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खरदूषण की नगरी खरोद का पुरातत्वीय वैभव

छत्तीसगढ़ प्रदेश के अन्तर्गत जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से शिवरीनारायण सड़क मार्ग पर स्थित ग्राम खरोद लगभग 35 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से खरोद की दूरी लगभग 62 कि.मी. तथा रायपुर से वाया कसडोल शिवरीनारायण होकर खरोद लगभग 140 कि.मी. दूरी पर है। यहां पर पहुंचने के लिये सभी स्थानों से नियमित बसें उलपब्ध है। खरोद के समीप से महानदी प्रवाहित होती है तथा इसी के समीप जोंक तथा इसके पहले शिवनाथ एवं लीलागर नदियों का संगम है। खरोद के प्राचीन किवदंती के अनुसार खरदूषण की नगरी भी कहा जाता है तथा रामायण काल में इसे भीलनी शबरी के द्वारा भगवान राम को जूंठे बेर खिलाने की भी कथा प्रचलित है जिसका सम्बंध शिवरीनारायण से जोडा जाता है।

खरोद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर के मण्डप की भित्तियों में दो प्राचीन शिलालेख जड़े हुए हैं जिसमें से दांयी भित्ति के शिलालेख में इन्द्रबल तथा ईशान देव नामक दो शासकों का उल्लेख मिलता है। ये सिरपुर के चन्द्रवंशी (सोमवंशी) शासक थे। इस लेख में घोट्टपद्रक ग्राम का नाम मिलता है जो इस मंदिर की व्यवस्था के लिये दान में दिया गया था।1 मण्डप की बांयी भित्ति में रतनपुर के कलचुरि राजा रत्नदेव तृतीय के शासन काल का 28 पंक्तियों का चेदि संवत् 933 का एक शिलालेख जड़ा हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि हैहयवंश में एक राजकुमार (कोकल्ल प्रथम) के अठारह पुत्र हुये जिसमें से एक कलिंग था। उसका पुत्र कमल, कमल से रतनराज प्रथम, उससे पृथ्वीदेव प्रथम, उसका पुत्र जाजल्लदेव प्रथम हुआ। जाजल्लदेव का पुत्र रत्नदेव द्वितीय, उसका पुत्र पृथ्वीदेव द्वितीय तथा उसका पुत्र जाजल्लदेव द्वितीय हुआ। उसने सोमलदेवी से विवाह किया जिसका पुत्र रत्नदेव तृतीय हुआ। उसके शासन काल 1181-82 शती ई. या 933 चेदि संवत् में उसने यह लेख खुदवाया। रत्नदेव के मंत्री ने खरोद और रतनपुर में मंदिर के मण्डप बनवाये।2 इस शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि ईशानदेव नामक राजा ने मूल शिव मंदिर का निर्माण करवाया था जो कि सोमवंशी शासक था। यह ईशानदेव तीवरदेव का चाचा था, जो कि 540 ई. में राज्य करता था। इससे यह भी ज्ञात होता है कि रतनदेव तृतीय ने शिव मंदिर के मण्डप का जीर्णोद्धार कराया तथा खरोद स्थित शबरी (विष्णु) मंदिर के मण्डप एवं रतनपुर के पश्चिम में स्थित पहाड़ी के ऊपर लक्ष्मी (लखनी देवी) मंदिर के मण्डप का भी जीर्णोद्धार कराया था।3 उपर्युक्त अभिलेखों से यह प्रमाणित होता है कि मूलतः लक्ष्मणेष्वर मंदिर का गर्भगृह तथा शिखर भाग सोमवंशी शासकों के राजज्व काल में 6 वीं शती ई. में तथा इस मंदिर का मण्डप कलचुरि शासकों के राजस्व काल में 12 वीं शताब्दी ई. में विस्तारित किया गया। अभी हाल में वर्ष 2006 में पुरातत्व विभाग द्वारा कराये गये रसायनिक संरक्षण कार्य के दौरान मण्डप के मध्य के अगले स्तंभों में दो-तीन पंक्ति में अंकित लेख स्पष्ट हुआ है जो अस्पष्ट है तथा पढ़ा नहीं गया है। परवर्ती काल में इसे चूने के प्लास्टर से ढक दिया गया था। दांयी भित्ति में जड़े हुये शिलालेख का माप 100 ग 52 एवं बायीं भित्ति में जड़े हुये शिलालेख का माप 64 ग 60 से.मी.. है। ग्राम के मध्य कुल तीन प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं जिनमें से इन्दल देवल तथा शबरी मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एवं लक्ष्मणेश्वर मंदिर, राज्य पुरातत्व विभाग के अन्तर्गत है। लक्ष्मणेश्वर मंदिर ग्राम के पश्चिम में, शवरी मंदिर ग्राम के दक्षिण में एवं इन्दल देवल मंदिर ग्राम के उत्तर में विद्यमान है। इन मंदिरों का विवरण अलग-अलग निम्नानुसार है-

(1) लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरोद- यह मंदिर ग्राम खरोद में पश्चिम दिशा में स्थित है। यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है लक्ष्मणेश्वर मंदिर, एक परकोटे के अंदर प्रस्तर निर्मित आयताकार जगती पर आधारित है जिसका आकार पूर्व-पश्चिम में 24.30 मीटर लम्बा, तथा उत्तर-दक्षिण में 16.40 मीटर चौड़ा एवं 3.60 मीटर ऊंचा है। प्रस्तर निर्मित जगती चारों तरफ से कटावदार निर्मित है जिसमें से उत्तर दक्षिण में कुल 8 उभारदार कटाव तथा उत्तर-दक्षिण में कुल 5 उभारदार कटाव निर्मित हैं। चबूतरे के ऊपर मंदिर के तीन तरफ सामने तरफ छोड़कर एक प्रस्तर निर्मित पैरापेट दीवाल निर्मित है जो दर्शनार्थियों की सुरक्षा के लिये बनाई गई होगी। इस दीवाल की मोटाई 60 से.मी. तथा ऊंचाई 50 से.मी. है। यह दीवार चबूतरे के ऊपर पूर्व-पश्चिम में 22.70 मीटर लम्बी तथा पीछे की तरफ 14.80 मीटर चौड़ी है। प्रस्तर निर्मित जगती के ऊपर मंदिर के गर्भगृह का बाह्य भाग पीछे तरफ 5.80 मीटर एवं उतर तथा दक्षिण तरफ 5.20 मीटर है। अन्तराल भाग की लम्बाई बाहर से 3.40 मीटर है तथा मण्डप की लम्बाई 10.00 मीटर है। मण्डप की सामने से बाहरी भाग की लम्बाई 8.00 मीटर है। राजिम स्थित राजीवलोचन मंदिर जो कि लगभग इसी काल का निर्मित है उसकी जगती पूर्व-पश्चिम में 21.02 मीटर तथा उत्तर-दक्षिण की तरफ 13.1 मीटर है।4 इस प्रकार लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरोद की जगती अपेक्षाकृत लम्बी तथा चौड़ी है। यह मंदिर एक प्रस्तर निर्मित परकोटा द्वारा चारों तरफ से घिरा है जिसमें दो द्वार हैं। एक पश्चिमी भित्ति के कोने में और दूसरा पूर्वी भित्ति के मध्य में। मंदिर पूर्वाभिमुखी है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल एवं मण्डप तीन अंग है । इनका विवरण अलग-अलग निम्नानुसार है –

गर्भगृह – गर्भगृह का आंतरिक भाग अष्टकोणीय है। गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित है। शिवलिंग पूर्णरूपेण क्षरित है। जलहरी का योनिपट्ट उत्तर दिशा की तरफ है जिसका पानी निकलने के लिये प्रणालिका जगती के किनारे तक निर्मित है। गर्भगृह की आंतरिक भित्तियां तथा प्रवेशद्वार एवं अंतराल की भित्तियां लालरंग के कंक्रीट से ढंकी हैं। गर्भगृह वर्गाकार अर्थात 3 ग 3 मीटर हैं। गर्भगृह का प्रवेश द्वार 170 से.मी. ऊंचा, 90 से.मी. चौड़ा तथा 74 से.मी. मोटा है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग छिद्रित है जैसा कि राजिम स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह का शिवलिंग है।

द्वारशाखा में नीचे भारवाहक तथा उसके ऊपर शैव द्वारपाल एवं नदी देवियों का अंकन खरोद3 स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर में मिलता है। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर लक्ष्मणेष्वर मंदिर खरोद के समकालीन 6-7वीं शताब्दी ई. में निर्मित प्रतीत होता है।

अन्तराल – अन्तराल 4.70 मीटर लम्बा है जिसमें अंदर की तरफ एक लघु कक्ष एवं बाहर की तरफ एक अपेक्षाकृत बड़ा कक्ष है। अंतराल भाग के पहले कक्ष में तथा दूसरे चौड़े भाग की भित्तियां नीचे तरफ आधी दूर की ऊंचाई तक लाल कंक्रीट से ढंकी है। अंतराल के बाह्य भाग में प्रवेश द्वार के अगल-बगल दोनों तरफ एक ही प्रकार की संरचना है जिसमें मध्य में ऊपर की तरफ अर्द्ध कमल पुष्प एवं नीचे लता वल्लरी का अंकन है तथा द्वार शाखा के ऊपरी वितान में मध्य में गोलाकार पुष्प तथा दोनों किनारे पर अर्द्धकमल पुष्प अंकित है।

मण्डप – आयताकार है जो पूर्व-पश्चिम में अपेक्षाकृत अधिक लम्बा है। मण्डप के पूर्वी भित्ति के मध्य में एक मुख्य प्रवेश द्वार है तथा उत्तरी भित्ति में एक निर्गम द्वार है जो लगभग 50 वर्ष पूर्व बनाया गया होगा। दक्षिणी भित्ति में एक खिड़की निर्मित है। मण्डप में कुल 20 स्तंभ हैं जिसमें से 12 भित्ति से संलग्न है तथा मध्य में दो पंक्ति में 4-4, कुल आठ स्तंभ हैं जिसमें से अगले तीन एक समान आकृति के हैं लेकिन गर्भगृह के सामने अर्थात नदी देवियों की सीध में पहले दोनों स्तंभ अलकंरण युक्त है। ये दोनों स्तंभ मण्डप के मध्य भाग की तरफ अलंकृत है जबकि नदी देवी की तरफ एवं बाह्य दक्षिणी तथा दाये तरफ की सतह सपाट एवं अलंकरण विहीन हैं। दाहिने तरफ के स्तंभ में सामने की ओर ऊपर अलंकृत गोल फुल्ले का अंकन है। उसके बाद क्रमशः नीचे की तरफ पाशबद्ध नाग मिथुन एवं सबसे नीचे अर्द्धनारीश्वर शिव की प्रतिमा का अंकन है।

इसी स्तंभ के ऊपरी सतर पर भी सबसे ऊपर नाग मिथुन पाशबद्ध है तथा इसके नीचे तरफ मध्य के खण्ड में बैठे हुये चतुर्भुजी देव का ललितासन में बैठे हुये अंकन है जिनके दाहिनी तरफ दो और स्त्रियां बैठी है। इसके बाद सबसे नीचे के खण्ड में रावणानुग्रह मूर्ति प्रदर्शित है। रावण अपनी बीसों भुजाओं से कैलाश पर्वत को उठाये हुये है जिसके ऊपर गणेश, नंदी, चतुर्भुजी शिव एवं उनके गण खड़े हुये प्रदर्शित हैं। बायें तरफ के स्तंभ में पूर्व दिशा की तरफ पाशवद्ध नाग, उसके नीचे बालि-सुग्रीव का द्वन्द युद्ध तथा राम धनुष ताने हुये खड़े हैं। उसके नीचे त्रिविक्रम (वामन) एक पैर से आकाश तथा पृथ्वी नापते हुये प्रदर्शित हैं। ऊपर लक्ष्मी हाथ जोड़े हुये खड़ी है तथा उनके पैर के नीचे राजा बलि छत्र पकड़े हुये वामन को दान कर रहे हैं एवं वामन एक हाथ से दान ले रहे हैं। उसके नीचे चतुर्भुजी बराह भू-उद्धार करते हुये प्रदर्शित हैं। इसी तरह बायें स्तंभ के उत्तर दिशा में सबसे ऊपर नागपाश, उसके नीचे राम-लक्ष्मण, हनुमान के साथ सुग्रीव की भेंट तथा सब से नीचे रावण द्वारा पंचवटी से सीता के हरण का प्रयास, अशोक वाटिका में सीता तथा हनुमान एवं राम-सीता लक्ष्मण का दो खण्डों में अंकन हुआ है। छत्तीसगढ़ के अन्य मंदिरों में भी राम कथानक के दृश्य प्राप्त हुये हैं। जैसे वालि-सुग्रीव युद्ध, शिवमंदिर चन्दखुरी जिला रायपुर की द्वार शाखा के सिरदल में, अशोक वाटिका में सीता तथा हनुमान का दृश्य देउर मंदिर मल्हार के स्तंभ में एवं घटियारी से प्राप्त प्रतिमा राजनादगांव संग्रहालय में, रतनपुर किले के प्रवेषद्वार में, रावण की प्रतिमा का अंकन, राजिम स्थित रामचन्द्र मंदिर की द्वार शाखा में अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा का अंकन, शिवमंदिर, सरदा, जिला-दुर्ग की द्वार शाखा में अर्द्वनारीश्वर प्रतिमा का अंकन राजिम स्थित राजीवलोचन मंदिर के उत्तर-पूर्वी कोने के लघु मंदिर की द्वार शाखा के दायें पार्ष्व में भी हैं। षिव मंदिर गण्डई के सिरदल तथा जंघा भाग में एवं दूधाधारी मंदिर, रायपुर में परवर्ती काल 16-17 वीं शदी ई. के मंदिर की बाह्य जंघा भाग में अनेकों दृश्य अंकित किए गए हैं।

इनके अलावा मण्डप के सभी स्तंभ सादे हैं। लक्ष्मणेश्वर मंदिर के मण्डप में स्थापित स्तम्भों की योजना खरौद स्थित शबरी मंदिर के मण्डप की भू-योजना से लगभग मिलती जुलती है लेकिन दोनों मंदिरों के मण्डप के स्तम्भों की संरचना में भिन्नता है। लक्ष्मणेश्वर मंदिर के स्तंभों की बनावट शिवरीनारायण स्थित पूजित नरनारायण मंदिर के मण्डप के स्तंभो से भू-योजना एवं संरचना में मिलती जुलती है। लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद की भित्ति में जड़ा हुआ कलचुरि कालीन अभिलेख से ज्ञात होता है कि लक्ष्मणेश्वर मंदिर का मण्डप कलचुरि काल 12 वीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में जीर्णोद्धारित है तथा शिवरीनारायण स्थित नरनारायण मंदिर भी कलचुरि काल 12 वीं शताब्दी ई. में निर्मित है।

इस प्रकार उपर्युक्त दोनों मंदिरों का तुलनात्मक अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरौद का जीर्णोद्धारित मण्डप एवं शिवरीनारायण स्थित केशवनारायण मंदिर एक ही काल में निर्मित किये गये होगें। लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरोद के मण्डप का पूर्वी मुख्य द्वार 1.85 मीटर ऊंचा तथा 1.00 मीटर चौड़ा है जो बिल्कुल सादा है।

इस मंदिर के मण्डप के स्तंभ दन्तेवाड़ा जिले में स्थित बारसूर के बत्तीसा मंदिर के मण्डप से समानता रखते है तथा दोनों का काल एक ही है।5 छत्तीसगढ़ में मण्डप के स्तंभों में इस प्रकार पाशबद्ध नाग युग्मो का अंकन राजिम स्थित रामचन्द्र6 मंदिर, शिव मंदिर सरदा7 जिला दुर्ग के मंदिरों में मिलता है जो कि एक दूसरे के समकालीन प्रतीत होते हैं। लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरोद के मण्डप में मध्य में दो पंक्ति में तीन-तीन सादे स्तंभ स्थापित हैं जिनका निचला भाग चौकोर उसके बाद अष्टकोणीय, षोडस कोणीय, फिर गोलाकार तथा कलश एवं अंत में चौकोर आधार भाग है जिसके ऊपर धरण स्थापित है। इस स्तंभों का आकार 280 ग 38 ग 38 से.मी. है।8

द्वार शाखा – लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरोद की गर्भगृह की द्वारशाखा में नदी देवियों का अंकन है जो मण्डप की तरफ मुंह करके स्थापित है। द्वारशाखा में दाहिनी तरफ कच्छप वाहिनी द्विभुजी यमुना एवं बांई ओर मकर वाहिनी गंगा की प्रतिमा त्रिभंग मुद्रा में खड़ी हुई प्रदर्शित हैं। इस मंदिर की द्वार शाखा त्रिशाख है जिसमें आंतरिक पहली शाखा में शैव द्वारपाल के ऊपर नदी देवियों का अंकन है दूसरी शाखा अर्थात मध्य में लता वल्लरी गोलाकार एवं बाह्य शाखा में गुम्फित पुष्प अलंकरण है। दांयी तथा बांयी द्वार शाखा का नदी देवियों सहित माप 280 ग 140 से.मी.एवं सिरदल का माप 130 ग 65 से.मी. है।

ऊर्ध्व विन्यास- मंदिर की गर्भगृह की बाह्य भित्तियों में पंचरथों का निर्माण है। गर्भगृह के पिछली बाह्य भित्ति में कोई भी प्रतिमा मूलतः स्थापित नहीं है तथा गर्भगृह की उत्तरी बाह्य भित्ति में हनुमान मंदिर के सामने दाये तरफ एक लघु गणेश 24 ग 20 की क्षरित प्रतिमा तथा उसके पूर्व में भित्ति में संलग्न उमा महेश्वर 58 ग 36 से.मी. की प्रस्तर प्रतिमा तथा अन्तराल के बाह्य भाग में भित्ति से संटकर क्षरित गणेश की प्रतिमा 70 ग 25 से.मी. स्थापित है। इसी प्रकार गर्भगृह के दक्षिणी बाह्य भित्ति में राजा रानी (माप 80 ग 45 से.मी.) की प्रतिमा छत्र सहित एवं अंतराल भाग में गर्भगृह की पूर्वी भित्ति में क्षरित गणेश की लघु प्रतिमा स्थापित हैं। ये सभी प्रतिमायें कलचुरि कालीन 11-12 वीं शदी ई. में निर्मित प्रतीत होती है जो लगभग 15-20 वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार के समय स्थापित की गई होगी। उमा-महेश्वर प्रतिमा का माप 58 ग 36 से.मी. तथा क्षरित गणेश प्रतिमा का माप 18 ग 18 से.मी. है।

गर्भगृह की पिछली भित्ति में एक, अंतराल में दांयी तथा बांया भित्ति पर दो मण्डप की उत्तरी भित्ति में बाहर तरफ दो पंक्ति में ऊपर 11 तथा नीचे 10 अलिंद हैं। पूर्व में 11अलिंद नीचे भी रहे होगें। अन्तराल की बाह्य भित्ति अर्थात मण्डप की पिछली बाह्य भित्ति में नीचे दो लघु अलिंद है तथा ऊपर भी दो रहे होगें जो नव निर्माण के कारण दब गये है। गर्भगृह की पिछली बाह्य भित्ति में मध्य रथ में एक के ऊपर एक कुल तीन लघु अलिंद उत्तरी दक्षिणी तथा पश्चिमी भित्ति में निर्मित हैं। मण्डप की पूर्वी बाह्य भित्ति में कुल 12 अलिंद दो पंक्ति में (6-6) हैं।

गर्भगृह की निचली बाह्य भित्ति में दरार आ जाने के कारण 20 वीं शताब्दी के अंत में प्रस्तर तथा ईंट से एक भित्ति के द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई है जिससे उसका निचला भाग ढँका हुआ है। जंघा के ऊपर शिखर भाग में मध्य रथ में उरू श्रृंग का निर्माण तीन तरफ किया गया है तथा अनुरथ सादा है। शिखर के चारों कोनों में अर्थात कर्णरथ में भूमि आमलक का निर्माण किया गया है जो चूने के प्लास्टर से पूर्णतया ढँके हुये हैं। शिखर के ऊपरी भाग में ग्रीवा के ऊपर आमलक तथा तीन कलश एवं एक त्रिशूल का अंकन है। जंघा के ऊपर का शिखर भाग क्रमशः ऊपर की तरफ संकरा होता गया है। शिखर के पूर्वी भित्ति में एक खिड़की निर्मित है जिसकी ऊपरी भित्ति की मोटाई 2.40 मीटर तथा नीचे तरफ 1.55 मीटर है जो ईटों से निर्मित है। खिड़की की निचली सतह से कक्ष का फर्श 1.50 मीटर गहरा है। खिड़की का आकार 70 से.मी. ऊंचा तथा 45 से.मी. चौड़ा है। शिखर के सामने तरफ अंतराल भाग की लम्बाई 3.65 मीटर तथा चौड़ाई 2.70 मीटर है। शिखर के ऊपरी भाग में खिड़की के दोनों किनारे पर एक-एक लघु अलिंद है जो लगभग खिड़की के आकार का है। शिखर के ऊपरी कक्ष में अंदर की भित्तियों में प्लास्टर नहीं है। मण्डप की छत पूर्व-पश्चिम में 9 मीटर लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण में 7 मीटर चौड़ी है। छत के किनारे-किनारे कंगूरेदार भित्ति निर्मित है। जिसकी चौड़ाई 40 से.मी. तथा ऊंचाई 80 से.मी. है। शिखर के सुकनासिका वाले भाग में मध्य में एक छोटा सा लघु सिंह स्थापित है। शिखर भाग में सामने तरफ दो छिद्रयुक्त प्रस्तर जड़े हैं जो पताका लगाने के लिये उपयोग होते हैं।

नवीन संरचनाएँ- प्रमुख शिव मंदिर के बांये तरफ अंतराल वाले भाग में मंदिर के मण्डप तथा गर्भगृह की बाह्य भित्ति से संटकर एक प्रस्तर निर्मित छतदार कक्ष बनाया गया है जिसमें शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं। इसमें दो प्रवेश द्वार उत्तराभिमुखी है जिनमें लोहे की ग्रिल का दरवाजा लगा है। इसी प्रकार दक्षिणी बाह्य भित्ति के अंतराल वाले भाग में दक्षिणाभिमुखी एक लघु मंदिर मूल मंदिर से अलग निर्मित है। उपर्युक्त दोनों तरफ के लघु मंदिर 20 वीं शदी ई. के अंतिम चरण के हैं।

लक्ष्मणेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने नंदी मण्डप निर्मित है जिसके मध्य में नंदी की प्रतिमा तथा भित्ति में क्षरित एवं अस्पष्ट प्रतिमा जड़ी है। नंदी के पीछे गर्भगृह में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित है जो आधुनिक है। नंदी का माप 56 ग 65 ग 33 से.मी. है तथा क्षरित अस्पष्ट (गणेश) प्रतिमा का माप 60 ग 40 से.मी. है। इन प्रतिमाओं का काल लगभग 12 वीं शती ई. हैं। नंदी मण्डप उत्तर तथा पश्चिम से खुला है। नंदी मंडप मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने 1.86 मीटर दूरी पर स्थित है। मण्डप के तीन कोनों में चौकी सहित स्तंभ निर्मित हैं। नंदी मण्डप के बाये तरफ भित्ति से संलग्न एक लघु कक्ष में विष्णु की खण्डित प्रतिमा स्थापित है। कक्ष का आकार 1.6 ग 70 से.मी. है। विष्णु का सिर स्पष्ट है जिसके पीछे चक्राकार प्रभामण्डल है। प्रतिमा के नीचे दो अनुचर निर्मित है। मध्य का भाग सीमेंटेंड है। विष्णु का माप 105 ग 52 से.मी. है। इसके वायें तरफ भोगशाला का प्रवेश द्वार है जिसके अंदर दो कक्ष हैं। प्रथम बड़े कक्ष का आकार 3.85 ग 2.85 मी. है तथा आंतरिक छोटे कक्ष का आकार 3.70 ग 1.65 मी. है। बाहरी बड़े कक्ष के मध्य में दो वर्गाकार चौकी 55 ग 55 से.मी. के मध्य गोलाकार स्तंभ स्थापित हैं। इन दोनों कक्षों के मध्य की भित्ति की मोटाई 60 से.मी. है। भोगशाला का प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ है जिसका माप 140 ग 60 से.मी. है। भोगशाला के बायें तरफ चबूतरे से नीचे उतरने के लिये कुल पांच सीढ़ियां निर्मित हैं। सीढ़ी उतरने के पहले प्रस्तर निर्मित प्रवेशद्वार है। प्रवेश द्वार का माप 2.20 मी. ऊंचा तथा 1.10 मी. चौड़ा है। प्रवेश द्वार के बाहर ऊपर से क्रमशः पहली सीढ़ी 90 से.मी., दूसरी 45 से.मी., तीसरी 50 से.मी., चौथी 47 से.मी. एवं अंतिम पांचवी सीढ़ी 50 से.मी. चौड़ी है। उपर्युक्त सभी पांचों सीढ़िया अर्द्ध गोलाकार निर्मित है। भोगशाला तथा चबूतरे के दक्षिणी प्रवेश द्वार के दक्षिणी पूर्व कोने में सतखण्डा नामक प्रस्तर निर्मित कक्ष है जिसका प्रवेश द्वार मंदिर के सामने से पूर्व दिशा से हैं । इसका ऊपरी भाग खण्डित अवस्था में है तथा प्रवेश द्वार के दोनों तरफ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां निर्मित हैं।

लक्ष्मणेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार के वामपार्श्व में मंदिर के ईशान कोण पर राधाकृष्ण का एक छोटा मंदिर निर्मित है। इसमें लघु गर्भगृह तथा विशाल मण्डप हैं। गर्भगृह में नवीन धातु की राधाकृष्ण की प्रतिमायें स्थापित हैं। इसके बाहर मण्डप में पद्मासन में बैठे हुये दोनों हाथ जोड़े हुए एक उपासक की प्रतिमा भित्ति में जड़ी है जो ग्रेनाइट प्रस्तर से निर्मित है। प्रतिमा के नीचे हिस्से में पादपीठ पर ‘‘पंडित श्री दामोदरराय मूर्ति रियासतों देव कुलज्ञ’’ लेख अंकित है। इसके दोनों तरफ हाथ जोड़े हुये एक-एक उपासिकायें प्रदर्शित हैं। यह प्रतिमा रतनपुर के कलचुरि राजा के (मंत्री) पुजारी की है जो अपने समय का प्रसिद्ध पंडित था। संभवतः उसकी प्रतिष्ठा में इस प्रतिमा का निर्माण कराया गया होगा। इस प्रतिमा का माप 62 ग 42 ग 3 से.मी. है तथा काल 12 वीं शती ई. है। राधा कृष्ण मंदिर के सामने दायें तरफ मण्डप की भित्ति के सहारे एक जैन प्रतिमा का वितान अलंकरण स्थापित है जो काले ग्रेनाइट प्रस्तर से निर्मित है। इसका माप 74 ग 30 से.मी. तथा काल 12 वीं शती ई. है। राधा कृष्ण मंदिर का प्रवेश द्वार 1.28 मी. ऊंचा तथा 50 से.मी. चौड़ा है। इस मंदिर के मण्डप में उत्तरी किनारे पर भित्ति निर्मित है तथा दक्षिणी किनारे पर दो गोलाकार स्तंभ स्थापित हैं जिसके ऊपर ढलावदार छत निर्मित है। यह मंदिर 20 वीं शती ई. का है जिसके उत्तरी चबूतरे की लम्बाई 8.60 मी. तथा चौड़ाई 3.20 मी. है। मंदिर का बाह्य भाग पंचरथ योजना पर आधारित है। राधाकृष्ण मंदिर के सामने का मण्डप लगभग 50 वर्ष पूर्व का है।

राधाकृष्ण मंदिर एवं नंदी मण्डप के मध्य पूर्व की तरफ प्रवेश द्वार है जो 1.80 मी. चौड़ा है तथा उसके बाहर 3.30 मी. लम्बाई तक 2.30 मी. चौड़ाई की सीढ़ियां निर्मित हैं। मंदिर के वृद्ध पुजारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले इस द्वार के बाहर दलदल तथा एक मेड़ से लोग आते जाते थे क्योंकि यह मंदिर का मुख्य रास्ता नहीं था। राधाकृष्ण मंदिर के पीछे पूर्व दक्षिण कोने में गड्ढ़ा था जिसे बाद में भरकर पूरा किया गया है। लक्ष्मणेश्वर मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में अर्थात मंदिर के दक्षिण तरफ से जाकर बाहर बावड़ी तरफ निकलते थे। लक्ष्मणेश्वर मंदिर के पीछे दक्षिण पश्चिम कोने में मंदिर से लगभग 50 मीटर दूर एक प्राचीन वावड़ी भी निर्मित है जो परवर्ती काल में निर्मित प्रतीत होती है। वावड़ी की आंतरिक सतह प्रस्तर निर्मित है तथा इसमें अंदर घुसने के लिए पूर्व दिशा में पत्थर की सीढ़िया निर्मित हैं। इस वावड़ी में हमेशा पानी भरा रहता है।

इस प्रकार लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरोद की स्थापत्य कला, मूर्तिकला, मण्डप में स्थापित सोमवंशी एवं कलचुरि कालीन अभिलेख के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि मंदिर का गर्भगृह एवं अन्तराल भाग सोमवंशी शासकों के काल 6 वी शती ई. में निर्मित प्रतीत होता है तथा उस समय तक निर्मित मंदिर एक ऊंची जगती पर आधारित था। इस प्रकार की ऊंची जगती का निर्माण राजीव लोचन मंदिर, राजिम9 , लक्ष्मणेश्वर मंदिर, वालेश्वर मंदिर (दोनों ताराकृति वाले शिव मंदिर) सिरपुर, कलचा भदवाही10, सरगुजा स्थित ताराकृति वाले दोनों मंदिर काफी ऊंची जगती पर आधारित थे तथा उनका निर्माण काल भी लगभग एक समान है। इसी प्रकार ग्राम गिधपुरी जिला रायपुर स्थित शिव मंदिर की जगती भी काफी विशाल तथा ऊंची है जो सोमवंशी काल की है। लक्ष्मणेश्वर मंदिर, खरोद की गर्भगृह की आंतरिक भित्ति अष्टकोणीय है जो छत्तीसगढ़ के ताराकृति वाले मंदिरों से समानता रखती है। इसके अलावा इस मंदिर का मण्डप एवं स्थापित स्तंभ शिवरीनारायण स्थित केशवनारायण मंदिर से मेल खाते हैं तथा कलचुरि कालीन शिलालेख से भी खरोद के मंदिरों के जीर्णोद्धार की जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह सिद्ध होता है कि पाण्डुवंशी शासक इन्द्रबल के पुत्र ईशानदेव द्वारा मूल मंदिर का निर्माण लगभग 540 ई. में कराया था तथा इस मंदिर के मूल जगती के ऊपर कलचुरि शासक रतनदेव तृतीय के राजत्व काल में मंदिर के मण्डप का विस्तार किया गया।11 मुख्य मंदिर के मण्डप के प्रवेश द्वार के सामने बाहर तरफ निर्मित राधाकृष्ण मंदिर, नंदी मण्डप, शिव मंदिर, भोगशाला, सतखण्डा भवन आदि परवर्ती काल में 20 वीं शताब्दी ई. में निर्मित किए गए हैं। इस मंदिर से संलग्न प्रतिमाएं उमामहेश्वर, नंदी, राजा-रानी, राजपुरूष, विष्णु आदि कला के आधार पर शिवरीनारायण स्थित विभिन्न प्रतिमाओं, रतनपुर, मल्हार एवं गंधेश्वर मंदिर, सिरपुर में प्रदर्शित प्रतिमाओं से समानता रखती है। इससे यह प्रमाणित होता है कि ये प्रतिमाएं कलचुरि काल में निर्मित की जाकर मण्डप के जीर्णोद्धार के समय 12 वीं शताब्दी में स्थापित की गई होगी।

(2) इन्दल देवल मंदिर, खरोद – यह मंदिर ग्राम खरोद में उत्तरी किनारे पर तिवारी पारा में स्थित है। इस मंदिर के नाम से ज्ञात होता है कि पाण्डुवंशी शासक इन्द्रवल के नाम के आधार पर इस मंदिर का नामकरण बाद में किया गया है। यह मंदिर पश्चिमाभिमुखी है जो पूजित अवस्था में नहीं है। मंदिर में केवल गर्भगृह है जिसके ऊर्ध्व विन्यास में जंघा तथा शिखर भाग है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग मूलतः स्थापित था जो वर्तमान में अपनी मूल स्थिति से हटकर विलग कोने में रखा है। मंदिर का ऊपरी भाग ईट निर्मित है तथा निचला एवं आंतरिक भाग तथा द्वारशाखा प्रस्तर निर्मित है। विगत वर्षों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा शिखर भाग में सामने तरफ अनुरक्षण कार्य सम्पादित कर मूल रूप में लाने का प्रयास किया है।

तल विन्यास – मंदिर एक प्रस्तर निर्मित ऊंची जगती पर आधारित है। जगती वर्गाकार है जिसका माप 4.00 मीटर ग 4.00 मीटर है। जगती के ऊपर मंदिर त्रिरथ भू-योजना में निर्मित है। जगती की ऊंचाई 1.20 मीटर है। जगती के ऊपर गर्भगृह स्थापित है। गर्भगृह का माप वर्गाकार अर्थात 2 ग 2 मीटर है। गर्भगृह की आतंरिक भित्तियां सादी एवं सपाट हैं। गर्भगृह के आगे की तरफ दोनों कोने में भित्ति स्तंभ स्थापित हैं। गर्भगृह के मध्य में प्रस्तर निर्मित शिवलिंग मूलतः स्थापित है जिसका निचला भाग चौकोर फिर अष्टकोण तथा ऊपरी भाग गोलाकार है जो खण्डित है। शिवलिंग का माप 85 से.मी. है। गर्भगृह में पहुंचने के लिए धरातल से 5 सीढ़ियां ऊपर जाना पड़ता है। सबसे नीचे की पहली सीढ़ी 30 से.मी., दूसरी तथा तीसरी 25 से.मी. चौड़ी एवं पांचवी क्रमशः 24 एवं 23 से.मी. है तथा प्रत्येक सीढ़ी की चौड़ाई 1.58 मीटर है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार 1.38 से.मी. लम्बा है गर्भगृह के उत्तरी भित्ति में पानी निकलने का छिद्र है।

द्वारशाखा- गर्भगृह की द्वारशाखा त्रिशाख है जो प्रस्तर निर्मित है। पहली बाह्य शाखा में अलंकृत हीरे की आकृति, द्वितीय शाखा में मकर का सिर तथा कुण्डलित अलंकरण एवं तीसरी शाखा में मानवाकार गंगा तथा यमुना की प्रतिमायें स्थापित हैं। दायें तरफ की नदी देवी द्विभुजी है जिसका वाहन मकर खण्डित है। जबकि बायें तरफ स्थित नदी देवी यमुना का वाहन कच्छप निर्मित है। जबकि बायें तरफ स्थित नदी देवी यमुना का वाहन कच्छप निर्मित है। नदी देवी कलश तथा माला धारण किये है जिनके नीचे एक-एक सेविका प्रदर्शित है। दायें तरफ की नदी देवी के नीचे द्वारपाल क्षरित अवस्था में है। नदी देवियों के सिर के ऊपर छत्र निर्मित है। द्वार शाखा के सिरदल में अत्यधिक अलंकरण है जिसमें दोनों किनारे पर नाग-नागी इसके बाद नाग कन्या, दायें तरफ त्रिमुखी ब्रहमा जो कि हंस पर सवार अंकित हैं। मध्य में शिव तथा पार्वती अपने वाहन नंदी सहित स्थापित हैं। सिरदल के बायें तरफ गरुड़ासीन चतुर्भुजी विष्णु तथा अंत में नाग नागी स्थापित है।

डॉं. कृष्णदेव ने महाकोसल स्टाइल के मंदिरों में इस मंदिर को सिरपुर एवं खरौद स्थित शबरीनारायण मंदिर से अधिक विकसित माना है तथा इस मंदिर का निर्माण काल उन्होंने 650-675 ई. शती माना है। मंदिर की द्वारशाखा प्रस्तर निर्मित है जबकि बाह्य भाग ईंट निर्मित है। सोमवंशी शासकों के काल में निर्मित मंदिरों की यह प्रमुख विशेषता है। छत्तीसगढ में इस प्रकार के अन्य मंदिर षबरी माता मंदिर, खरोद (जिला जांजगीर-चांपा) लक्ष्मण मंदिर, राममंदिर, सिरपुर (जिला महासमुंद), सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी, जिला-बलौदाबाजार केवटिन मंदिर, पुजारीपाली (जिला रायगढ़) के अलावा शिव मंदिर, रानीपुर-झुराल (जिला सम्बलपुर, उड़ीसा), प्रमुख हैं।13

ऊर्ध्व विन्यास- खरोद स्थित यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के अन्य ईंट निर्मित मंदिरों यथा लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, शबरीनारायण मंदिर, खरोद, सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी तथा इनके विकसित क्रम में चितावरी देवी मंदिर, धोबनी के शिखर भाग से लगभग मिलता जुलता है। इस मंदिर का शिखर भी ईंट निर्मित है। शिखर के उत्तर में नीचे कुबेर, उत्तर-पूर्व कोने में इन्द्र-इन्द्राणी, (गजारूढ़) ऊपर कोण रथ में पूर्वी मध्य रथ में नीचे सूर्य का अंकन है। सूर्य के निचले भाग में पादपीठ पर दो अश्वों का अकंन स्पष्ट है। ऊपरी शिखर भाग में नृसिंह तथा दक्षिण-पूर्व कोने में गरूणासीन विष्णु का अकंन है। शिखर के दक्षिण पूर्व कोने में नृसिंह तथा दक्षिणी मध्य रथ में नीचे कमलासन में पद्मासनस्थ प्रतिमा है। इसी तरह ऊपरी मध्य भाग में गज लक्ष्मी तथा ऊपर नृसिंह प्रतिमा है। शिखर के दक्षिण पश्चिम कोने में गणेश प्रतिमा का अकंन है।

यह मंदिर तलविन्यास एवं ऊर्ध्व विन्यास में सिद्धेश्वर मंदिर पलारी जिला-रायपुर से मिलता जुलता है जबकि सिद्धेश्वर मंदिर का आकार इससे बड़ा है।14 सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी के शिखर भाग में भी दक्षिणी भित्ति में नृत्यरत गणेश, भद्र रथ में कर्णरथ में मयूरासीन कार्तिकेय, पूर्वी भित्ति के भद्ररथ में सूर्य तथा उत्तरी भित्ति के भद्र रथ में गजलक्ष्मी एवं कर्णरथ में कुबेर का स्पष्ट अकंन मिलता है। सिद्धेश्वर मंदिर के प्रतिरथ में दो शार्दूल तथा गजों का एकमुखी स्वरूप अंकित है। इन्दल देवल मंदिर, खरोद तथा सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी के बाह्य शिखर भाग में अर्द्ध चैत्य में स्थापित कुबेर, गजलक्ष्मी एवं नृत्य गणेश से समानता है तथा इन दोनों मंदिरों के शिखरों का आन्तरिक भाग भी लगभग एक समान है तथा इस प्रकार का आंतरिक खोखला भाग लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर एवं शिवमंदिर हर्राटोला जिला-सरगुजा से मिलते जुलते हैं। इस प्रकार इन्दल देवल मंदिर खरौद शबरीनारायण मंदिर के बाद तथा सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी के 25 वर्ष पूर्व अर्थात 650-675 ई. में निर्मित माना जा सकता है।

(3) शवरी मंदिर खरोद- यह मंदिर ग्राम खरोद में, दक्षिणी किनारे पर शासकीय उ.मा. विद्यालय के पीछे स्थित है। यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है जो प्रस्तर निर्मित जगती के ऊपर स्थित है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल एवं मण्डप तीनों अंग हैं। गर्भगृह ईंट निर्मित है तथा मण्डप प्रस्तर निर्मित है जिसका परवर्ती काल में जीर्णोद्धार किया गया प्रतीत होता है। प्रस्तर निर्मित जगती की लम्बाई पूर्व पश्चिम में अगला चौड़ा भाग 13.00 मीटर लम्बा तथा पिछला संकरा भाग 5.70 मीटर लम्बा है। जगती की पिछले भाग की उत्तर-दक्षिण दिशा में चौड़ाई 9.16 मीटर तथा अगले पूर्वी भाग की चौड़ाई 11.40 मीटर है। जगती की ऊंचाई 72 से.मी. है तथा इसके ऊपर निर्मित दूसरी जगती की ऊंचाई 42 से.मी. है। खरोद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर के मण्डप की बांयी भित्ति में जड़े कलचुरि कालीन अभिलेख के 32 वें पंक्ति से ज्ञात होता है कि षबरी मंदिर के मण्डप का विस्तार बहुत सुन्दर ढंग से किया गया जो कि ‘गंगाधर’ द्वारा निर्मित कराया गया है।15 जगती के ऊपर निर्मित मंदिर के तल विन्यास में गर्भगृह, अन्तराल एवं मण्डप तीन अंग हैं।

गर्भगृह- यह मंदिर पूजित अवस्था में होने से गर्भगृह के आंतरिक भाग का माप एवं कला की जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है क्योंकि गर्भगृह के अंदर चतुर्भुजी महिषासुर मर्दिनी की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है जिसे ग्रामवासी शबरी माता के नाम से पूजा करते हैं। नवरात्रि पर्व में यहां पर जवारा बोया जाता है। डॉ.श्याम कुमार पाण्डेय के अनुसार इस मंदिर के गर्भगृह में प्रारंभ में सूर्यनारायण की प्रतिमा स्थापित रही होगी जिसे बाद में सौर नारायण या शौरी नारायण तथा अंत में शबरी नारायण कहा जाने लगा। श्री पाण्डेय के मतानुसर गर्भगृह में स्थापित सूर्य नारायण की प्रतिमा खण्डित हो जाने के कारण उसके स्थान पर देवी प्रतिमा स्थापित कर दी गई होगी।16 उनके मतानुसार इस मंदिर में गर्भगृह तथा अंतराल का समावेश ही था। खरोद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार के समय रतनदेव तृतीय ने यहां भी मण्डप का निर्माण कराकर चारों तरफ से भित्ति का निर्माण कराया था। यही कारण है कि मंदिर के मण्डप के स्तंभ तथा भित्ति स्तंभ में असमानता है।

द्वार शाखा- शबरी मंदिर की द्वारशाखा अलंकृत हैं । द्वार शाखा द्विशाख है। आंतरिक शाखा में सबसे नीचे नदी देवियों का अकंन है तथा मध्य से ऊपर का भाग अनलंकृत है। बगल की बाह्य शाखा में दोनों तरफ सर्पिलाकार आकृति में अलंकरण है जिसके नीचे तरफ द्वारपाल तथा उसके ऊपर नाग प्रतिमाओं का अंकन है। सिरदल में आंतरिक परत में मध्य में भारवाहक तथा दोनों तरफ बलयाकार कुण्डलित अंकलरण है। बाह्य ऊपरी सिरदल के मध्य में दोनों तरफ पंख फैलाये हुये आसनस्थ गरुड़ का अंकन है जिसके दोनों तरफ नाग कन्या तथा मालाधारी विद्याधर प्रदर्शित हैं। दोनों नागकन्याओं की पूंछ से गरुड़ के पंख को लपेटे हुये दिखाया गया है। डॉ. कृष्णदेव17 ने भी इसे गरूड़ प्रतिमा बताया है जबकि डॉ. श्याम कुमार पाण्डेय ने मंदिर के सिरदल में सूर्य प्रतिमा का उल्लेख किया है।18

मण्डप- अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार शबरी मंदिर का मण्डप परवर्ती कलचुरि काल के शासकों द्वारा जीर्णोद्धारित है जैसा कि खरोद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर का मण्डप निर्मित कराया गया था। अभिलेख में उल्लेख है कि गंगाधर, रतनदेव तृतीय का मुख्यमंत्री तथा उसी की वंशावली का था। उसका पिता देवधर था जो कि कश्यप गोत्र का ब्राह्मण था। उसी ने सउरी (विष्णु) मंदिर के मण्डप का जीर्णोद्वार कराया था।19 मंदिर के गर्भगृह के सामने अन्तराल भाग में मध्य के दो स्तंभ अलंकृत है जो नीचे चौकोर उसके ऊपर अष्टकोणीय तथ सोडष कोणीय तथा अंत में आधार भाग निर्मित है जैसा कि लक्ष्मणेश्वर मंदिर के मण्डप के स्तंभ है। इस मंदिर का मण्डप 16 स्तंभों पर आधारित रहा होगा जो कि मध्य मे आठ स्तंभ दो पंक्ति में लक्ष्मणेश्वर मंदिर के समान भू योजना में आधारित हैं। इनमें से पिछले चार स्तंभ चौकोर तथा अगले चार स्तंभ प्रारंभ में अष्टकोणीय हैं। वर्तमान में मण्डप के दायीं भित्ति में कुल दो भित्ति स्तंभ, बांयी भित्ति में तीन भित्ति स्तंभ तथा पूर्वी बाह्यभित्ति में दो भित्ति स्तंभ विद्यमान है। इस प्रकार वर्तमान में कुल 15 स्तंभ ही स्थापित हैं। इस मंदिर का मण्डप आयताकार है जिसका माप पूर्व पश्चिम में 5.30 मीटर तथा उत्तर-दक्षिण 4.73 मीटर चौड़ा है। अंतराल भाग का आकार 2.37 ग 2.35 मीटर है। मण्डप की बांयी भित्ति के सहारे मध्य की पंक्ति में स्तंभ के साथ द्वार पाल की आदमकद प्रतिमा रखी है जबकि बांयी भित्ति के सहारे मध्य की पंक्ति में द्वारपाल की आदमकद प्रतिमा तथा बाह्य पंक्ति में नदी देवी की आभूषणों से युक्त प्रतिमा स्थापित हैं। मण्डप चारों तरफ से भित्ति से ढंका है। भित्ति की मोटाई 64 से.मी. है। मण्डप का बाहरी प्रवेश द्वार सादा है। मण्डप के स्तंभों से संलग्न इस प्रकार की प्रतिमायें राजिम स्थित राजीव लोचन, रामचन्द्र मंदिर, कुलेश्वर मंदिर20, डीपाडीह स्थित सामत सरना, शिव मंदिर, सरगुजा21 एवं शिव मंदिर सरदा22 जिला दुर्ग के मण्डप में मिलती है।

ऊर्ध्व विन्यास- शबरी मंदिर ऊंची जगती के ऊपर निर्मित है जैसा कि खरोद स्थित इन्दल देवल मंदिर एवं लक्ष्मणेश्वर मंदिर निर्मित है। यह मंदिर जगती के ऊपर एक प्रस्तर निर्मित अधिष्ठान पर आधारित है जो नीचे से त्रिरथ भू योजना में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह का सम्पूर्ण बाह्य भाग ईंट निर्मित है जिसके जंघा भाग में मध्य रथ में तीन तरफ चैत्य गवाक्ष का निर्माण किया गया जिनमें पूर्व में प्रतिमायें स्थापित रही होगी। शिखर के बाह्य भाग में वर्तमान में कोई भी प्रतिमा दृष्टव्य नहीं है जैसा कि इन्दल देवल मंदिर एवं सिद्धेश्वर मंदिर पलारी में है। इस मंदिर के शिखर भाग में मध्य रथ में चारों तरफ चैत्य गवाक्ष का अलंकरण है तथा मध्यरथ के दोनों किनारे पर एवं कर्णरथ में चारों कोनों पर लघु आमलक का अकंन है।

इस प्रकार का अलंकरण शिखर में इन्दल देवल मंदिर, खरोद, लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, केवटिन मंदिर, पुजारी पाली, सिद्धेश्वर मंदिर, पलारी, चितावरी देवी मंदिर, धोबनी आदि में मिलता है। शिखर के ग्रीवा भाग के ऊपर गोलाकार आमलक स्थापित है जिसके ऊपर लघु आमलक तथा कलश स्थापित है। डां. विष्णुसिंह ठाकुर के मतानुसार सौरी माता मंदिर का वर्तमान महामण्डप बाद की रचना है लेकिन मंदिर के वास्तु रूप में महामण्डप की योजना सम्मिलित थी। उन्होंने सौरी माता मंदिर का विश्लेषणात्मक वर्णन अपने पुस्तक में किया है तथा सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास से तुलना की हैं उनके मतानुसार पहली अवस्था का परिचय सौरी मंदिर से लेकर सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर, दूसरा राजिम लोचन मंदिर एवं अंतिम अवस्था के सिद्धेश्वर मंदिर पलारी तथा शिवरीनारायण के विष्णु मंदिर है।23 डॉ. कृष्णदेव ने इस मंदिर का निर्माण काल 650 ई. तथा डॉ. श्याम कुमार पाण्डेय ने 550-600 ई.के बीच माना है।

खरोद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर एवं इन्दल देवल मंदिर की स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इन तीनों मंदिरों में लक्ष्मणेश्वर मंदिर सबसे प्राचीन है जो कि सोमवंशी शासकों के काल में 6 वीं शताब्दी ई. में निर्मित कराया गया था जिसे परवर्ती काल में कलचुरि शासकों के काल में 12 वीं शती ई. में मण्डप का जीर्णोद्धार कराया गया जिसकी पुष्टि मण्डप की भित्ति में जड़े कलचुरि कालीन अभिलेख से होती है। तदुपरांत 20 वीं शती ई. के मध्य में मंदिर के सामने निर्मित नंदी मण्डप, राधाकृष्ण मंदिर, भोगशाला एवं सतखण्डा भवन आदि निर्मित कराये गये। इसी प्रकार खरोद स्थित शबरी नारायण मंदिर का गर्भगृह 600 ई. में निर्मित है जबकि उसका मण्डप 12 वीं शती ई. में रतनपुर के कलचुरि शासकों के अभिलेख के आधार पर उनके राजत्वकाल में लक्ष्मणेश्वर मंदिर के मण्डप के समय बनवाने की पुष्टि होती है। इन्दल देवल मंदिर मण्डप विहीन है लेकिन स्थापत्य कला की दृष्टि से द्वारशाखा एवं जंघा तथा शिखर भाग बलौदा बाजार जिले में स्थित सिद्धेश्वर मंदिर पलारी से लगभग समानता रखता है तथा दोनों ही मंदिर पश्चिमाभिमुखी हैं। सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, खरोद स्थित इन्दल देवल मंदिर के अगली विकसित अवस्था का परिचायक है जो 675 से 700 ई. के मध्य निर्मित माना गया है। खरोद स्थित तीनों ही मंदिर ऊंची जगती पर आधारित हैं तथा ऊंची जगती वाले मंदिर राजिम स्थित राजीव लोचन मंदिर, सिरपुर स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर, विष्णु मंदिर जांजगीर, गिधपुरी जिला-बलौदा बाजार स्थित शिवमंदिर के अवशेष, कलचा भदवाही स्थित ताराकृति वाले दो मंदिर, डीपाडीह जिला-सरगुजा स्थित शिवमंदिर उरॉव टोला, शालाभवन के पास स्थित मंदिरावशेष एवं पूर्वी कोना स्थित शिवमंदिर प्रमुख उदाहरण हैं जो सोमवंशी कला के विशिष्ट नमूने हैं।

संदर्भ- 1. वर्मा, कामता प्रसाद वर्मा, मंदिरों की नगरी खरोद-स्थापत्य व कला पर प्रकाश,कला वैभव, अंक 16, 2006-2007, पृष्ठ 113.

  1. मिराशी वी.वी., का. इ. इण्डि. वाल्यूम प्टए खरोद स्टोन इन्सक्रिप्सन आफ रतनदेव तृतीय, चेदि एरा वर्ष 933, पृष्ठ 532, 542..
  2. एपीग्राफिया इण्डिका, वाल्यूम-गगअपए पृष्ठ 18, एवं वाल्यूम गगअप पृष्ठ 222.
  3. राजिम, विष्णु सिंह ठाकुर, 1972, पृष्ठ 80.
  4. वर्मा, कामता प्रसाद वर्मा, बस्तर की स्थापत्य कला, वर्ष 2008, पृष्ठ 100.
  5. राजिम उपरिवत्, 1972, चित्रफलक 27-1
  6. निगम, लक्ष्मीशंकर, शिवमंदिर सरदा की स्थापत्य कला, कोसल, अंक-2, वर्ष-2, 2009, पृष्ठ 2.
  7. वर्मा, कामता प्रसाद वर्मा, मंदिरों की नगरी खरोद-स्थापत्य व कला पर प्रकाश,कला वैभव, अंक 16, 2006-2007, पृष्ठ 115.
  8. राजिम, उपरिवत्, पृष्ठ 80.
    10 -वर्मा, कामता प्रसाद वर्मा, छत्तीसगढ के ताराकृति मंदिरों का एक अध्ययन , कला वैभव, अंक 15, 2005-2006, पृष्ठ 220-224.
  9. शास्त्री, अजय मित्र, इन्सक्रिपसंस आफ द षरभपुरियाज, पाण्डुवंशीज एण्ड सोमवंशीज, द्वितीय भाग, 1975, पृष्ठ 375.
  10. कृष्णदेव, महाकोसल स्टाइल, पुरातन, अंक 9, षैव विषेषांक. पृष्ठ 9.
  11. राजिम, उपरिवत्, पृष्ठ 68.
  12. पुरातन अंक 9, पृ. 9.
  13. मिराशी वी.वी., का. इ. इण्डि. वाल्यूम प्टए पृष्ठ 42.
  14. पाण्डेय, एस.के. ‘दक्षिण कोसल, छत्तीसगढ़ का इतिहास तथा वास्तुशिल्प’’ (प्रारंभ से लेकर 13 वीं शदी ई. तक), 2002, पृ.143- 144.
  15. पुरातन अंक 9, उपरिवत्, पृ. 8.
  16. पाण्डेय, एस.के. उपरिवत्, पृष्ठ 143.
    19.का.इ. इण्डिकेरम वाल्यूम पगए पृष्ठ 535,
    20.राजिम, चित्रफलक 9,10,18,21,25.
    21.रायकवार,जी.एल.,‘डीपाडीह का मूर्ति शिल्प वैभव’, कला वैभव, अंक 15, 2005-06, पृ. 175.
    22.यादव, एस.एस. ‘‘सम पीक्यूलियर सेवाइट स्कल्पचर्स फ्र्राम सरदा’’, पुरातन अंक 6, पृ. 81-82.
    23.राजिम, उपरिवत्, पृष्ठ 68-70.

आलेख

डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
उप संचालक (से नि) संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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