भारत में बहुत सारे स्थान ऐसे हैं जहाँ बोलते हुए पत्थर पाये जाते हैं, पत्थरों पर आघात करने से धातु जैसी ध्वनि निकलती है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा का ठिनठिनी पखना हो या कर्णाटक के हम्पी का विट्ठल मंदिर या महानवमी डिबा के पास का हाथी। इन पर चोट करने से मेटलिक ध्वनि निकलती है, अगर सुर ताल के साथ बजाया जाए तो यह ध्वनि संगीत मय हो जाती है।
छत्तीसगढ़ के केशकाल के पास भी एक ऐसा स्थान है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित विकास खंड मुख्यालय केशकाल से डिपो चौक ( केशकाल ) जामगांव, बयालपुर, अड़ेंगा होते हुए पूर्व दिशा में लगभग 11 कि. मी. दूर प्रधानचेर्रा नामक गांव है। ग्राम प्रधानचेर्रा और अडेंगा के बीच एक छोटी सी नदी बहती है, जिसे लोग चेर्रा नदी या चेर्रा नाला के नाम से जानते हैं।
इस नदी के बीचो-बीच पत्थरों का ढेर है। इनकी संरचना ऐसी है कि पानी पत्थरों के बीच से होकर बह जाता है। ऐसा लगता है कि पत्थर कुछ बोलना तो चाहते हैं पर कदाचित इनकी भाषा को कोई सुनना या समझना नहीं चाहता। पत्थर तो बस पत्थर हैं बेजुबान होते हैं, लेकिन आम पत्थरों से अलग यहां के पत्थरों पर आघात करने से भिन्न- भिन्न प्रकार के धातुओं की ध्वनि निकलती है।

बरसात के दिनों में एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर पैर रखते हुए नदी पार किया जा सकता था अर्थात इन पत्थरों का प्राकृतिक पुल के रुप में उपयोग किया जाता था। मिटटी के कटाव से नदी चौड़ी हो गई है इसलिए नदी पार करने के लिए अब इस प्राकृतिक पुल का उपयोग संभव नहीं है। प्राकृतिक पुल के नीचे में स्टापडेम बन गया है तथा आवागमन का सुगम रास्ता बन गया है।
ये पत्थर अंचल मे पाये जाने वाले सामान्य पत्थर जैसे ही दिखते हैं लेकिन चोट करने पर इनमें धातु की ध्वनि निकलती है। इन ध्वनियों में भी अन्तर है एक ही स्थान पर एक समान दिखने वाले पत्थरों में अलग-अलग धुन निकलना आश्चर्य जनक है। इन पत्थरों से जुड़ी एक लोककथा अंचल मे प्रचलित है –
प्राचीन काल में एक शाही बारात बैलगाड़ी में इसी मार्ग से गुजर रही थी। तब के जमाने में बैलगाड़ी ही आवागमन का एकमात्र साधन हुआ करती थी । इस स्थान पर आकर बाराती गाड़ी (बैल गाड़ी) पर पलट गई और दूल्हा-दुल्हन सहित सारे बाराती इस दुर्घटना में मारे गये। उनके पास बर्तन आदि दहेज का सामान भी था जो कालान्तर में पत्थर बन गया। इसलिए इन पत्थरों में बर्तन जैसे आवाज आती है।

ग्रामीणों की मान्यता है कि बारातियो की आत्मायें आज भी यहां वास करती हैं । विभिन्न अवसरों पर यहां पूजा की जाती है तथा पवित्र देव स्थल माना जाता है। इस स्थान पर कुछ वर्जनाओं का पालन ग्रामीण आज भी करते आ रहे हैं। इन पत्थरों पर बैठ कर आदमी स्नान तो कर सकता है पर एड़ी रगड़ने की मनाही है।
मध्यान्ह या संध्या के समय (सुनसान बेला में) यहां जाना वर्जित है। इस स्थान पर मछली पकड़ने की मनाही है, रजस्वला स्त्री इन पत्थरों के आस-पास भी नही फटक सकती। पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि जब आषाढ़ महीने में प्रथम बारिस से नदी में बाढ़ आती है तो आधी रात के समय यहां एक जलता हुआ कलश प्रकट होता है और धारा की विपरीत दिशा में बहते हुए घोर गर्जना के साथ ऊपर चलता है। नदी के उदगम स्थल तक पहुंच कर कलश विलुप्त हो जाता है।
आस्था विश्वास और मान्यता चाहे जो भी हो पर एक ही स्थान में एक समान पत्थरों से अलग-अलग ध्वनि निकलना लोगों के बीच अरसे से कौतुहल का कारण बना हुआ है । ये बोलने वाले पत्थर कोई दैवीय चमत्कार दिखाना चाहते हैं या सात सुरों में संगीत सुनाना चाहते हैं अथवा आस-पास के भू गर्भ में खनिज भण्डार होने की सूचना देना चाहते हैं आज तक किसी ने जानने का प्रयास नहीं किया।
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