देशभक्त हिंदुस्तानी हो, वीरों का अनुसरण करो।
सहो नहीं अत्याचारों को, संघर्षों का वरण करो।।
वतन-चमन को किया प्रदूषित,
जहर उगलते व्यालों ने।
गाली की हर सीमा लाँघी,
इस युग के शिशुपालों ने।
शांत चित्त रह चक्र चलाने, मोहन का अनुसरण करो।
संकल्पों की भुजा उठाकर, संघर्षों का वरण करो।।
हृदय-मंजूषा गर्व भरा हो,
नस-नस में धधके ज्वाला।
झूम उठे मन निरख तिरंगा,
चक्षु मधुप पी मधु प्याला।
संस्कारों के अमल अमिय से,चिंतन का आभरण करो।
संकल्पों की भुजा उठाकर,संघर्षों का वरण करो।
हो विकास में योगदान कुछ,
राष्ट्र हमारा शिखर चढ़े।
विश्व गुरू का गौरव लौटे,
दिग दिगंत तक कीर्ति बढ़े।
सेवा में जीवन अर्पण कर,सार्थक अपना मरण करो।
संकल्पों की भुजा उठाकर, संघर्षों का वरणकरो।
सप्ताह की कविता
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हथबंद, छत्तीसगढ़