए थे।

क्रांतिकारियों ने गया प्रसाद को बम तथा अन्य हथियार बनाने की फैक्ट्री बनाने का काम सौंपा। डॉ कटियार ने क्राँतिकारी बीएस निगम के नाम को आगे करके औषधि निर्माण कारखाने के नाम पर यह बम फैक्ट्री शुरू की। यह फैक्ट्री 10 अगस्त 1928 से 9 फरवरी 1929 तक चालू रही।

कारखाने में छ्द्म नाम से अन्य क्रांतिकारी भी सक्रिय रहे जैसे क्राँतिकारी शिव वर्मा का नाम राम नारायण कपूर, चन्द्रशेखर आजाद का संबोधन पंडित जी, सुखदेव को बलेजर, महावीर सिंह को प्रताप सिंह, जयगोपाल को गोपाल और बच्चू की भूमिका में विजय कुमार सिन्हा के रूप में पहचान बनी। कहने के लिये यह औषधालय था पर इसका उपयोग बम बनाने के लिए था। कारखाने से अक्सर रासायनों की गंध आती थी पर पड़ोसी समझते थे कि यह औषधियों के निर्माण से उठने वाली गंध है।

डाक्टर गयाप्रसाद कटियार को क्राँतिकारी आँदोलन के प्रमुख रणनीतिकारों में थे। माना जाता है कि सांडर्स वध की योजना एवं क्राँतिकारी भगतसिंह का नाम और स्वरूप बदलकर गुप्त केंद्रीय कार्यालय संचालन करने की रणनीति डा कटियार ने ही बनाई थी। दिल्ली की पार्लियामेंट में फेंके गए बम निर्माण आदि कार्यों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

पुलिस ने इस टोली की तलाश में रातदिन एक कर दिये। इसका संकेत क्राँतिकारियों को मिल गया था। सावधानी के बतौर उन्होंने यह बम फैक्ट्री सहारनपुर स्थानांतरित कर ली। लेकिन पुलिस को सूचना मिल गई। पुलिस ने छापा मारा और 15 मई 1929 को कटियार जी को बंदी कर लाहौर भेज दिये गये।

उन्होंने यहां अन्य क्रांतिकारियों के साथ भूख हड़ताल आरंभ की। उन पर लाहौर षडयंत्र केस में शामिल होने का आरोप लगा और मुकदमा चला। उन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाकर लाहौर से अंडमान सेलुलर जेल दिया गया। अंडमान की जेल काला पानी के नाम से कुख्यात थी। जहाँ कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार होता था।

डाक्टर गयाप्रसाद कटियार ने इसके विरोध में यहाँ भी भूख हड़ताल आरंभ की जो 46 दिन चली । इसी भूख हड़ताल में क्राँतिकारी महावीर सिंह का बलिदान हुआ था। उनके मुँह में बल पूर्वक भोजन खिलाने का प्रयास में ही उनका प्राणांत हो गया था।

महावीर सिंह के बलिदान के बाद डाक्टर गयाप्रसाद कटियार को पहले अन्य जेल भेजा लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से सेलुलर जेल लाया गया। जब भारत की स्वतंत्रता लगभग सुनिश्चित हुई तब अंग्रेजों ने सभी राजनैतिक बंदी रिहा किये थे। 1946 में डाक्टर गयाप्रसाद जी भी रिहा हो गये। सेलुलर जेल से रिहा हुये तब शारीरिक रूप से बहुत कमजोर थे। उन्हें स्वस्थ होने में लगभग दो वर्ष लगे।

स्वस्थ होने के बाद वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय हुये और समाजवादी आँदोलन से जुड़ गये। इसके माध्यम से उन्होंने किसानों और श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष आरंभ किया। इन आँदोलनों में वे दो बार जेल गये।

पहली बार 1958 में 6 महीने के लिए और फिर 1966 में डेढ़ साल के लिए। जेल से रिहा होकर उन्हें अनेक बीमारियों ने घेर लिया इससे सामाजिक आयोजनों में उनकी सक्रियता कम हुई और अंततः एक लंबी बीमारी के बाद 10 फरवरी 1993 को 93 वर्ष की आयु में उन्होंने संसार से विदा ली । भारत सरकार ने 26 दिसंबर 2016 को उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। इसके लिये आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री सुश्री अनुप्रिया पटेल ने की थी।

आलेख

श्री रमेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल, मध्य प्रदेश


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