प्राकृतिक सुन्दरता तो मानो ऊपर वाले ने दिल खोल कर बस्तर में उंडेल दी है। जगह-जगह झरने. घने वन, नदी, पहाड, गुफा, वनफूलों की महक और महुए की गमक लिए इन वनस्थली पर शिवलिंग की उपस्थिति प्रकृति के प्रति उत्सुकता और हमारी आस्था को बढ़ाती ही है ।
किन्तु बस्तर में प्रकृति की इस कृति को देखने का आनंद लोग सहज ही नही उठा पाते। क्योंकि ये बीहड़ वन प्रातर या पहाड़ की चोटियों में दुर्गम स्थानों पर हैं जहाँ आसानी से नहीं पहुँचा जा सकता। लेकिन इन स्थानों तक पहुँचना किसी रहस्य रोमांच से कम नही होता।
ऐसा ही एक मनोरम स्थान है विकास खण्ड मुख्यालय फरसगांव से लगभग 28 कि. मी. दूर ग्राम पापड़ा का सातधार। पावड़ा ग्राम के पश्चिम में लगभग एक किलो मीटर की दूरी पर पत्थरों से अठखेलियाँ करती कल-कल, छल-छल की मधुर गीत गाती, इस पत्थर से उस पत्थर कुलांचे भरती अविरल बह रही है बारदा नदी।
यह नदी तेंदु दरहा से सात धाराओं में विभक्त हो जाती है और लगभग एक किलो मीटर दूर तक अलग-अलग बहते हुए हाड़ दरहा के पास सातों धाराएं पुनः एक ही धारा में समाहित हो जाती है। इन जल धाराओं के बीच में एक टापू है इस टापू में विशाल चट्टान के बीचों-बीच प्रकट हुआ है एक प्राकृतिक शिवलिंग।
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बारदा नदी के सात धाराओं के बीच यह शिवलिंग प्रकट हुआ है इसलिए इसे सतधारा महादेव के नाम से जाना जाता है। नदी की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है, इसके तट पर आम नदियों की तरह रेती नजर नही आती, पत्थर ही पत्थर नजर आते हैं।
नदी कोई खास चौड़ी नही है पर बीच-बीच में बने दरहा इसकी खास विशेषता है, स्थानीय लोग खोह या गुफा को दर या दरहा कहते हैं। इन दरहों (जलगुफाओं) की गहराई की वास्तविक नाप तो किसी उपकरण या जांच से ही जानी जा सकती है। ग्रामीण तो भय से ही थाह लगाने का प्रयास नही करते और इन्हें अथाह गहराई वाली दरहा मान लिया गया है।
प्रचलित किंवदन्तियों में इन दरहों की कहानियाँ भी अलग-अलग हैं । इन दरहों ( जलगुफाओं ) में तेंदु दरहा, कातिक दरहा, तिरयार दरहा, गउ दरहा, हाड़ दरहा, आदि प्रमुख हैं ।
पौराणिक कथा के अनुसार महाप्रतापी राक्षस रावण दण्डकारण्य प्रदेश की सत्ता अपनी बहन सूर्पणखा को सौंप दी थी और सहयोग के लिए खर, दूषण और त्रिसरा को भी भेजा था। मांस-मदिरा का सेवन राक्षसों की मूल संस्कृति का अंग है।
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अंचल में प्रचलित एक किंवदन्ती के अनुसार पावड़ा के समीप विरान क्षेत्र में बहादुर कलारिन नामक एक महिला निवास करती थी। आदि काल से कलार जाति का मुख्य व्यवसाय शराब बना कर बेचना रहा है, बहादुर कलारिन भी यहां महुए का मंद ( शराब ) बना कर बेचा करती थी।
मदिरा पान के लिए खरदूषण यहीं पर आया करता था। कथा में खर और दूषण दो भाई बताया जाता है, किन्तु प्रचलित किंवदन्ती में खरदूषण नामक एक राक्षस रहता था, बताया जाता है। बहादुर कलारिन सात आगर सात कोड़ी ( एक सौ सैंतालिस ) हांडी में एक साथ पास डालती थी।
पारम्परिक रूप से महुए का शराब बनाने के लिए पास डालना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, बस यूं ही महुए से शराब नही बन जाता, शराब बनने के लिए महुए को एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरनी पड़ती है। सर्वप्रथम महुए को हांडी में डालकर पानी भर दिया जाता है तथा ऊपर से ढंक दिया जाता है। हांडी को मुखड़े से नीचे तक जमीन के अन्दर गड़ा कर रखते हैं।
लगभग एक सप्ताह तक सड़ने के बाद महुए से एक प्रकार की गंध आती है जिससे पता चलता है कि महुए में पास आ गया है अर्थात महुए का शराब बनाने योग्य हो जाना ही पास आना कहलाता है। जिस हांडी में महुआ सड़ाया जाता है उसे पास हांडी कहते हैं।
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बहादुर कलारिन सात आगर सात कोड़ी (एक सौ सैंतालिस) हांडी में पास डालती थी और 147 हंडी पास से बनी शराब को खरदूषण अकेला पी जाता था। चट्टान पर अनेक गोल-गोल गड्ढे बने हुए हैं, जिन्हें बहादुर कलारिन का पास हांडी बताया जाता है।
पत्थर पर चूल्हे की आकृति भी बनी हुई है, इसी चूल्हे में वह शराब बनाया करती थी। खरदूषण जिस पीढ़ा में बैठ कर शराब पीता था कालान्तर में पत्थर बन गया। मदिरालय के पास में एक पत्थर है जिसे खरदूषण पीढ़ा के नाम से जाना जाता है।
बालोद जिले के करही भदर के पास सोरर नामक गांव है, एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार छछान छाड़ू बहादुर कलारिन सोरर में निवास करती थी। यहां पत्थर से बनी एक माची है, लोक मान्यता है कि बहादुर कलारिन इसी माची में बैठ कर शराब बेचती थी। पावड़ा और सोरर में प्रचलित दोनो किंवदन्तियों में क्या कोई सम्बंध हो सकता है? शोध का विषय है।
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ग्राम पोस्ट बहीगांव, बस्तर
मो.9424277354, 7987008036