स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।
रामराज्य की आहट लेकर, नया सवेरा आया है ।
जाति- पाँति के बंधन टूटे, टूट गई मन की जड़ता।
ज्वार उठा भाईचारे का, धुल गई कड़वी कटूता।
निर्भय होकर नर- नारी सब, अपने दायित्व निभाते
उत्पीड़न करने वालों का, नहीं कहीं भय-साया है।
स्वाभिमान जागा लोगों का भगवा ध्वज लहराया है।
कोई नहीं पराया जग में, सबको गले लगाएँगे।
दीन जनों की कुटियों में भी, स्वर्ग उतारे जाएँगे।
भेदभाव के बिना सभी का, मंगल ही मंगल होगा
भूख ,गरीबी, भय से लड़ने, योगी अलख जगाया है।
स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।
राष्ट्रवाद है कलकल बहती, गंगा-सी निर्मल धारा ।
हमको है प्राणों से प्यारा, अनुपम यह देश हमारा।
आदिकाल से आर्य सुतों ने, यह संस्कार बनाया है।
स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।
सप्ताह की कविता