जनश्रुतियाँ भी इतिहास एवं संस्कृति जानने का सशक्त माध्यम हैं, ऐसी ही एक जनश्रुति लगभग चार सौ वर्ष पुरानी हैं। माता अंगार मोती बड़ी फुरमानुख देवी है। न जानें दिव्य देवी शक्तियाँ कब किस पर अपार स्नेह की बारिश कर दे, रोग, शोक, भय रहित कर दे, सुख शांति और समृद्धि युक्त कर दे। जीवन को समस्त बाधाओं से मुक्त कर दे। सांवत की आंखो में वन देवी की दिव्य छवि बस सी गई है, न उन्हें भोजन की सुध न पानी की चाह, बस मौन धारण कर शून्य में निहार रहा है निरंतर, सांवत की माता गांव के गायता को बुला लाई है।
गायता (बइगा भगत) कहता है- सांवत जंगल रास्ते से गुजर कर आया है, देव झांक लगा है इसको। घटवारिन (घाट वाली देवी) के छल को कोई नही जानता। अभी नीबू, नारियल फेर देता हूँ लाली फेंक देता हूं, सब ठीक हो जाएगा।
आधी रात के बाद घाट की देवी घटवारिन दाई, सांवत के घर आई। सांवत की मां से कहने लगी कि “मैं तुम्हारे पुरखों की कुल देवी अंगार मोती हूं। मैं ही रात में तुम्हारे पुत्र को गांव तक छोड़ने आई थी। तुम अपने पुत्र को मेरा पुजेरी बना दो। तुम्हारे कुल की सदा रक्षा करूंगी।”
सांवत की मां भय से कापने लगी, माता अंगार मोती ने कहा – “डरो मत मैं तुम्हारे कुल की मान मर्यादा बढ़ाऊंगी, देखो मैं अंगार मोती तुम्हारे सामने खड़ी हूं”, सांवत की मां स्वप्न अवस्था से जागृत हुई, दण्डाशरण हो कहने लगी – “हे देवी माता हमारे परिवार जनों पर कृपा करो, सांवत आप ही का सेवक है, भगत है, उसकी रक्षा करो।” तब देवी ने कहा- “महानदी एवं सूखा नदी घाट संगम पर मेरी स्थापना करो और सांवत को मेरी पुजेरी बना दो।”
माता अंगार मोती की स्थापना उसी संगम घाट पर चंवर कोलमा, बटरेल और कोकड़ी के सरहदी सीमा पर हुई। मान प्रतिष्ठा पाकर माता अंगार मोती प्रसन्न हुई, मां की महिमा सुनकर दुरस्थ अंचल से माता माई के दर्शन हेतु आने लगे, संगम घाट में भारी मेला लगने लगा। माता अंगार मोती का स्नेहाशीष जिन्हें मिला उनकी सात पीढ़िया तर गई।
अंधन को आंख देत कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
यह लोकश्रुति माता अंगार मोती पर सटीक बैठती है। अंगार मोती माई की यश कीर्ति दिन दुनी रात चैगुनी होने लगी, मां का अनंत स्नेह सब पर समान रूप से बरसने लगा। जो आज तक अनवरत गतिमान है। मां की इच्छा के समक्ष सभी नतमस्तरक है।
आज अंगार मोती मां का यह प्रिय ठाना परिवर्तित हो चुका है, लोग कहते है सब मां की महिमा है, सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में सीना तान कर गर्व से खड़ा, भिलाई इस्पात संयंत्र से ढलकर निकलने वाली गर्म सलाखों को शांति प्रदान करने वाली महानदी के पावन प्रवाह को व्यवस्थित करने करने वाला गंगरेल मां की कृपा का महाप्रसाद है।
गंगरेल की अमृत धारा छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा है, उसी गंगरेल के पावन तट पर माता अंगार मोती का दिव्य धाम है, जो जन आस्था का केन्द्र बना हुआ है, यह स्थान बेहद अलोकिक और अति पवित्र है, दर्शनीय है, वंदनीय है, स्तुत्य है।
जय जय जय मां अंगार मोती
जय जय जय ……….
मां की महिमा जो नित गावे
हूम धूप दे दीप जलावे
नीबू लाली पान चढ़ावे
पाय आशीष परम सुख पावे
जय जय मां विद्युत जूहा
अनल प्रचंड शक्ति समुहा
महानदी तट परम सुहावन
गंगरेल अति निर्मल पावन
जहां विराजे देवी ज्वाला
अंगार मोती मां रवि बाला
जाकै फंसे भंवर में नइयां
सबको पार लगाती मइयां
पुत्र पति परिवार सहित, पूजन करे जो कोय
सुख समृद्धि मातृ कृपा सदा सुहागन होय
घर आंगन पावन करि, नित करते मां की महिमा गान
बाधा, व्याधि सकल कटें, बाढ़य नित सम्मान
जय जय जय मां अंगार मोती
जय जय जय
माता अंगार मोती का दरबार, आस्थावान भगत जनों से सदा आबाद रहता है, दीन दुःखियों की पीड़ा हरने वाली माता का अपार स्नेह रोग, शोक और भय का विनाश कर सुख शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
अल्प मृत्यु के भय से भयभीत, दुष्ट शक्ति से पीड़ित देवी बाधा से बाधित पांगन नाशक बाल्य व्याधि के महाकष्ट से मुक्ति के लिए हजारो कोस दूर से लोग यहां आते है। मां अंगार मोती सभी प्रकार के कष्टों का निवारण कर भय मुक्त जीवन प्रदान करती है।
संतानहीन, हताश, निराश दम्पति, पुत्र प्राप्ति की कामना कर माता की दरबार में शरणागत होकर याचना करते है, माता की असीम कृपा से साल भर के भीतर याचक दम्पति का घर आंगन नन्हें शिशु की किलकारी से गुंजने लगता है। जन भावनाओं का मान रखती, श्रद्धा का सम्मान करती आस्था एवं विश्वास की देवी के प्रति जन उद्गार कुछ इस तरह प्रगट होता है………
आशाओं के दो सुमन खिलें श्रद्धा के दो दीप जले
आदि भवानी तुम्हें समर्पित ममता का आशीष मिलें
जय वद देवी रणविका, महाकाल संघारिणी
कन्या रूपणी शतरूपा, दिव्य शक्ति धारिणी
जय विद्युता तरंगिणी सकल कष्ट निवारिणी
अनंत शक्ति अंबिका जय जगत कल्याणी
अग्नि कणिका तेजस्वनी दिव्य ज्योति वारिणी
महाशक्ति मातृका अभय शक्ति प्रदायनी
जय जय जय मां अंगार मोती
मां अंगार मोती के स्नेह सानिध्य की प्राप्ति हेतु माता के दरबार के मुख्य पुजारी का मार्गदर्शन फलदायी है। मां अंगार मोती के कृपा पात्र सांवत का वंशज ही देव शक्ति का उत्तराधिकारी है। वर्तमान मुख्य पुजारी देव सिंह नेताम से ज्ञात सुत्रों के मुताबिक सांवत बइगा के बाद राम्हू, गुरविन, पीताम्बर, मोती, रइनू, अर्जून, देव सिंह मां अंगार मोती के कृपा पात्र सेवक है।
प्रतिवर्ष देवारी के बाद प्रथम शुक्रवार को माता दरबार में मड़ाई भरता है, इसमें बावन गांव के देवी देवता आते है, हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है, मां की दर्शन कर मनौती मांगते है। माता सबकी मनोकामना पूरा करती है। वार्षिक आयोजन के अतिरिक्त बारहवों मास दीन दुखी जन आते है, मनौती पूर्ण होने की मानता भेंट माता को दे जाते है।
माता के दरबार में सिद्ध भैरव भवानी, डोकरा देव, भंगाराव की स्थापना है। चार सौ वर्षो से कच्छप वंशीय (नेताम) ही मां अंगार मोती की पूजा सेवा करते आ रहे हैं। वर्तमान पुजारी देव सिंह नेताम के स्नेह सानिध्य में ही मां अंगार मोती महिमा का श्रद्धा गान मां की कृपा से संभव हो पाया है।
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