बस्तर राजवंश की कुलदेवी दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में काकतीयों के 2 शिलालेख भी स्थापित हैं।
इस मंदिर में एक प्रतिमा है जिसमें दो स्त्रियों को दिखाया गया है। जिसमें एक के हाथ में पेटिका (पर्स) तथा दूसरी स्त्री के हाथ में “बिजणा” ( हाथ पंखा) दिखाया गया है।
पेटिका धारी स्त्री आगे चल रही है और पंखा झलते हुए स्त्री पीछे। महत्वपूर्ण यह है कि वर्तमान में भी स्त्रियाँ बाजार जाते समय या बाहर कहीं घूमने जाते समय अपने साथ पर्स अवश्य रखती है।
इस प्रतिमा में भी स्त्री ने वैसा ही पर्स धारण कर रखा है। जिससे पता चलता है कि चौदहवीं शताब्दी में भी पर्स धारण करने का फ़ैशन था और राजकुल की स्त्रियाँ इसे धारण करती थी, जो वर्तमान तक चला आ रहा है।
बांस से निर्मित इस पेटिका को बस्तर में “पिसवा” कहा जाता है, जिसका चलन प्राचीन काल से अद्यतन जारी है। ये तो तय है कि फ़ैशन हर युग में रहा है, सिर्फ़ थोड़ा बहुत रुप बदल कर दिखाई देता है।