छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष भादौ मास में देव न्यायलय लगता है, जहाँ लोग अपने-अपने ग्राम के देवी-देवताओं को लेकर पहुंचते हैं। इस न्यायालय में देवी-देवता आरोपी होते हैं और फ़रियादी होते हैं ग्राम वासी। इस देव न्यायालय में देवी देवताओं की पेशी होती है और जिस देवी-देवता की शिकायत होती है, उसे सजा भी मिलती है।
यह अद्भुत न्यायालय छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 158 किमी दूर केशकाल के घाट में स्थित भंगाराम देवी के स्थान पर लगती है। ग्रामवासी अपने देवी-देवताओं की शिकायत भंगाराम देवी से करते हैं और वे उनकी फ़रियाद सुनती हैं तथा फ़ैसला भी देती हैं। भंगाराम देवी का प्रभाव क्षेत्र नौ परगनों के 55 राजस्व ग्रामों तक है, जो इन्हें अपनी आराध्या मानते हैं।
यहाँ के लोगों का देवी देवताओं के साथ करीब का संबंध है, अगर उनकी मानता पूर्ण नहीं होती तो वे देवी भंगाराम से उसकी शिकायत कर देते हैं। अधिकतर शिकायतें मन्नत पूरी न होने की होती हैं। यदि ग्राम में फ़सल खराब हो जाए, पशुओं को कोई बीमारी हो जाए, गांव में कोई संक्रामक बीमारी फ़ैल जाए तो उसके दोषी भी ग्राम के देवी देवता होते हैं और उनकी शिकायत देवी भंगाराम से की जाती है।
सबकी फ़रियाद सुनने के बाद शाम को भंगाराम देवी अपने पुजारी के मुख से फ़ैसला सुनाती है। भंगाराम देवी अपने पुजारी में आ जाती हैं और फ़िर देवी पुजारी के माध्यम से देवी-देवताओं की शिकायत सुनकर न्याय करती हैं जो सभी को मान्य होता है। सजा देवी-देवताओं के अपराध पर निर्भर होती है। यह सजा छ: महीने के निष्कासन से लेकर अनिश्चितकालीन निष्कासन या फ़िर मृत्यु दंड तक होती है।
मृत्युदंड पाये देवी-देवता का विग्रह खंडित कर दिया जाता है। जबकि निष्कासन की सजा पाये देवी देवताओं के विग्रह को मंदिर के पास ही बनी एक खुली जेल में छोड़ दिया जाता है। मूर्ति के साथ ही उसके जेवर व अन्य समस्त सामन वही छोड़ दिए जाते है। इस स्थान पर भेंट स्वरुप जो भी सामग्री लायी जाती है उसे वहीं छोड़ दिया जाता है।
एक निश्चित अवधि की सजा पाये देवी देवताओं की वापसी सजा की अवधि पूर्ण होने पर होती है। जबकि अनिश्चितकालीन देवी-देवताओं की वापसी तब होती है जब वे अपनी गलतियों को सुधारने एवं भविष्य में लोक कल्याण के कार्यों को करने का वचन देते हैं। यह वचन सजा पाये देवी देवता पुजारी को स्वप्न में आकर देते हैं। उसके पश्चात इनकी विधि विधान से पूजा कर वापसी की जाती है तथा सम्मानपूर्वक उनके स्थान पर स्थापना कर दी जाती है।
हर साल लगने वाले इस जात्रें में महिलाओं का प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित है यहाँ तक की उन्हें जात्रा का प्रसाद खाने की भी मनाही है। इसका कारण स्थानीय लोग यह बताते है की महिलाएं स्वाभाव से कोमल होती है इसलिए उनकी उपस्थिति, भगवान की खिलाफ होने वाली सुनवाई पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।
भंगाराम देवी की भेंट पूजा के साथ इनके मंदिर के समीप स्थापित डॉ खान देव को भी अंडा और नींबू चढ़ाया जाता है। इन डॉ खान देव पर सभी नौ परगना के निवासियों को बीमारियों से बचाये रखने की जिम्मेदारी है। लोग बताते हैं कि वर्षों पहले यहाँ कोई खान डॉक्टर थे जो लोगों का इलाज सेवा भाव से करते थे। उनकी मौत के पश्चात यहाँ के निवासियों ने उन्हें देवता के रुप में स्वीकार कर लिया एवं उनकी भी भेंट पूजा की जाने लगी।
कहा जाता है कि बस्तर के राजा भैरम देव को देवी ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे राज्य में आना चाहती हूं। तब राजा ने उन्हें आने का आमंत्रण दिया। केशकाल घाट में देवी बैजनाथ पुजारी पर सवार हो गयी, उनसे पूछा गया कि वे कहां से आई हैं तो उन्होंने ओरांगल से आना बताया। तब इन्हें लोग ओरंगाल माई से संबोधित करने लगे जो कालांतर में उच्चारण भेद के कारण ओरांगल से भोरांगल एवं वर्तमान में भंगाराम माई हो गया।
भंगाराम देवी की यह जात्रा साल में एक बार भादो मास में होती है और इस दिन यहां दूर-दूर से लोग इस जात्रा को देखने आते हैं। यह जात्रा सामाजिक सद्भाव के साथ अपनी प्राचीन संस्कृति को भी बचाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य भी करती है। देवी भंगाराम बेल वृक्ष की लकड़ी की डोली में विराजती हैं तथा इनकी पूजा नौ परगनों के निवासी अटूट श्रद्धा के साथ करते हैं। स्थानीय आदिवासियों की इन देवी में इतनी श्रद्धा है कि वे अपने देवी-देवताओं की शिकायत इनसे करके न्याय पाते हैं।
संदर्भ: देवी तेलनी सत्ती – घनश्याम सिंह नाग
आलेख ललित शर्मा – फ़ोटो – कृष्णदत्त उपाध्याय केशकाल