(जयंती पर एक आलोचनात्मक परीक्षण )
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और भविष्य की सच्चाई यही रही है कि जिन हुतात्माओं स्वतंत्रता संग्राम में बरतानिया सरकार के विरुद्ध जंग लड़ी उनको देशद्रोही, आतंकवादी लुटेरा और डकैत कहा गया तथा उन्हें ही फाँसी और कालापानी की सजाएँ दी गईं, इसके विपरीत बरतानिया सरकार का समर्थन कर, सरकार में सम्मिलित होकर छक्के – पंजे उड़ाने वाले, डोमिनियन स्टेट्स की मांग करने वाले कांग्रेसी और अन्य तथाकथित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन कर इतिहास में छा गए और सत्ता भी प्राप्त कर ली। सत्ता प्राप्त करने के उपरांत इन तथाकथित नेताओं ने बरतानिया सरकार के मत प्रवाह का ही समर्थन किया और भारतीय इतिहास को बर्बाद करने की जिम्मेदारी वामपंथी और सेक्युलर इतिहासकारों को दे दी, जिसका दुष्परिणाम सबके सामने है। आज महा महारथी श्रीयुत रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर ये तय हो कि राम प्रसाद बिस्मिल सही थे या श्रीयुत मोतीलाल नेहरु के रिश्तेदार और जूनियर पं. जगत नारायण मुल्ला? बरतानिया सरकार के विरुद्ध सर्वप्रथम महा महारथी रामप्रसाद बिस्मिल ने फाँसी पर चढ़ते समय सिंह गर्जन किया था “I wish the downfall of British Empire.” विडंबना तो देखिए की काकोरी अनुष्ठान को लूट बताया गया और बिस्मिल सहित समस्त क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजों की ओर से पं. मोतीलाल नेहरू लोक अभियोजक (पब्लिक प्रोसीक्यूटर)बने, मोतीलाल नेहरु ने चतुराई दिखाते हुए अपने रिश्तेदार और जूनियर पं.जगत नारायण मुल्ला को मैदान में उतार दिया। फिर क्या था पं. जगत नारायण मुल्ला ने मोतीलाल नेहरू के आशीर्वाद से रामप्रसाद बिस्मिल सहित अन्य महारथियों को फाँसी की सजा दिलवा कर ही दम लिया। अंग्रेज़ों और काँग्रेस ने पं. जगत नारायण मुल्ला को खूब उपकृत किया, इतना ही नहीं वरन् उनके पुत्र पं. आनंद नारायण मुल्ला को कांग्रेस ने 10 वर्ष सांसद बनने का सुख दिया, फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट न्यायधीश भी बनाया गया और पुन: राज्य सभा भेजा गया परंतु महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को क्या मिला? लुटेरा और आतंकवादी का तमगा-आखिर क्यों? पूँछता है भारत?
“हम अमन चाहते हैं,जुल्म के खिलाफ, गर फैसला जंग से होगा,तो जंग ही सही” – महा-महारथी..भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी महानायक .. श्रीयुत राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती शत् शत् नमन है। “मेरा रंग दे बसंती चोला” गीत बिस्मिल ने कारावास में ही लिखा और सरदार भगत सिंह ने इसमें यहां से पंक्तियां जोड़ीं “इसी रंग में बिस्मिल जी ने वंदेमातरम् बोला.” विश्व के महान् क्रांतिकारी शायर महा महारथी बिस्मिल ने कहा न्यायालय में “मुलाजिम मत कहिए हमको, बड़ा अफसोस होता है..अदालत के अदब से, हम यहाँ तशरीफ लाये हैं.. पलट देते हैं हम, मौजे – हवादिस अपनी जुर्रत से..कि हमने आँधियों में भी, चिराग अक्सर जलाये हैं”। इसलिए रामप्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानतम क्रांतिकारी कवि थे। (Greatest poet of Indian freedom struggle) विश्व के महान् क्रांतिकारी शायर रामप्रसाद बिस्मिल ने कालजयी शेर कहा कि “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है |”आखिरी शब दीद के काबिल थी, बिस्मिल की तड़प.. सुबह दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या? स्वतंत्रता के महारथी बिस्मिल ने लिखी अपने फाँसी के पूर्व ये अंतिम गज़ल जिसकी अंतिम पंक्तियाँ थीं |काकोरी की घटना लूट या षड्यंत्र या काण्ड नहीं वरन् स्वतंत्रता के लिए दिव्य अनुष्ठान था”. मेरा विचार है कि काकोरी महायज्ञ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे हैरतअंगेज और अंग्रेजी सरकार भयाक्रांत करने वाली घटना थी..स्वतंत्रता के अमृत काल में ..क्या अब भी काकोरी अनुष्ठान को.. षड्यंत्र और लूट कहेंगे.. गूगल ने ये क्या डाल रखा है..क्या अब भी आप विरोध नहीं करेंगे.. अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों के खून-पसीने की कमाई को लूटा तो वह लूट नहीं है..इन महावीरों ने अंग्रेज लुटेरों से अपना रुपया वापिस लिया तो..लूट हो गयी.. वाह रे! अंग्रेजी इतिहासकारों और उन पर आश्रित परजीवी इतिहासकारों,मार्क्सवादी इतिहासकारों..अब तो शरम करो, धिक्कार है..पर अब हम और आप मिलकर इतिहास का पुनर्लेखन कर इस दाग को जड़ से मिटाएंगे.. यदि सहमत हैं तो अभिव्यक्त करें.. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।—————————-
महारथी रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर शत् शत् नमन।
लेखक
डॉ. आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत। 🌷🌷