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शिव मंदिर देवखूंट का पुरातात्विक विश्लेषण

ग्राम देवखूंट 20॰ 19’ उत्तरी अक्षांस तथा 81॰ 87’ पूर्वी देशांतर पर, धमतरी-सिहावा मार्ग पर ग्राम बिरगुड़ी के आगे टेमनीपारा नामक बाजार मोहल्ले से बायें तरफ लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर जंगली तथा कच्चे रास्ते में दुधावा बाँध के ऊपर, बाँध की तलहटी में स्थित है जो वर्तमान में धमतरी जिले के अन्तर्गत आता है। यह स्थल रायपुर से लगभग 160 किलोमीटर तथा धमतरी से लगभग 82 किलोमीटर की दूरी पर है।

ग्राम में महानदी के बायें तट पर लगभग 100 फीट की दूरी पर एक प्राचीन मंदिर के अवशेष विद्यमान हैं। वर्तमान में यह बाँध के डूब क्षेत्र के अन्तर्गत होने से आबादी विहीन है। इस ग्राम को वर्ष 1952 में दुधावा बाँध के डूब क्षेत्र में आने के कारण पहाड़ी के ऊपर विस्थापित किया गया है। वर्ष 2004-2005 के लगभग पुरातत्व विभाग द्वारा विभागीय पुरातत्वविद श्री जी,एल.रायकवार के मार्गदर्शन में देवखूंट स्मारक स्थित महत्वपूर्ण प्राचीन प्रतिमाओं को बाँध के डूब क्षेत्र से बाहर के ग्राम में स्थानांतरित करवाया गया था। कर्णराज के सिहावा अभिलेख शक संवत 1114 में कांकेर के सोमवंशी शासकों की वंशावली एवं संक्षिप्त जानकारी उत्कीर्ण है।

देवखूँट शिवमंदिर अभी भी बाँध के मध्य विद्यमान है। मंदिर के तल विन्यास में गर्भगृह तथा मण्डप दो अंग थे जिसमें से वर्तमान में मण्डप पूर्णरुपेण नष्टप्राय है। मंदिर का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-

गर्भगृह :- यह मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। गर्भगृह वर्गाकार है जिसका माप 2X2 मीटर है। गर्भगृह धरातल से 80 सेन्टीमीटर गहराई में है। गर्भगृह का आन्तरिक भित्तियाँ सादी हैं। इनमें कोई अलंकरण तथा अलिंद का निर्माण नहीं किया गया है। गर्भगृह की पिछली भित्ति के सहारे कोने में एक-एक भित्ति स्तंभ निर्मित है जो सादे हैं। गर्भगृह की दायीं की भित्ति में फर्श से 80 सेन्टीमीटर की ऊंचाई पर एक ताख निर्मित है। गर्भगृह का वितान सादा है जो चतुष्कोणीय तीन-चार धरणों के द्वारा निर्मित की गई है। वर्तमान में इसके ऊपर का भाग शिखर तक खुला है। गर्भगृह की भित्ति के मध्य में भित्ति स्तंभ की ऊपरी सतह पर तीन तरफ उभारदार प्रस्तर खण्ड हैं जो सादे है। बेगलर के सर्वेक्षण प्रतिवेदन में गर्भगृह के वितान में मदार पुष्प के समान आकृति का उल्लेख किया गया है जो वर्तमान में मण्डप के फर्श पर रखा है। गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग स्थापित है।

मण्डप :- मंदिर का मण्डप ध्वस्त स्थिति में चार स्तंभो पर आधारित रहा है जिनकी चौकियों के अवशेष दिखाई पड़ते हैं। मण्डप के सामने एक प्रस्तर स्तंभ मात्र रखा था जो 107 सेन्टीमीटर ऊंचा तथा 33 सेन्टीमीटर चौड़ा है। मण्डप के तीन प्रस्तर स्तंभ वर्तमान में यहाँ उपलब्ध नही हैं। मण्डप के समीप सामने लगभग 50 फीट की दूरी पर एक शिवलिंग योनिपटट सहित रखा हुआ है। मण्डप के सामने एक गोलाकार आमलक रखा है।

उत्सेध विन्यास :- इस मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास में अधिष्ठान, जंघा तथा शिखर तीन भाग हैं। अधिष्ठान में खुर, कुम्भ तथा कलश तीन भागों में निर्मित हैं जो सादे हैं। मंदिर की बाहय भित्तियों की पूर्व-पश्चिम में लम्बाई 3.15 मीटर तथा चौड़ाई 2.82 मीटर है। अधिष्ठान की भूतल से ऊँचाई 55 से.मी. तथा भूतल से जंघा भाग तक की ऊँचाई 175 से.मी. है। जंघा दो तलों में विभक्त है तथा इसमें किसी भी बाहरी दीवाल में अलिंद का निर्माण नहीं किया गया है। जंघा के निचले तल की ऊँचाई 56 से.मी. तथा ऊपरी तल की ऊँचाई 45 से.मी. है। दोनों तलों के बीच की मोटाई 20 से.मी. है। मंदिर का शिखर पिरामिडाकार उड़ीसा शैली में निर्मित है। मंदिर के शिखर की भूतल से अधिकतम ऊँचाई 4.80 मीटर है जो जंघा के ऊपर 17 परतों में निर्मित है। शिखर के ऊपरी भाग में आमलक तथा कलश स्थापित नहीं है। शिखर सादा है तथा कोई भी प्रतिमा या अलंकरण नही है। शिखर की रचना पिरामिडाकार है। इस प्रकार की रचना कर्णेश्वर मंदिर समूह के मंदिरों के मण्डप की है जो लगभग इसके समकालीन निर्मित प्रतीत होते हैं।

द्वारशाखा :- इस मंदिर की द्वारशाखा वर्तमान में नष्ट हो चुकी है तथा दोनों पार्श्व शाखायें एवं सिरदल मंदिर से अलग होकर सामने मण्डप भाग में बिखरे पड़े हैं। मंदिर के मण्डप में एक सिरदल रखा हुआ है जो तीन शाखाओं में विभक्त है। मध्य में द्विभुजी गणेश की क्षरित प्रतिमा उत्खचित है। सिरदल 173 से.मी. लम्बा तथा 48 से.मी. चौड़ा है। गर्भगृह से बाहर निकलने के लिये दो सोपान ऊँचाई में निर्मित हैं।

लघु मंदिरावशेष :- इस स्थल पर प्रमुख शिवमंदिर के अलावा अन्य छोटे-छोटे चार मंदिरों की जानकारी जे.डी.बेगलर ने इस स्थल का निरीक्षण कर अपने प्रतिवेदन में प्रकाशित किया था। इनमें से तीन मंदिर पश्चिमाभिमुखी तथा एक मंदिर पूर्वाभिमुखी था। बेगलर ने इस स्थल पर लक्ष्मीनारायण तथा उमामहेश्वर प्रतिमा होने का भी उल्लेख किया है जिसको क्षरित होने के कारण यह जानकारी दी है कि रुढिवादि हिन्दू ऐसी प्रतिमाओं की पूजा नहीं करते हैं।

वर्तमान में मुख्य मंदिर के सामने केवल दो मंदिरों के अवशेष ही दिखाई पड़ते हैं जो पूर्वाभिमुखी हैं। पहले मंदिर का गर्भगृह पूर्व-पश्चिम में 150 से.मी. लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में 135 से.मी. चौड़ा है। गर्भगृह के मध्य में प्रतिमा विहीन अधिष्ठान मूलत: स्थित है। गर्भगृह के दोनो कोने में एक-एक भित्ति स्तंभ के अवशेष दिखते हैं। गर्भगृह की मात्र 50 से.मी. ऊँची भित्ति शेष है। इस मंदिर के गर्भगृह का वितान कमल पुष्पाकृति युक्त था जो मंदिर के पास ही रखा है।

उपर्युक्त मंदिर के उत्तर में इसी प्रकार का एक पूर्वाभिमुखी लघु मंदिर का अवशेष विद्यमान है। इसका गर्भगृह भी उपर्युक्त मंदिर के समान पूर्व-पश्चिम मे 1.50 मीटर लम्बा तथा 1.30 मीटर चौड़ा है। मंदिर के गर्भगृह की पिछ्ली भित्ति में अलंकृत प्रतिमा अधिष्ठान मूलत: स्थापित है। इसके गर्भगृह के दोनों कोनों में भित्ति स्तंभ के अवशेष विद्यमान नहीं है।गर्भगृह के अवशिष्ट भित्ति की ऊँचाई मात्र 30 से.मी. तथा चौड़ाई 30 से.मी. है। मंदिर के वितान का अलंकृत कमलपुष्प निर्मित प्रस्तर खण्ड समीप में ही रखा है।

वर्तमान में तीसरे पश्चिमाभिमुखी मंदिर का अभिज्ञान नहीं होता है। स्थानीय ग्रामवासियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1952 में दुधावा बाँध के निर्माण के समय उक्त दोनों मंदिर अच्छी स्थिति में थे तथा बाँध निर्माण के लगभग 5-6 वर्ष ये मंदिर धराशायी हो गये होंगे। संभावना है कि इसी समय लघु मंदिरों के गर्भगृह में रखी प्रतिमाओं को हटाकर वर्तमान शिवमंदिर के सामने रखवा दिया गया होगा। उक्त प्रतिमायें वर्ष 2004-2005 में समीप के ग्राम भुरसी डोगरी के पंचायत भवन में स्थानांतरित कर दी गई है।

मुख्य शिवमंदिर के समीप पूर्व में रखी वैष्णव तथा शैव प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-
1.गरुड़ासीन लक्ष्मीनारायण :- लक्ष्मीनारायण, गरुड़ पर आरुढ प्रदर्शित हैं जो कमलासन में स्थित हैं। विष्णु तथा लक्ष्मी चतुर्भुजी प्रदर्शित हैं। वे किरीट मुकुट, कुण्डल, हार, भुजबंध, कटिसूत्र, पादवलय आदि धारण किये हैं। प्रतिमा के ऊपरी दोनों कोनों में विद्याधर प्रदर्शित है। प्रतिमा के दायें निचले कोने में वामन, नृसिंह उसके ऊपर बलराम, वराह, मत्स्य ऊपरी भाग में विष्णु, तथा ब्रहमा की प्रतिमाओं का अंकन है। बायें किनारे में कच्छप तथा उसके ऊपर कल्कि अवतार का अंकन है। गरुड़ के दायें बायें दो पूजक स्थापित है। लक्ष्मी का बायां पैर एव घुटना खण्डित है। प्रतिमा के आयुध पारम्परिक हैं। यह प्रतिमा काले ग्रेनाइट प्रस्तर से निर्मित है। प्रतिमा का माप 94X45X22 से.मी. तथा काल 11वीं शताब्दी ई. है।

2.गरुड़ासीन लक्ष्मीनारायण :- लक्ष्मीनारायण गरुड़ पर आरुढ ललितासन में प्रदर्शित हैं। अवशिष्ट प्रतिमा अधिश्ठान में सपक्ष मानवाकार गरुड़ वेग से उड़ते हुए प्रदर्शित हैं। विष्णु तथा लक्ष्मी के आभूषण एवं आयुध पारम्परिक हैं। इस प्रतिमा में तालमान तथा भाव भंगिमा असंतुलित है। लक्ष्मी का दांया ऊपरी हाथ ऊपर की ओर है तथा नीचे हाथ विष्णु के कंधे में रखा है। विष्णु का ऊपरी दायाँ तथा निचला हाथ, हथेली से खण्डित है। बायाँ ऊपरी हाथ में गदा उठाये हैं तथा निचला बायाँ हाथ कटि के ऊपर प्रदर्शित है। यह प्रतिमा भी काले पत्थर से निर्मित है। प्रतिमा का अधिष्ठान पूर्णत: भग्न है। प्रतिमा का माप 62X52X20 से.मी. तथा काल 12वीं शताब्दी ईस्वी है।

3.गरुड़ासीन लक्ष्मीनारायण :- लक्ष्मीनारायण, गरुड़ पर आरुढ हैं तथा ललितासन में प्रदर्शित है। लक्ष्मी तथा विष्णु दोनों चतुर्भुजी हैं। विष्णु के बायें हाथ में कमल है तथा निचला हाथ पैर के घुटने में रखा है। लक्ष्मी तथा विष्णु के चरण गरुड़ के हाथों पर पृथक-पृथक प्रदर्शित हैं। लक्ष्मी के स्तन खण्डित है। विष्णु तथा लक्ष्मी के आयुध पारम्परिक हैं। प्रतिमा में अलंकरण सीमित है। यह प्रतिमा अंशत: क्षरित है। प्रतिमा का माप 56X35X12 से.मी. तथा काल 12वीं शताब्दी ईस्वी है।

4.खण्डित प्रतिमा :- अवशिष्ट प्रतिमा खण्ड के मध्य में मानवाकार द्विभुजी आकृति वीरासन में दायें ओर मुख किये स्थित हैं। प्रतिमा की दोनों भुजायें ऊपर की ओर फैली हुई हैं। प्रतिमा के दोनों हाथ तथा दायें पैर का घुटना भी खंडित है। प्रतिमा के नीचे अधिष्ठान पटिटका में मध्य में कलश पकड़े हुए दो गजारोही पुरुष प्रदर्शित हैं। दायें पार्श्व का अधिष्ठान भाग भग्न है तथा बायें पार्श्व में दो आसनस्थ आकृति अंकित हैं। प्रतिमा का मुख भाग भी खण्डित है। भग़्न खंड पर ललितासन में प्रतिमा का निचला भाग निर्मित है। यह रावणानुग्रह प्रतिमा का भाग प्रतीत होता है। इस प्रतिमा का माप 48X41X19 से.मी. तथा काल 11वीं शताब्दी ईस्वी है।

स्थल से ज्ञात शैव प्रतिमाओं का विवरण निम्नानुसार है:-
1.उमामहेश्वर :- शिव तथा पार्वती ललितासन में आलिंगनरत प्रदर्शित हैं। शिव तथा पार्वती दोनों चतुर्भुजी हैं। शिव ऊपरी दायें हाथ में त्रिशूल पकड़े हैं तथा निचला हाथ कलाई से खण्डित है तथा निचला हाथ शिव के कंधे पर रखा है। बायां ऊपरी हाथ खण्डित तथा निचले हाथ में अंजन शलाका धारण किये हैं। शिव के दायें पैर के निचे नंदी बैठा हुआ प्रदर्शित है जिसके गले तथा पीठ में घूँघरु का अलंकरण है। नंदी का सिरोभाग खण्डित है। पार्वती के नीचे सिंह बैठा हुआ प्रदर्शित है जिसका मुख बायें तरफ है। सिंह का पीठ तथा गर्दन से ऊपर का भाग खण्डित है। प्रतिमा अधिष्ठान पर मध्य में द्विभुजी आसनस्थ गणेश स्थित हैं जो बायें हाथ में मोदक पात्र तथा दायें हाथ में आयुध धारण किये हैं। गणेश के बायें तरफ मयूरासीन कार्तिकेय एवं नदी देवियाँ (घटधारिणी परिचारिकायें) प्रदर्शित हैं। दायें पार्श्व भाग में प्रतिष्ठापक राजदम्पति एवं परिजनो की कुल तीन प्रतिमायें अंकित हैं। शिव के सिर में जटामुकुट, गले में हार, कटिमेखला, हस्त तथा पाद वलय, पायजेब, उत्तरीय तथा उमा के सिर में मुकुट है जो खण्डित है। प्रतिमा अधिष्ठान के ऊपर की पटटी में दो पंक्तियों का देवनगरी में अभिलेख उत्कीर्ण हैं। अभिलेख में राणक श्री वघराज का उल्लेख है। यह प्रतिमा काले ग्रेनाइट प्रस्तर से निर्मित है। प्रतिमा का माप 104X56X23 से.मी. तथा काल 11वीं शताब्दी ईस्वी है।

2.उमामहेश्वर :- शिव तथा पार्वती ललितासन में प्रदर्शित हैं। शिव चतुर्भुजी तथा पार्वती द्विभुजी हैं। उनके आभूषण तथा आयुध पारंपरिक है। शिव के दांयें ऊपरी हाँथ में त्रिशुल, निचले हाथ में मातुल्रुंग तथा बायें ऊपरी हाथ में सर्प पकड़े हैं। पार्वती ऊपरी दायें हाथ में अंजन श्लाका तथा बायें हाथ में दर्पण पकड़ी हैं। शिव का दांया पैर तथा अधिष्ठान भाग खण्डित हैं। शिव के नीचे नंदी तथा पार्वती के नीचे वाहन सिंह प्रदर्शित है जो क्षरित है। प्रतिमा में अलंकरण सीमित है। यह प्रतिमा काले ग्रेनाइट प्रस्तर से निर्मित हैं। प्रतिमा का माप 73X44X28 से.मी. तथा काल 12वीं शताब्दी ईस्वी है।

3.उमामहेश्वर :- शिव तथा पार्वती ललितासन में आलिंगनरत प्रदर्शित हैं। शिव पार्वती चतुर्भुजी हैं जो पारंपरिक आयुध पकड़े हैं। शिव का दांया ऊपरी हाथ खण्डित तथा निचला में बीजपूरक, बायाँ ऊपरी हाथ पार्वती के कटि में तथा निचला हाथ खण्डित है। पार्वती का दायाँ ऊपरी हाथ खण्डित है। शिव के कंधे पर रखा है तथा बायाँ ऊपरी हाथ खण्डित है। शिव तथा पार्वती के शीर्ष पर मुक्तावली उत्खचित जटामुकुट है। वे कर्ण कुण्डल, मुक्ताहार कंकण, कटिसूत्र, पादवलय, आदि आभूषण पहने हैं। शिव के वक्ष पर श्रीवत्स लांक्षन अंकित है। शिव तथा पार्वती के मध्य में स्थित नंदी भग्न है। पार्वती के बायें पैर के समीप सिंह का मुख दृष्टव्य है। प्रतिमा के ऊपरी भाग में दोनों तरफ विद्याधर अंकित हैं एवं सबसे ऊपर दोनों हाथों से नाग को उठाये हुये है। अधिष्ठान पीठिका पर आराधनारत चार शैव आचार्य प्रदर्शित हैं। प्रतिमा का माप 92X48X15 से.मी. तथा काल 12वीं शताब्दी ई. है।

4. गणेश :- यह प्रतिमा चतुर्भुजी है जो ललितासन में स्थित है। प्रतिमा के ऊपरी दायें हाथ में परशु तथा निचले में दाँत पकड़े हैं। बायें ऊपरी हाथ में सर्प तथा निचले हाथ में मोदक पात्र पकड़े हैं। गणेश की सूंड़ वामावर्त है। गणेश के शीर्ष पर करंड मुकुट है। वे गले में हार, नागहार, उपवीत, अधोवस्त्र तथा पादपवलय पहने हुए हैं। प्रतिमा के अधिष्ठान में मूषक वाहन प्रदर्शित है जिसका मुख बायें तरफ है। यह प्रतिमा काले ग्रेनाइट प्रस्तर पर निर्मित है। प्रतिमा का माप 73X35X24 से.मी. तथा काल 11वीं शताब्दी ई. है।

उपर्युक्त प्रतिमाओं में से कुल आठ प्रतिमायें स्थल से हटाकर ग्राम भुरसी डोंगरी के ग्राम पंचायत भवन में वर्ष 2004-2005 में स्थानांतरित कर दी गई हैं। इसके अलावा स्थल पर कुछ अन्य पुरावशेष भी रखे हैं जिनका विवरण निम्नानुसार है:-

नंदी :- यह प्रतिमा मंदिर के सामने एक प्रस्तर स्तंभ के ऊपर रखी हुई है जो काले पत्थर से निर्मित है। नंदी अत्यधिक क्षरित अवस्था में है। नंदी के पीठ पर घटिकाओ से निर्मित झूल लटक रही है। प्रतिमा का माप 50X28X28 से.मी. तथा काल 12वीं शताब्दी ई. है।

स्तंभ :- यह प्रस्तर स्तंभ मण्डप के आगे लगभग 50 फीट की दूरी पर स्थित है। इसका निचला भाग चौकोर तथा ऊपरी भाग अष्टकोणीय है। इसमें कोई अलंकरण नहीं है। स्तंभ का निचला चौकोर भाग 56 से.मी. ऊंचा 53 से.मी. अष्टकोणीय भाग, तथा 7 से.मी. ऊपरी गोल भाग ऊँचा है।

शिवलिंग :- यह परवर्ती काल का प्रतीत होता है जो प्रस्तर स्तंभ के समीप ही रखा है। इसका योनिपटट सहित माप 64X46X15 से.मी. है तथा केवल शिवलिंग का माप 14X14 से.मी. है।

वितान अलंकरण :- यह शिवमंदिर के वितान में स्थापित रहा होगा जो अलंकृत है। इसमें पदमदल तथा ज्यामितीय आकृतियाँ निर्मित हैं। वर्तमान में यह विलग स्थिति में बाहर मण्डप में रखा है। इसके अलावा लघु मंदिरों के ध्वंशावशेषों में भी एक वितान अलंकरण रखा है जो पदमदल से अलंकृत है। इसी स्थल पर एक कलश का अधिष्ठान भाग भी मंदिर से विलग होकर रखा है।

इस प्रकार उपर्युक्त प्रतिमाओं तथा पुरावशेषों के अलावा इस स्थल पर मंदिरावशेषों के मलवें के मध्य अन्य स्थापत्य खण्ड तथा प्रतिमाओं के दबे होनें की संभावना है। स्थल पर मंदिर का गवाक्ष अलंकरण सतह पर ही दृष्टव्य है। कांकेर के सोमवंशी शासकों के काल में निर्मित यह मंदिर महानदी उद्गम क्षेत्र के धार्मिक महत्व का परिचायक है। शिवरात्रि के अवसर पर इस स्थल मे।स्थानीय मेला भरता है।

आलेख

डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
उप संचालक (से नि) संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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