Home / अतिथि संवाद / 75 वर्ष स्वतंत्रता के : क्या खोया, क्या पाया

75 वर्ष स्वतंत्रता के : क्या खोया, क्या पाया

आजादी का अमृत महोत्सव विशेष आलेख

भारत अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। हमारे धर्मशास्त्र एवं पुराणों में जीवन जीने की कला के साथ साथ धर्म, आध्यात्म ,राजनीति, अर्थ व्यवस्था एवं विज्ञान की चमत्कृत कर देने वाली घटनाएँ एवं गाथाएँ मौजूद हैं। किसी भी राष्ट्र के निर्माण में भौगोलिक सीमा, धर्म, जाति, भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनके संरक्षण में स्वतंत्रता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आज़ादी का मतलब होता है बंधन मुक्त होना, स्वेच्छा से हर काम को गति देना, भविष्य के विकास तथा नव निर्माण के लिए मापदंड तय करना और जीवन के हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करना। स्वतंत्रता हर प्राणी के लिए बुनियादी जरूरत है, इससे मानसिक शांति मिलती है। आचार विचार के बंधन मुक्त होने से अनुसंधान के नए मार्ग खुलते हैं। विचारों में आई क्रांति से नव युग का निर्माण होता है। आज जरूरत है आज़ादी की कीमत को समझने की। आज़ादी का मतलब केवल झण्डा फहराना नहीं होता। उस झंडे से जुड़ी नीतियों एवं सिद्धांतों का पालन करना भी हमारा नैतिक दायित्व होता है।

गुलामी सजा का प्रतिरूप होती है। आज़ाद मस्तिष्क में रचनात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। देश विकास की ओर अग्रसर होता है। गुलाम मस्तिष्क में केवल आज़ाद होने की छटपटाहट होती है। दूसरों की आँखों से देखे गए सपनों से शांति नहीं मिलती। आज़ादीपाने के लिए हमें बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी है। सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने भारत में अपना व्यापार शुरू किया था। सन 1857 से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ भारतीय आंदोलन की शुरुआत हुई थी। धीरे धीरे इस आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया एवं कालांतर में मोहन दास करमचंद गांधी द्वारा इस आंदोलन की अगवानी की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन 1946 में ब्रिटिश सरकार की देश के मजदूरों पर पकड़ ढीली पड़ गई। उन्हें अपने देश में ही उनका समर्थन नहीं मिल पा रहा था, ना ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं स्थानीय बल तथा ताकत पर भरोसा नहीं रह गया था। उस समय भारत में आज़ादी का आंदोलन चरम सीमा पर था। जिसके चलते वे प्रशासन जारी रख पाने में असमर्थता मससूस करने लगे थे। ऐसी विषम परिस्थिति में उन्होंने भारत को उनका गणतंत्र सौपने का निर्णय लिया।

जून 1947 को माउण्टबेटन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग एवं सिख समुदाय के लोगों से बात कर भारत के विभाजन की नीति बनाई। हिन्दू एवं सिख के लिए नए राष्ट्र इंडिया एवं मुस्लिमों के लिए नए राष्ट्र पाकिस्तान का प्रावधान रखा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की – कि उन्होंने भारत के दो भागों में विभाजन को स्वीकार कर लिया है। 14 अगस्त को पाकिस्तान एवं 15 अगस्त को स्वतंत्र भारत राष्ट्र का निर्माण हुआ।

15 अगस्त सन 1947 को हमें ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी मिली, संप्रभुता प्राप्त हुई। पाकिस्तान के प्रथम प्रधान मंत्री मो.अली जिन्ना एवं भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु बनाए गए। 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को अपने भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के साथ जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आज़ादी की घोषणा की। साथ ही उन्होंने अपने भाषण में कहा कि वर्षों की गुलामी के बाद ये वो समय है जब हम अपना संकल्प निभाएंगे और अपने दुर्भाग्य का अंत करेंगे। इस दिन लाल किला दिल्ली सहित सभी निजी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।

दिल्ली के लाल किले में प्रधान मंत्री द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है एवं उसके परकोटे से राष्ट्र को संबोधित किया जाता है। इस अवसर पर पूरे देश में जगह जगह तिरंगे को सलामी दी जाती है। परेड एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह भारत का राष्ट्रीय त्योहार है। 15 अगस्त के दिन राष्ट्र ध्वज को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हुये देश की उपलब्धियों का ब्योरा प्रस्तुत करते हैं। सभी प्रान्तों के मुख्य मंत्रियों द्वारा राजधानी में ध्वजारोहण किया जाता है।

राष्ट्रध्वज़ का वर्तमान रूप सन उन्नीस सौ इकतीस में निश्चित किया गया था। इसमें केसरिया रंग की पट्टी सबसे ऊपर, हरी पट्टी सबसे नीचे और बीच में श्वेत पट्टी जिस पर चरखा था। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने पताका में संशोधन किया और चरखे के स्थान पर 24 अरों वाला अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहते हैं रख दिया। केसरिया रंग उत्साह और त्याग का, श्वेत रंग सत्या और शांति का तथा हरा रंग श्रद्धा और वीरता का है। अशोक चक्र भारतीय संस्कृति का प्रतीक है तथा 24 तीलियाँ मनुष्य के 24 गुणों को दर्शातीं हैं। हमारे संविधान की गणना दुनिया के श्रेष्ठ संविधानों में होती है। इसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं जिन्हें 25 भागों में विभक्त किया गया है।

आज़ादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों एवं कवियों द्वारा बहुत से प्रेरक गीत लिखे गए जिनका आज़ादी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा यथा-

जला अस्थियाँ अपनी सारी ,छिटकायी जिसने चिंगारी, जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल ,कलम आज उनकी जय बोल – रामधारी सिंह दिनकर

वंदना के इन स्वरों में , एक स्वर मेरा मिला लो ,हो जहां बलि शीश अगणित , एक सिर मेरा मिला लो – सोहन लाल द्विवेदी

सूली का पाठ ही सीखा हूँ ,सुविधा सदा बचाता आया ,मैं बलि पथ का अंगारा हूँ, जीवन ज्वाल जलाता आया- माखन लाल चतुर्वेदी 

वतन की रह में वतन के नौजवां शहीद हो,पुकारते हैं ये जमीन आसमां शहीद हो – कप्तान ठाकुर राम सिंह

कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएंगे ,आज़ाद ही हो लेंगे ,या सर ही काटा देंगे – अशफाक़ उल्ला खान

जहां सदा विस्तीर्ण विचारों और कर्म में मन रत हो,हे पितु उसी स्वतंत्र स्वर्ग में जगता प्यारा भारत हो – रवीद्रनाथ टैगोर

वीरों का कैसा हो बसंत ,आ रही हिमालय से पुकार,है उधति गरजता बार-बार,प्राची-पश्चिम ,भू नभ अपार,सब पूछ रहे हैं दिग- दिगंत- सुभद्रा कुमारी चौहान 

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी ये गुल्सिताँ हमारा, मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा – इकबाल

चलहु वीर उठि तुरत सबै जय –ध्वजहि उड़ाओ ,लेहु म्यान सो खडग खींची रनरंग जमाओ – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

सवा सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा ,गोविंदसिंह निज नाम जब कहाऊंगा – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है-राम प्रसाद बिस्मिल

कुछ खेल नहीं है आज़ादी,इसमें है खुद की बरबादी,जो बरबादी के हों आदी ,यह उनके चरणों की चेरी,वरना देती कुछ ध्यान नहीं है, आज़ादी आसान नहीं है- नवाब अहमद अली ख़ान

भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, हर धर्म एवं जाति के लोगों को यहाँ अभिव्यति की पूरी आज़ादी है। आज भारत अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहा है। जहाँ आजादी के 75 वर्षों में भारत ने विज्ञान, तकनीक, कृषि, साहित्य, खेल आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय तरक्की की है, बहुत कुछ पाया है, वहीं समय के साथ साथ बहुत कुछ खोया भी है। बीते 75 सालों में अपनी अंदरूनी समस्याओं, चुनौतियों के बीच देश ने ऐसा कुछ जरूर हासिल किया है, जिसकी तरफ दुनिया आकर्षित हो रही है।

प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने कहा है कि आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी आज़ादी की ऊर्जा का अमृत, स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत, नए विचारों का अमृत ,नए संकल्पों का अमृत एवं  आत्मनिर्भरता का अमृत। देश की 75 वीं वर्षगांठ का मतलब 75 साल पर विचार, 75 साल पर उपलब्धियां, 75 पर एक्शन और 75 पर संकल्प शामिल हैं, जो आज़ाद भारत के सपनों को साकार करने के लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे।

दांडी मार्च अर्थात नमक सत्याग्रह की 91 वीं वर्षगांठ पर अमृत महोत्सव इसलिए शुरू किया गया क्योंकि 1930 में अंग्रेजी शासन में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। उन्हें इंग्लैंड से आने वाला नमक का ही इस्तेमाल करना पड़ता था। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने इस नमक पर कई गुना कर भी लगा दिया था। लेकिन नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु है इसलिए इस कर को हटाने के लिए गांधी ने यह सत्याग्रह चलाया था। देश के पास गर्व करने के लिए आज असंख्य उपलब्धियां  हैं तो अफसोस जताने के लिए अनेक कारण भी मौजूद हैं। ऐसे में एक देश और व्यक्ति के रूप में पिछले 75 वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया इस पर चिंतन करना बेहद जरूरी है।

क्या पाया ?

भारत में स्वतंत्रता के तुरंत बाद जब 560 रियासतों ने भारत संघ के अधीन आना स्वीकार किया तो दुनिया का सबसे बड़ा विलय और अधिग्रहण हुआ। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस विलय और अधिग्रहण की घटना में एक भी बूंद खून नहीं बहा, न तो गोलीबारी हुई और विलय का पूरा काम बहुत अच्छी तरीके से हो गया।

75 वर्षों में भारत ने सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, खेल एवं तकनीकी क्षेत्र अपनी एक पहचान बनाई है। इस विकास यात्रा में नए कीर्तिमान बने हैं। आज भारत की पहचान एक सशक्त राष्ट्र के रूप में हो चुकी  है। आंतरिक चुनौतियों एवं सांप्रदायिक सौहार्द्र को बनाए रखते हुए भारत ने अपनी अनेकता में एकता की खासियत एवं धर्मनिरपेक्षता की भावना बरकरार रखी है। 

भारत लोकतंत्र का एक जीवंत उदाहरण है। विरोधी विचारों का सम्मान करना लोकतंत्र को नयी ताकत एवं गति प्रदान करता है। स्वतंत्रता के बाद से भारत अपने शिक्षा के क्षेत्र में लगातार विकास कर रहा है। भारत की वर्तमान साक्षरता दर 74.04% है। स्वतंत्रता के समय यह मात्र 12% थी देश में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप हमारे खाद्यान्न उत्पाद में चार गुना से भी अधिक की बढ़ोतरी हुई। संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय तरक्की हुई है। औद्योगिक क्रांति से देश काफ़ी आगे बढ़ा है।

कोरोना वैश्विक महामारी पर देश अंकुश लगाने में सफल हुआ है। इसके लिए डॉक्‍टर, नर्सिस, पैरामेडिकल स्‍टाफ सफाई कर्मी एवं  वैक्‍सीन बनाने में जुटे सभी वैज्ञानिक वंदनीय हैं।

ओलंपिक में भारत की युवा पीढ़ी ने विश्वस्तर पर देश का नाम रोशन किया है। देश में प्रति वर्ष 14 अगस्‍त को विभाजन विभीषिका स्‍मृति दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया है । आजादी के 75 वें स्‍वतंत्रता दिवस पर विभा‍जन विभीषिका स्‍मृति दिवस का तय होना, विभाजन की त्रासदी झेलने वाले लोगों को भारतवासियों की तरफ से श्रद्धांजलि देने की दिशा में उठाया गया यह महत्वपूर्ण कदम है। आरक्षण की नई व्‍यवस्‍था के तहत  दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों एवं सामान्‍य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।

शहरों की तरह गांवों में तेजी से परिवर्तित हुआ है। गांवों तक सड़क और बिजली जैसी सुविधाएं पहुँच चुकी हैं। अब गांवों में भी ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, डेटा की ताकत पहुंच रही है, इंटरनेट पहुंच रहा है। गांव में भी डिजिटल उद्यमी  तैयार हो रहे हैं। अब देश वोकल फॉर लोकलके मंत्र के साथ आगे बढ़ने लगा है। इससे महिला स्वयं दसेवक समूहों के उत्‍पादों को देश के दूर-दराज के क्षेत्रों एवं विदेशों से जोड़ने में काफी मदद मिलेगी।

देश छोटे किसानों को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाने लगा है। आज 70 से ज्‍यादा रेल रूटों पर, किसान रेल चल रही है। जिसकी सहायता से छोटे किसान,  अपने उत्‍पाद ट्रांसपोर्टेशन के कम खर्च पर, दूर-दराज के इलाकों में पहुंचा सकते में समर्थ हो गए हैं। स्‍वामित्‍व योजना द्वारा गावों में घर की एवं जमीन की, ड्रोन के जरिए मैपिंग हो रही है। इससे न सिर्फ गांवों में जमीन से जुड़े विवाद समाप्‍त हो रहे हैं बल्‍कि गांव के लोगों को बैंक से आसानी से लोन की व्‍यवस्‍था उपलब्ध हो रही है।

रक्षा उत्‍पादन के क्षेत्र में भी भारत आज स्वावलंबी हो चुका है। अपना लड़ाकू विमान ,सबमरीन एवं गगनयान बना रहा है। देश के पास 21वीं सदी की सक्षमता, रोजगार एवं विकास जैसी जरूरतों को पूरा करने वाली नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ उपलब्ध है।

आम आदमी को सशक्त बनाने के लिए कई जनकल्याणकारी नीतियां और योजनाएं बनाई गईं हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा जैसे कार्यक्रमों एवं योजनाओं ने आम आदमी को सशक्त बनाया है। उदारीकरण के बावजूद भारत आर्थिक, सैन्य एवं अंतरिक्ष क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। परमाणु हथियारों की बात हो या मिसाइल तकनीकी की दुनिया भारत का लोहा मान रही है। अंतरिक्ष क्षेत्र में भी भारत ने अनेक कीर्तमान गढ़े हैं। मंगल मिशन की सफलता एवं रॉकेट प्रक्षेपण के बदौलत भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में महारथ रखने वाले प्रमुख  देशों में शामिल हो गया  है। आईटी सेक्टर में भी देश ने अग्रणी होने का प्रमाण दिया है।

जनकल्याण की दिशा में जन-धन योजना की घोषणा के तहत करोडों लोगों के खाते खोले गए।  देश में बैंकों ने कैंप लगाकर वंचित लोगों के खाते खोलकर उन्हें बैंकिंग सुविधा से जोड़ने का काम किया था।  देश के गरीब भी गैस चूल्हे पर खाना बना सकें, इस मकसद से उज्ज्वला योजना का आगाज हुआ। सौभाग्य योजना के तहत हर घर तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया। देश के हर शख्स को बेहतर इलाज के लिए आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की गई है।  

मोदी सरकार ने सबसे एतिहासिक फैसला राम मंदिर निर्माण एवं जम्मू-कश्मीर को लेकर लिया । जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने का कदम उठाने के साथ-साथ राज्य को दो हिस्सों में बांटने का काम भी हुआ. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव मंजूर किया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया गया.। कश्मीर में अलगाववाद और विद्रोह को चारा मुहैया करना वाले अनुच्छेद 370 का खात्मा करके सरकार ने आतंकवाद पर भी नकेल कसने का काम किया।

मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया गया । एक अगस्त 2019 से तीन तलाक देना कानूनी तौर पर जुर्म बन गया है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अन्य देशों में रह रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और यहूदी को भारतीय नागरिकता मिल सकती है।  

हमने अपने दम पर अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सफलता अर्जित की, महामारियों का उन्मूलन किया और आईटी क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। दुनिया में आज भारत चार बड़ी सैन्य शक्तियों में से एक है और इसके पास दनिया के अत्याधुनिक मिसाइल हैं।

क्या खोया ?

आज स्वार्थलोलुपता के चलते हमारी सांस्कृतिक अस्मिता एवं परम्पराओं का अवमूल्यन तथा आस्था और विश्वास का क्षरण हो रहा है। हम बौद्धिक दासता स्वीकार करने के आदी हो गए हैं। हमारी संस्कृति अनुकरण करने की संस्कृति बनकर रह गई है। कई क्षेत्रों में लाल फीताशाही, अकर्मण्यता, कर्तव्यहीनता , दिशाहीनता ,भ्रष्टाचार , घोटाला, भाई भतीजावाद, संप्रदायवाद, आतंकवाद एवं नक्सलवाद जैसी समस्याओं से आज भी देश जूझ रहा है।  आक्रांताओं का सामना करना पड़ रहा है। देश भक्त स्वाभिमानी नागरिकों की संख्या में जिस रफ्तार से बढ़नी चाहिए नहीं बढ़ रही है। 

हम भौतिक सुविधाओं के आदि होकर झूठे सपनों के पीछे भाग रहे हैं। मर्यादाएं टूट रहीं हैं। नैतिक मूल्य घट रहे हैं। व्यक्ति पूजा बढ़ रही है। जीवन के हर क्षेत्र में स्वार्थ का बोलबाला है। भोगविलास की इच्छाएं आसमान को छू रहीं हैं। भारत कल भी सोने कि चिड़िया था आज भी है फर्क केवल इतना है कल सोने कि चिड़िया दिखाई पड़ती थी जबकि आज कुछ लोगों ने उसे कैद करके रख लिया है। भारत में आज़ादी की उम्र जैसे जैसे लंबी हो रही है उसका दुरुपयोग करने वालों कि संख्या बढ़ती जा रही है। आज़ादी पाने के लिए लहू बहाने वालों के परिवार की दशा का आंकलन करना भी जरूरी है। आज़ादी की लड़ाई से जुड़े हर परिवार को यदि हम हम खुशहाली दे पाते हैं तो यह शहीदों को दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आज भारत भय, भुखमरी, भ्रष्टाचार, आतंक, हिंसा, बलात्कार एवं सांप्रदायिक दंगों से जूझ रहा है। आज़ादी कुछ लोगों के लिए खिलौना बनकर रह गयी है। वे जैसा चाहे वैसा इसके साथ मनमाने ढंग से खेल रहे हैं।

सत्ता पाने के लिए नए नए नुस्खे अपनाए जा रहे हैं। प्रजातन्त्र में राजतंत्र की झलक दिखाई देने लगी है। नेताओं के आने से नेता कम राजा महाराजाओं जैसा स्वागत ,सत्कार एवं उत्सव अधिक दिखाई पड़ता है। देवों की जगह दरवेशों की पूजा होने लगी है। राजनीति में देश एवं समाज सेवा  की भावना सबसे ऊपर होनी चाहिए। देश एवं समाज सेवा के नाम पर सत्ता प्राप्त करने के लिए की जाने वाली राजनीति के परिणाम अच्छे नहीं निकलते। विगत कुछ वर्षों से धर्म में राजनीति एवं राजनीति में धर्म का समावेश दिखाई पड़ रहा है।सत्ता तक पहुँचने के लिए धर्म एवं जाति को सुलभ माना जाने लगा है। धर्म एवं जाति के आगे योग्यता बौनी दिखाई दे रही है।

आज़ादी के 74 वर्षों बाद भी 37 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 17 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के विधान मंडल में हिन्दी को अपनाया गया है। शेष 20 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के विधान मंडल में वहाँ की राजभाषा भले लागू हो लेकिन हिन्दी को नहीं अपनाया गया है इनसे पत्राचार करना हो तो अंग्रेजी में ही करना होगा का नियम लागू है। दरअसल राजभाषा हिन्दी राजनीति का शिकार हो गई है। क्षेत्रवाद, जातिवाद एवं भाषावाद का सत्ता पर पड़ने वाले प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।हिन्दी को संवेधानिक रूप से राष्ट्रभाषा घोषित न कर पाना देश के आगे बहुत बड़ी चुनौती है।

15 अगस्त, 2022 को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 75 वीं वर्षगांठ से एक साल पहले यानी 15 अगस्त 2021 से इन कार्यक्रमों को शुरुआत हो चुकी है। जिसके अंतर्गत देश भर में अदम्य भावना के उत्सव दिखाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं । प्रत्येक राज्य में अपने-अपने ढंग से मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। 

आज़ादी का मतलब होता है अपनी मर्जी से निर्माण कार्यों को गति प्रदान करना ,प्रगति के नए मापदंड तय करना, सार्वजनिक रूप से विचरण करते हुये अपनी खुशियों का इजहार करना , हर धर्म एवं जाति का सम्मान करना एवं सबको बराबर का हक प्रदान करना ना की इसके विपरीत आचरण करना। आज़ादी का मतलब होता है बंधन मुक्त होना। आचार विचार के बंधन मुक्त होने से अनुसंधान के नए मार्ग खुलते हैं। विचारों में आई क्रांति से नव युग का निर्माण होता है। आज जरूरत है आज़ादी की कीमत को समझने की। आज़ादी का मतलब केवल झण्डा फहराना नहीं होता। उस झंडे से जुड़ी नीतियों एवं सिद्धांतों का पालन करना भी हमारा नैतिक दायित्व होता है। आज़ादी का सदुपयोग करें, देश की एकता एवं अखंडता को बनाये रखें। देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी वीर शहीदों को कोटिशः नमन। हमें अपनी आज़ादी पर गर्व है।        

आलेख

डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ क्वार्टर नं.एएस -14,पॉवरसिटी, अयोध्यापुरी, जमनीपाली, जिला – कोरबा (छ.ग.)495450 मो.नं.9424141875 7974850694

About nohukum123

Check Also

अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलाने वाले अद्भुत योद्धा : चन्द्र शेखर आज़ाद

महान क्राँतिकारी चन्द्रशेखर आजाद एक ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे कि उन्होंने अंग्रेजी शासन …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *