पर्यटन दिवस विशेष आलेख
पर्यटन की दृष्टि से हम देखें तो छत्तीसगढ़ प्रकृति की लाडली संतान है। जिस तरह एक माता अपनी संतानों में से किसी एक संतान से विशेष अनुराग एवं स्नेह रखती है, उसी तरह प्रकृति भी छत्तीसगढ़ की धरती से अपना विशेष अनुराग प्रकट करती है। इस पूण्य भूमि में दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत की पुत्री मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की माता कौसल्या ने जन्म लिया था।
प्रकृति की गोद में बसे भगवान राम के ननिहाल (दक्षिण कोसल) छत्तीसगढ़ में एक ओर निर्मल जल की धार लिए प्रवाहित होती शास्त्रों में वर्णित चित्रोत्पला गंगा (महानदी) शिवनाथ, इंद्रावती, हसदेव, अरपा, पैरी, सोंढूर, मनियारी, महान, हाफ़, लीलागर, डंकिनी-शंखिनी आदि नदियाँ हैं।
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यहाँ अभयारण्य, नदी-घाटी सभ्यताओं के अवशेष, पुरातात्विक महत्व के स्मारक, नदियाँ, जलप्रपात, झरने, पर्वत, जलाशय, वन्य प्राणी, आदि मानव के द्वारा निर्मित शैलाश्रय, धार्मिक स्थल, वानस्पति एवं जैव विविधता, सांस्कृतिक विरासत, विभिन्न तरह के उत्सवों के संग बस्तर का 75 दिनों के विश्व प्रसिद्ध दशहरा के साथ प्रतिवर्ष राजिम में कुंभ का आयोजन दर्शनीय है।
यहाँ का मानसून बहुत खूबसूरत होता है, जब चारों ओर हरियाली छाई रहती है और आपको हर दस बीस किलोमीटर कोई न कोई झरना प्रबल वेग के साथ प्रवाहित होते दिख जाएगा। यहाँ तीरथगढ़, चितरकोट जैसे जलप्रपात के साथ छोटे बड़े झरने शस्य श्यामल धरा को मनोहर रुप प्रदान करते हैं। यह समय प्रकृति से निकटता स्थापित करते हुए पर्यटन की दृष्टि से उपयुक्त है।
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बस्तर एवं सरगुजा पारम्परिक आदिवासी काष्ठ एवं धातू शिल्प विश्व प्रसिद्ध होने के साथ-साथ छूरी, चांपा के टसर के महीन धागे से निर्मित यहाँ का कोसा सिल्क का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं।
छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन के साथ एडवेंचर पर्यटन के लिए भी बहुत सारे स्थान हैं। वैष्णव क्षेत्र के रुप में हमारे यहां पद्मावती नगरी राजिम, शिवरीनारायण, इत्यादि महत्वपूर्ण स्थान है, शक्ति स्थलों में दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा, महामाया रतनपुर, बम्लेश्वरी डोंगरगढ़, खल्लारी माई खल्लारी (महासमुद) महामाया अम्बिकापुर एवं अन्य स्थल हैं।
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शैव धार्मिक स्थलों के रुप में राजिम पंचकोशी, कुलेश्वर, पटेश्वर, चम्पेश्वर, बम्हनेश्वर, कर्पुरेश्वर, फ़णीकेश्वर, विशाल प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वरनाथ (गरियाबंद) बूढामहादेव रतनपुर, देवगढ़ सरगुजा इत्यादि हैं। रामायणकालीन दक्षिणापथ मार्ग से गुजरते हुए वर्तमान में भी हमें कदम-कदम पर धार्मिक दर्शनीय स्थल मिलते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य का लगभग 44 फ़ीसदी भू-भाग वनों से अच्छादित है। यहाँ विभिन्न तरह की वन सम्पदा के साथ जैविक विविधता भी दिखाई देती है। यहाँ सबसे अधिक वन संपदा एवं वन्यप्राणि है। वन्य प्राणियों एवं वनों की रक्षा करने के लिए यहाँ इंद्रावती, कांगेर, गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान हैं।
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साथ ही अचानकमार, बादलखोल, बारनवापारा, सेमरसोत, सीतानदी, तमोर पिंगला ,भैरमगढ़, भोरमदेव, गोमर्डा, पामेड़, उदन्ती अभयारण्य हैं। इंदिरा उद्यान, कानन पेंडारी चिड़ियाघर, मैत्री बाग चिड़ियाघर, नंदन वन चिड़ियाघर रायपुर एवं कोटमी सोनार मगरमच्छ पार्क भी है जो पर्यटकों की आंखों के रास्ते हृदय को प्रफ़ुल्लित करती है। वन प्रेमी एवं वन्य फ़ोटोग्राफ़ी करने वाले पर्यटकों के लिए छत्तीसगढ़ के वन किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं।
इन राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों में साल, सागौन, बेंत, धावड़ा, हल्दु, तेन्दु, कुल्लू , कुसुम, आंवला, कर्रा, जामुन, सेन्हा, आम, बहेडा, बांस आदि के वृक्ष पाए जाते हैं, इसके अतिरिक्त सफेद मूसली , काली मूसली , तेजराज, सतावर, रामदतौन, जंगली प्याज, जंगली हल्दी, तिखुर, सर्पगंधा आदि औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं।
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वन्य प्राणियों में शेर, तेन्दुआ, बाघ, चीतल, सांभर, लकडबग्घा, जंगली भालू, काकड, सियार, घड़ियाल, जंगली सुअर, लंगूर, सेही, माऊस डीयर, छिंद, चिरकमाल,, खरगोश, सिवेट, सियार, लोमड़ी, नील गाय, उदबिलाव, गौर, जंगली भैंसा, विभिन्न तरह के सर्प एवं मुर्गे, मोर, धनेश, महोख, ट्रीपाई, बाज, चील, डीयर, हुदहुद, किंगफिशर, बसंतगौरी, नाइटजार, उल्लू, तोता, बीइटर , बगुला, मैना, आदि पक्षी पाये जाते है।
प्राचीन स्थलों का भ्रमण करने वाले पर्यटकों के लिए बस्तर से लेकर सरगुजा तक शिल्प सौंदर्य का खजाना बिखरा हुआ है। बस्तर में बारसुर, नारायणपाल, दंतेवाड़ा, तुलार, गुप्तेश्वर, ढंढोरेपाल, भोंगापाल, मध्य छत्तीसगढ़ में आरंग, रतनपुर , मदकू द्वीप, भोरमदेव, मड़वा महल, पचराही, चतुरभूजी धमधा, मल्हार, नकटा मंदिर जांजगीर, शिवरीनारायण, ताला, सिरपुर, खल्लारी, जांजगीर, नगपुरा, खरखरा, देवबलौदा, सिंघोड़ा, बालौद, तुरतुरिया, पलारी, गिरौदपुरी, दामाखेड़ा, सिहावा, चंदखुरी, दमऊधारा, पाली, लाफ़ागढ़, चैतुरगढ़ तथा सरगुजा में सीता बेंगरा रामगढ़ (प्राचीन नाट्यशाला) , सीतामढी, हरचौका, देवगढ़, हर्रा टोला बेलसर, सतमहला, डीपाडीह, आदि प्राचीन स्थल दर्शनीय हैं।
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प्रागैतिहासिक काल के मानव सभ्यता के उषाकाल में छत्तीसगढ़ भी आदिमानवों के संचरण तथा निवास का स्थान रहा। इसके प्रमाण प्रमुख रूप से रायगढ़ जिले के सिंघनपुर, कबरा पहाड़, बसनाझर, बोसलदा, ओंगना पहाड़ और राजनांदगांव जिले के चितवाडोंगरी से प्राप्त होते हैं। आदिमानवों द्वारा निर्मित तथा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के पाषाण उपकरण, महानदी, मांड, कन्हार, मनियारी तथा केलो नदी के तटवर्ती भाग से प्राप्त होते हैं।
सिंघनपुर तथा कबरा पहाड़ के शैलचित्र विविधता तथा शैली के कारण प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों में विशेष रूप से चर्चित हैं। बस्तर के कुटुमसर, कैलास गुफ़ा का अदभुत सौंदर्य प्रकृति की शिल्पकारी उत्कृष्ट प्रमाण है। प्रागैतिहासिक काल के अन्य अवशेषों के एकाश्म शवाधान के बहुसंख्यक अवशेष रायपुर और दुर्ग जिले में पाए गए हैं।
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छत्तीसगढ़ में प्राचीन महा जनपद कालीन दक्षिणापथ मार्ग भी है तथा भगवान राम के वनगमन मार्ग को भी चिन्हित किया गया है, जिसके नौ स्थलों को पर्यटन केन्द्र के रुप में विकसित किया जा रहा है। इसके साथ ही राम के प्रति समर्पण की उद्दात परम्परा रामनामी सम्प्रदाय के रुप में यहीं मिलती है, जो नख से शिख तक देह पर रामनाम का देहालेखन करवाते हैं।
हमारा छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य एवं पुरातात्विक स्थलों की समृद्धता की दृष्टि में अन्य प्रदेशों से इक्की ही है। आईए छत्तीसगढ़ दर्शन के लिए चलें और जाने छत्तीसगढ़ प्रकृति की लाडली संतान क्यों कहा जाता है।
आलेख
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