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नव संवत्सर एवं चैत्र नवरात्रि का पर्व

विश्व भर में विभिन्न जाति-धर्म सम्प्रदायों के मानने वाले अपनी संस्कृति-सभ्यता अनुसार परंपरागत रूप से भिन्न-भिन्न मासों एवं तिथियों में नववर्ष मनाते हैं। एक जनवरी को जार्जियन केलेंडर के अनुसार नया वर्ष मनाया जाता है। परंतु हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को नया वर्ष, नव संवत्सर मनाया जाता है।

पूरे भारत वर्ष में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से अरुणांचल प्रदेश तक, भारत के कोने-कोने में हिंदू नववर्ष मनाया जाता है भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है। जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। नववर्ष के रूप में मनाने के अनेक आध्यात्मिक, ऐतिहासिक एवं नैसर्गिक कारण हैं।

नैसर्गिक दृष्टि में भगवान श्री कृष्ण अपनी विभूतियों के संबंध में बताते हुए श्रीमद्भागवत में कहते हैं– “बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छंद सामहम्, मासानं मार्गशीर्षोSहमृतूनां कुसुमाकरः।”(श्रीमद भागवत गीता-१०-३५) अर्थात सामों में बृहत्साम मैं हूँ, छंदों में गायत्री छंद मैं हूँ। मासों में अर्थात महिनों में मार्गशीर्ष मास मैं हूँ और ऋतुओं में बसंत ऋतु मैं हूँ।

आध्यात्मिक दृष्टि से भागवत पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि के दिन आदिशक्ति माँ दुर्गा ने ब्रह्म जी को सृष्टि निर्माण का आदेश दिया और सभी देवी-देवताओं को उनके अनुरूप सृष्टि संचालन का कार्य सौंपा। ब्रह्मपुराण के अनुसार इसी दिन से सृष्टि संरचना प्रारंभ करने के साथ काल चक्र का निर्धारण एवं ग्रहों-उपग्रहों की गति का निर्धारण कर किया। चार युगों की परिकल्पना और विभिन्न तिथियों का निर्धारण, काल गणना का ही प्रतिफल है।

“चैत्र मास जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेsनि
शुक्लपक्षे समग्रेतु सदा सूर्योदयेमति।”

इसलिए यह दिन आदिशक्ति दुर्गा जी को समर्पित नवरात्रि के प्रारंभ के साथ -साथ  हिंदू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इसदिन को संवत्सरारम्भ, गुड़ी पाड़वा, युगादी, बसन्त ऋतु प्रारंभ दिन आदि नामों से जाना जाता है।

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना, वर्ष, की गणना कर पंचांग की रचना की थी। अर्थात हिन्दू नववर्ष से ही पंचांग के आरंभ भी माना जाता है। वर्तमान में भारत सरकार का पंचांग शक संवत भी इसी दिन से प्रारंभ होता है।

भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृति है। जिसमें समयानुसार विभिन्न गणना पद्धतियां रहीं हैं। जिसमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन भी होते रहे हैं। हिन्दू नववर्ष भी वास्तव में कालगणना की एक पद्धति है। कालगणना की विभिन्न पद्धतियों में कल्प, मन्वंतर, युग आदि के बाद नववर्ष का उल्लेख मिलता है। प्राचीन ग्रंथों में नववर्ष मनाने का उल्लेख कई हजार साल पुराना है।

नववर्ष की इस तिथि से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण तथ्य एवं कथाएं हैं जिन्हें लगभग सभी  भारतीय सुनते-सुनाते आये हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से गुप्तवंश के महान सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया था। इन्ही के नाम पर नववर्ष को विक्रम संवत भी कहा जाता है। शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में अपना शासन स्थापित किया था।

हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस में हिंदी नववर्ष को ही प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक का दिन कहा गया है। महाभारत के अनुसार पाण्डवपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इस दिन हुआ था। सिक्ख सम्प्रदाय के दूसरे गुरु अंगददेव जी का जन्मदिवस भी इसी दिन मनाया जाता है। आधुनिक काल में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ‘कृणवन्तो विश्वमार्यम ‘का संदेश देते हुए आर्य समाज की स्थापना की। सिंधी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध समाज सुधारक वरुणावतार भगवान झूलेलाल का प्रकट दिवस एवं महर्षि गौतम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।

पूरे भारत में परंपरागत एवं धार्मिक रूप से पूरी आस्था एवं पवित्रता, सदभावना के साथ पूजा-पाठ करते हुए नववर्ष नवरात्रि में देवी के नौ रूपो की आराधना -भक्ति की जाती है। दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं-

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। [1]

देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि वर्ष में चार नवरात्रि होती है। जिसमें दो गुप्त नवरात्रि होती है।  परंतु शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। चैत्र नवरात्रि को बसन्त नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। चैत्र हिन्दू चंद्र कलेंडर का प्रथम मास है। अतः चैत्र नवरात्र  कहा जाता है। चारों नवरात्रि ऋतु चक्र पर आधारित हैं और सभी संधि काल में मनाई जाती हैं। चैत्र नवरात्रि से ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ माना जाता है। इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है जिसे ग्रहण करने के लिए शक्ति पूजा का विधान है। धार्मिक दृष्टि से इसका अपना महत्व है क्योंकि आदिशक्ति जिनकी शक्ति से सारी सृष्टि संचालित हो रही है, जो भोग और मोक्षदायिनी देवी हैं उनका वास धरती पर होता है, इसलिए देवी की पूजा-आराधना करने से इच्छित मनोकामना की पूर्ति शीघ्रता से होती है। नवरात्रि के नौ दिन अत्यंत पावन होते हैं। व्रत, पूजन से उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। इसमें तन्-मन की पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

ज्योतिष की दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है। इस नवरात्र में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य बारह राशियों में भ्रमण पूरा करता है और फिर अगला चक्र पूरा करने के लिये पहली राशि मेष में प्रवेश करता है। देवी पूजन के साथ नवग्रहों का भी पूजन कर वर्ष भर जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। चैत्र नवरात्रि इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी एवं भगवान राम के रूप में सातवां अवतार भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका अत्यंत महत्व है । ऋतु परिवर्तन से विभिन्न रोग, संक्रमण फैलते हैं। नवरात्रि में हवन-पूजन की सामग्रियों में अनेक जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों का उपयोग किया जाता है जिसका हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है। साथ ही ऋतु परिवर्तन से शारीरिक-मानसिक बल को पुष्ट करने के लिए व्रत-उपवास किया जाता है।

नवरात्रि में लोग नव दिनों का या दो दिनों प्रतिपदा एवं अष्टमी को अपनी शक्ति अनुसार व्रत रखते हैं। नौ दिन अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इनदिनों में मांगलिक, वैवाहिक सभी प्रकार के कार्यक्रम सम्पन्न किये जाते हैं। नवरात्रि में देवी उपासना के साथ अनुशासन, संयम, स्वच्छता तथा पूरे शरीर को सुचारू रूप से  सक्रिय बनाये रखने में नवरात्रि के नौ दिनों का विशेष महत्व है।

हिन्दू नववर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। मंदिरों एवं घरों में कलश की स्थापना की कर दीप प्रज्वलित किये जाते हैं जंवारा बोए जाते हैं। लाखों भक्त मनोकामना दीप देवी मंदिरों में प्रज्जवलित करवाते है। नवरात्रि की समाप्ति पर जंवारा को पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

नवरात्रि पर विभिन्न सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसदिन को सुख-समृद्धि का प्रतीक मानकर सभी एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। घरों में भगवा ध्वज फहराते हैं। आम के पत्तों का बन्दनवार लगा कर नववर्ष का स्वागत कर, अपने जीवन को रोग-शोक से मुक्ति एवं सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि) हिन्दी व्याख्याता अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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