भिखारी छंद में एक भिखारी की याचना
कैसा कलयुग आया, घड़ा पाप का भरता।
धर्म मर्म बिन समझे, मानुष लड़ता मरता।।
लगता भगवन तेरी, माया ने भरमाया।
नासमझों ने तेरे , रूपों को ठुकराया।।
कल तक वे करते थे, हे प्रभु पूजा तेरी।
सहसा कुछ लोगों ने, झट इनकी मति फेरी।।
राजनीति के जाले, बुन फँसवाए इनको।
सर्व व्याप्त है ईश्वर, ज्ञात नहींं यह किनको।।
सबकी भारत माता, पर कपूत हम तेरे।
क्यों कुबुद्धि बढ़ चढ़ कर, हमको रहती घेरे।।
तेरी रक्षा खातिर, अपने प्राण गँवाए।
बलिदानी वीरों ने, वंदेमातरम् गाए।।
छवि अखंड भारत की, खंड खंड मत करना।
सबके मन में भगवन, भाव यही तुम भरना।।
लक्ष्य मात्र यह मत हो, सिंहासन हथियाना।
मुकुट विश्व गुरु का तुम, माँ के शीश चढ़ाना।।
सप्ताह के कवि
आदरणीय सूर्यकांत गुप्ता रचित अनुपम भाव व्यंजना।हार्दिक बधाई।
हृदयतल से बहुत बहुत आभार व धन्यवाद भैया! सादर प्रणाम
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सादर सप्रणाम धन्यवाद भैया🙏🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷
सटीक भईया👍👍👍
आदरणीय मयारुक भाई ल अंतस ले धन्यवाद सादर पैलगी सहित