भारत की आजादी के बाद राज्यों का जो नया बँटवारा हुआ उसमें पहले सी.पी. एंड बरार और बाद में मध्य प्रदेश का हिस्सा बने छत्तीसगढ़ ने कई तरह की उपेक्षाओं को महसूस किया। उपेक्षा का यह एहसास निहायत अंदरुनी था। एक तरफ, मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल थे, जो छत्तीसगढ़ अंचल के ही थे, तो दूसरी तरफ, पूरा का पूरा प्रशासनिक ढाँचा कुछ इस ढंग से विकसित हुआ था कि छत्तीसगढ़ की सीमा के भीतर कोई प्रशासनिक केंद्र नहीं आया। शिक्षा मंडल, उच्च-न्यायालय, राजधानी जैसे प्रतिष्ठा के प्रतीक छत्तीसगढ़ के बाहर ही स्थापित हुए।
छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के लिए संसाधनों की पूर्ति करने वाले एक क्षेत्र के रूप में विकसित होता चला गया। ऐसे में मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री का छत्तीसगढ़ से होना भी संतुष्टि का कारण न बन सका। छत्तीसगढ़ियों के भीतर जो उपेक्षा का एहसास जाग रहा था उसका एक कारण तत्कालीन छत्तीसगढ़ में औद्योगिकीकरण की शुरुआत और उसके विकास के बावजूद ‘छत्तीसगढ़ियों’ की न्यून भागीदारी भी था।
छत्तीसगढ़ राज्य की प्रथम कल्पना पं सुन्दरलाल शर्मा ने की थी, 1918 में पं सुन्दरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखाचित्र बनाया तथा पृथक राज्य के लिए १९५६ राजनांदगांव में ‘छत्तीसगढ़ महासभा’ का आयोजन किया गया।
डॉ. खूबचंद बघेल के वक्तव्यों में यह असंतोष बखूबी दिखता है : ”स्कूल, कालेजों की बाढ़ के कारण हमारे लड़के चटनी-बासी खा-खा कर मैट्रिक और ऊँची शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, टैक्निकल ट्रेनिंग ले रहे हैं, पर सरकारी नौकरी के लिए इस दफ्तर से उस दफ्तर मारे-मारे फिर रहे हैं। ऐरे-गैरे अनेकों बाहर से आए हुए मजे से चैन की बंशी बजाते हैं पर हमारे बच्चे बिना धनी-धोरी के हो रहे हैं।”
डॉ. खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ की इस प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा को आक्रामक रूप देना आरंभ किया। यह आक्रामकता धीरे-धीरे विकसित हुई। मध्यप्रदेश की राजनीतिक केंद्रिकता छत्तीसगढ़ की स्वायत्ता या उसके स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकारने के लिए कतई तैयार नहीं थी।
ठा. रामकृष्ण सिंह, जो रायपुर विधान सभा क्षेत्र के विधायक थे, ने जब 1955 में मध्यप्रदेश की विधान सभा में छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिए जाने की माँग की तो उनकी माँग को सर्वथा अनुचित माना गया। पुनः एक वर्ष पश्चात उनके ही नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने पृथक छत्तीसगढ़ का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया लेकिन उस पर भी विचार नहीं किया गया।
छत्तीसगढ़ पृथक राज्य की मांग को लेकर भिन्न भिन्न रुपों में मांग उठती रही, आन्दोलन होते रहे, चलते रहे। यह मानकर चला जा सकता था कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की माँग पुरजोर उठ चुकी थी, लेकिन केंद्र में सरकारें बदलती रही और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की बात हमेशा ठन्डे बस्तों में पड़ी रही। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के सपने को साकार करने वाले एक ही व्यक्ति रहे जिन्होंने वादा किया और उसे निभाया भी वह व्यक्ति थे “अटल बिहारी वाजपेयी।”
छत्तीसगढ़ के स्वप्नदृष्टा एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1990 से पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य बनाना है। वे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों, उनकी संस्कृति और यहां की वन संपदा से बेहद लगाव रखते थे। वे यहां के लोगों का आर्थिक और सामाजिक स्तर को ऊपर उठाना चाहते थे।
अटल जी इस बात को हमेशा महसूस करते कि छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में वन संपदा और संसाधन होने के बावजूद भी यहां के लोग अत्यंत ही पिछड़े हुए हैं। उन्हें अहसास हो रहा था कि मध्य प्रदेश जैसे विशाल राज्य का हिस्सा होने के कारण छत्तीसगढ़ के लोगों का आर्थिक और सामाजिक रुप से समुचित विकास नहीं हो रहा है। छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र राज्य बनने के बाद ही यहां के लोगों को अवसर का लाभ मिलेगा।
जब वे प्रधानमंत्री बने तब सर्वदलीय बैठक में छत्तीसगढ़ की ओर से तत्कालीन श्री रमेश बैस, पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह, पूर्व सांसद चंद्रशेखर साहू, बस्तर के नेता बलिराम कश्यप, छत्तीसगढ़ के नेता लखीराम अग्रवाल सहित 4-5 सांसद वाजपेयी जी से मिले। छत्तीसगढ़ के लोगों के आग्रह पर वाजपेयी जी ने छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के मसौदे को मंजूरी दे दी। उनके मन में जो बात थी मौका मिलते ही उन्होंने कर दिखाया।
1998-99 के लोकसभा चुनाव का समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी ने रायपुर के सप्रे शाला मैदान में आमसभा की और इसी सभा मे उन्होंने जनता से वादा किया था – ‘आप मुझे 11 सांसद दीजिए, मैं आपको छत्तीसगढ़ दूँगा। इसके बाद उनको राज्य से लोकसभा के लिए 8 सीटें मिलीं। इस पर अटल जी न कहा – रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई और अपने वचन के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की घोषणा की।
लगभग एक साल बाद यानी 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी। 4 सितंबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और पुरखों का सपना साकार हुआ। अटल जी ने महज राज्य का निर्माण नहीं किया अपितु राज्य बनने के उपरांत नवनिर्मित राज्य के विकास की प्रत्येक गतिविधियों में निरंतर साथ दिया।
बाजपेयी जी ने प्रधानमंत्री सड़क योजना में एक महत्वपूर्ण संशोधन करते हुए बस्तर को विशेष लाभ दिलाया। उस समय प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत 500 आबादी वाले गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने का लक्ष्य था। बस्तर के लिए उन्होंने संशोधन करते हुए ढाई सौ की आबादी वाले छोटे से छोटे गांव को भी मुख्य सड़क से जोड़ने का निर्देश दिए। इस प्रकार श्री वाजपेयी जी ने बस्तर की अधिकांश मुख्य मार्ग से जोड़ने ने में बड़ी भूमिका निभाई।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 2004 में छत्तीसगढ़ में तीन विश्वविद्यालयों की नींव रखी – कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर, तकनीकी विवि दुर्ग और पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विवि बिलासपुर की स्थापना अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई है। वह कई बार राज्य के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। अटल जी के हाथों जनवरी 2002 में बिलासपुर जिले के सीपत में 1980 मेगावाट क्षमता के विशाल सुपर थर्मल बिजली घर की बुनियाद रखी गई।
छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण प्रदेशवासियों के लिए एक बड़ी सौगात थी, यह सौगात प्रदेश की जनता के संघर्ष का सम्मान था, अटल जी छत्तीसगढ़ियों के स्वाभिमान को बेहतर तरीके से समझते थे I अटल जी के छत्तीसगढ़ के लिए एक अभिभावक के सामान थे , एक ऐसा अभिभावक जिसने न केवल जन्म दिया हो अपितु पाल- पोसकर बड़ा भी किया हो I वे उस बरगद के पेड़ की तरह थे जिसकी छाया में यहाँ राज्य विकास की गाथा लिख रहा था।
यह राज्य और यहाँ का प्रत्येक नागरिक सदैव उनका ऋणी रहेगा। जब भी जय जोहार, जय छत्तीसगढ़ का नारा गूंजेगा उसकी हर एक प्रतिध्वनि जय अटल बनकर छत्तीसगढ़ में हमेशा गूंजेगी। अटल जी ने छत्तीसगढ़वासियों का मान रखा और राज्य का निर्माण कर उन्हें सौगात के रुप में भेंट किया। छत्तीसगढ़ के इतिहास में अटल जी स्वर्ण अक्षरों से अंकित रहेंगे।