Home / इतिहास / लुप्त इतिहास की कड़ियाँ जोड़ने वाला छत्तीसगढ़ का प्राचीन स्थल

लुप्त इतिहास की कड़ियाँ जोड़ने वाला छत्तीसगढ़ का प्राचीन स्थल

डमरु उत्खनन से जुड़ती है इतिहास की विलुप्त कड़ियाँ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात राज्य सरकार ने प्रदेश के पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन एवं संरक्षण पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया। इसके फ़लस्वरुप सिरपुर, मदकूद्वीप, पचराही, में उत्खनन कार्य हुआ तथा इसके पश्चात तरीघाट, छीता बाड़ी राजिम डमरु, जरवाय, लोरिक नगर रींवा में उत्खनन कार्य हुआ।

इन स्थानों पर हो रहे उत्खनन कार्य प्रदेश के इतिहास को जानने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केन्द्र सरकार से अनुमति प्राप्त होने पर छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले बलौदाबाजार से 12 किलोमीटर की दूरी पर लाफ़ार्ज सीमेंट फ़ैक्टरी (रसेड़ी) के समीप 21043* 10-60उत्तरी अक्षांश एवं 82015* 24-37पूर्वी देशांश पर स्थित डमरु नामक गाँव में 2014 में उत्खनन कार्य प्रारंभ हुआ।

पूर्व में पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा डमरु ग्राम के मृदाभित्ति दुर्ग की पहचान की गई थी तथा यहाँ स्थित प्राचीन शिवालय का संरक्षण कार्य भी किया गया था। प्राचीनकाल में सुरक्षा के उद्देश्य से मिट्टी के परकोटे वाले दुर्ग बना कर कबीले निवास करते थे। डमरु में भी इसी प्रकार का लगभग 42 एकड़ रकबे का गोलाकार मृदाभित्ति दुर्ग प्रकाश में आया।

इस दुर्ग में स्थित टीलों का उत्खनन कार्य किया जा रहा है। बस्ती के अंतिम छोर पर लगभग पन्द्रहवीं सदी का पूर्वमुखी शिवालय बना हुआ है। मंदिर परिसर से थोड़ा पैदल चलने पर दक्षिण दिशा में ठाकुर देव विराजे हैं और यहीं से मृदाभित्ति दुर्ग की सीमा प्रारंभ होती है।

मेरा डमरु उत्खनन स्थल पर पहुंचने का उद्देश्य उत्खनन कार्य से परिचित होना था। मडफ़ोर्ट (मृदाभित्ति दुर्ग) डमरु में पाँच बजे उत्खनन स्थल पर पहुंचने के लिए सुबह चार बजे जागना पड़ता था और सवा पाँच बजे उत्खनन कार्य प्रारंभ हो जाता था।

उत्खनन के दौरान कृष्णलोहित मृदाभांड के टुकड़े, बड़ी संख्या में लौहमल (आयरन स्लेग) सहित अन्य पुरा सामग्री प्राप्त हो रही थी। जिससे प्रतीत हो रहा था कि इस स्थान पर कभी बड़ी मानव बसाहट रही होगी।

उत्खनन में स्वास्तिक चिन्ह एवं ब्राह्मी लिपि युक्त मृण-मुद्रांक प्राप्त हुआ। जिसके ब्राह्मी लेख को डॉ. शिवाकांत बाजपेयी ने पढ़ा, उसमें जमनस/जमदस अंकित था।

लिपि एवं भाषा के आधार पर इसे द्वितीय या प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का माना गया और यही वह पल था जहाँ से छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास में विलुप्त कड़ियाँ प्राप्त होने एवं नई कड़ियाँ जुड़ने की शुरुवात हुई तथा डमरु का मृदाभित्ति दुर्ग अपनी प्राचीनता सिद्ध कर रहा था। इस ऐतिहासिक प्राप्ति का साक्षी मैं बना।

इस मृण-मुद्रांक के मिलने के पश्चात लगातार एक के बाद 40 मृणमुद्रांक प्राप्त हुए और इतिहास की एक के बाद एक परतें उघड़ते गई। जिन 9 मृण-मुद्रांकों की लिपि को पढ लिया गया है उनसे छत्तीसगढ़ के प्रथम सदी से लेकर पाँचवी सदी मध्य तक के महाराज कुमार श्री धरस्य, श्री महाराज … रुद्रस्य, महाराज श्री दरस्य, महाराज कुमार श्री मट्टरस्य, सदामा श्री [दाम (स्य)] नवीन शासकों के नाम ज्ञात हुए, जिनका इतिहास में अन्य कहीं उल्लेख नहीं मिलता।

इनके नाम के साथ महाराज श्री उल्लेख होने से ज्ञात होता है कि ये बड़े भू-भाग के शासक हुए हैं। उत्खनन के दौरान दो हजार वर्ष पुराना हाथी दांत का कंघा एवं अंजन शलाकाएँ प्राप्त हुई हैं, जो इन राजाओं के वैभव को प्रकाश में लाती हैं क्योंकि हाथी दांत की वस्तुओं का प्रयोग आम जन की पहुंच में नहीं था।

उत्खनन से प्राप्त सामग्री से ज्ञात होता है कि यह स्थल महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र रहा होगा। पुष्कल मात्रा में लौहमल एवं मृदाभांडों के अवशेषों का प्राप्त होना दर्शाता है कि यहाँ लौह उपस्कर एवं मृदाभांड निर्मित करने के कारखाने रहे होगें।

उत्खनन निदेशक डॉ. शिवाकांत बाजपेयी के अनुसार यह स्थल उत्तरापथ (कोशाम्बी) से दक्षिणापथ की ओर जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर प्राचीन स्थल मल्हार तथा शिवरीनारायण के माध्यम से जुड़ता है।

उत्खनन से प्राप्त पुरा सामग्री के आधार पर कुषाण काल, सातवाहन काल, गुप्त/सोमवंशी काल एवं परवर्ती गुप्त काल इसका सांस्कृतिक अनुक्रम बनता है। उत्खनन से प्राप्त मृण-मुद्रांको के पाठ से यह व्यापारिक क्रेन्द्र तो स्थापित होता ही है साथ ही डमरुगढ़ के रुप में महत्वपूर्ण शक्तिशाली राजनैतिक केन्द्र के रुप में भी उभरता हुआ दिखाई देता है।

उत्खनन निदेशक राहुल सिंह कहते हैं कि “डमरू छत्‍तीसगढ़ के मृदा दुर्ग यानि मिट्टी की दीवार और खाई वाले गढ़ों में से एक है और मल्‍हार के बाद ऐसा दूसरा स्‍थान है, जहां तकनीकी वैज्ञानिक उत्‍खनन किया जा रहा है।

इस स्‍थान से अब तक पहली से पांचवीं सदी ईस्‍वी के ब्राह्मी लिपि में लेख युक्‍त मुद्रांक प्राप्त हुए हैं तथा कई लघु स्‍तूपों के आधार प्रकाश में आए हैं। इन प्राप्तियों से छत्‍तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नया प्रकाश पड़ा है।”

डमरुगढ़ में उत्खनन कार्य आगे बढ़ने पर प्राचीन आवासीय गोलाकार रचनाएँ, चूल्हे, प्राचीन मिट्टी के बर्तन, विभिन्न कालखंडों के सिक्के, अर्ध कीमती पत्थर के मनके, पकी हुई मिट्टी के खिलौने, हाथी दांत से निर्मित कंघा, अंजन शलाकाएँ एवं अन्य सामग्री तथा लौह एवं ताम्र उपकरण प्राप्त हुए।

इस तरह द्वितीय-प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर पाँचवीं शताब्दी ईस्वी की ब्राह्मी लिपि में प्राप्त मृण-मुद्रांक अत्यंत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं।

प्राचीन गोलाकार आवासीय संरचनाएँ शुन्य से लेकर दो मीटर की गहराई तक प्राप्त हुई, जिनमें 14 छोटी एवं एक बड़ी संरचना है। इनकी गोलाई डेढ मीटर से लेकर साढे नौ मीटर तक नापी गई। इन संरचनाओं को लेकर कई दिनों तक विद्वानों में चर्चा होती रही।

अंतिम में इन्हें बौद्ध स्तुपों का आधार माना गया। यह ज्ञान होने के पश्चात डमरुगढ़ बौद्धों के बड़े केन्द्र के रुप में मान्य हो रहा है। डमरुगढ़ के अभी थोड़े से ही हिस्से पर उत्खनन हुआ है, भविष्य में उत्खनन होने के पश्चात इतिहास एक पन्नों पर नई इबारतें दर्ज होगी।

डमरुगढ़ से उत्खनन का महत्व इसलिए अधिक है कि यहाँ से ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर पांचवी शताब्दी ईस्वीं के बीच की कड़ियाँ डमरुगढ़ से प्राप्त हो रही हैं तथा ऐसे राजाओं के नाम प्रकाश में आए हैं जिनका कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता अर्थात छत्तीसगढ़ में डमरुगढ़ उत्खनन से कई नए राजवंशों के प्रकाश में आने की पूर्ण संभावना है।

यहाँ प्राप्त पुरा सामग्री के आधार पर छत्तीसगढ़ के इतिहास की विलुप्त कड़ियाँ जुड़ रही हैं। छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा कराए गए उत्खनन कार्य का दूरगामी परिणाम होगा।

अभी तो सिर्फ़ 9 मृण-मुद्राओं की लिपि को पढा गया है, जैसे-जैसे इनके पाठ पढ़े जाएं वैसे-वैसे नई ऐतिहासिक जानकारियाँ प्रकाश में आएंगी और हम अपने गौरवशाली इतिहास को जान पाएगें। साथ ही इतिहास की अन्य परतें उघड़ेगीं और नई जानकारी सामने आयेगी।

आलेख

श्री ललित शर्मा (इंडोलॉजिस्ट) संपादक, दक्षिण कोसलटुडे

About hukum

Check Also

भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर स्वामी विवेकानंद का प्रभाव

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर स्वामी विवेकानंद के प्रभाव का वर्णन स्वयं स्वतंत्रता के नायकों …

One comment

  1. Interesting and informative article

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *