राष्ट जागरण धर्म हमारा, वही निभाने आये हैं।उठो-उठो ऐ सोने वालों, तुम्हें जगाने आये हैं। दुश्मन ताक रहा है, छोर पार वो बैठा है।ललचाया सा उसका मुँह है, देखो कैसे ऐंठा है।नीयत उसकी ठीक नही है, तुम्हें बताने आये हैं।1। राष्ट जागरण धर्म हमारा, वही निभाने आये हैं।उठो-उठो ऐ सोने …
Read More »भगवा ध्वज लहराए : सप्ताह की कविता
भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए।सप्त सिंधु की लहर-लहर में, नव ऊर्जा भर जाए। घर-घर के आंगन में गूँजे,उत्सव की किलकारें।द्वार-द्वार में फूल बिछे हों,नाचें झूम बहारें। हर्षित मन का कोना कोना, मंद मंद मुस्काए।भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए। अंबर-धरती, दसों दिशा में,वेद मंत्र का गुंजन हो।अमर पुत्र उस …
Read More »कुंडलियाँ : सप्ताह की कविता
बनकर मृग मारीच वे, बिछा रहे भ्रम जाल।फँसती जातीं बेटियाँ, समझ न पातीं चाल।।समझ न पातीं चाल, चली असुरों ने कैसी।तिलक सुशोभित भाल, क्रियाएँ पंडित जैसी।।प्रश्रय पा घुसपैठ, राष्ट्र को छलने तनकर।बिछा रहे भ्रम जाल, हिरण सोने का बनकर।। (2)कर लें पालन सूत्र हम, सर्व धर्म समभाव।सत्य सनातन धर्म का, …
Read More »शर्म आ रही है उन पर : सप्ताह की कविता
शर्म आ रही है उन्हें देख कर ,जो शर्म बेच खाए हैं।कल ही की तो बात है,जो वंदे मातरम नहीं गाए हैं । और उन पर भी,जो बात बात में,बाँट कर जात पात में । संसद के भीतर ,बे कदरनारे बहुत लगाये हैं । शर्म आ रही है उन पर,जो …
Read More »जाग जाओ तुम – सप्ताह की कविता
लौट आए हैं नगर में भेड़िये एक बार फ़िर से।कत्ल कर रहे मानवता का एक बार फ़िर से॥ लोगों की भीड़ में शिनाख्त कर लो तुम इसकी,जाग गये हैं कातिल शैतान एक बार फ़िर से॥ नोच-नोच कर लहूलूहान कर गये इंसानियत को,हमले लगातार कर रहे हैवान एक बार फ़िर से॥ …
Read More »नित वाणी में तेज भरो माँ!
नित वाणी में तेज भरो माँ! एक नहीं, नौ माताओं की, मुझको अद्भुत शक्ति मिले ।नित वाणी में तेज भरो माँ, मुझको नव-अभिव्यक्ति मिले।। ‘शैलपुत्री’ औ ‘ब्रह्मचारिणी’, ‘चंद्रघटा’ का वंदन है।‘कुष्मुण्डा’, ‘स्कन्दमात’ औ ‘कात्यायनी’ शुभदर्शन है। ‘कालरात्रि’, ओ ‘महागौरी’ तू, ‘सिद्धिदात्री’ की भक्ति मिले।।एक नहीं नौ माताओं की, मुझको अद्भुत …
Read More »पत्थर और छेनियाँ
जो पत्थरों से जितना रहे दूरउतने रहे असभ्यउतने रहे क्रूर। जो पत्थरों से करते रहे प्यारचिनते रहे दीवारबन बैठे सरदार। फेंकते रहे पत्थर होते रहे दूर, नियति ने सपने भीकिये चूर चूर। पत्थरों को रगड़ पैदा की आग,उन्ही की बुझी भूख,उन्ही के जागे भाग। जिन्होंने फेंक पत्थरछीनना चाहा, हथियाना चाहा,वे …
Read More »नमामि गंगे
(आधार छंद – वीर छंद ) सुरसरी गंगे पतित पावनी, जन-जन का करती उद्धार। सदा धवल विमले शुभ शीतल, महिमा जिसकी अपरंपार। क्यों मानव अब भस्मासुर बन, नाच रहा है कचरा डाल।विकट कारखाने शहरों का, मिला रहे हैं मल विकराल। पावन जल को जहर बनाना , कर देंगे जब भी …
Read More »और क्या उम्मीद हो
जिन्होंने मृत्यु और अपमान में,वरण किया था अपमान का।उनकी बेटियां बिक रही है,और क्या उम्मीद हो।शकुनि के देश में,गांधार का गौरव चकनाचूर होकर,कन्धार बना खड़ा है।आहत होना दुर्भाग्य बना है।बन्दूक लिये मुजाहिद,अल्लाह हो अकबर के नारे।12 बरस की दुल्हनेंऔर 60 बरस के दूल्हे।कोई क्या कहेकैसे कहे।कुछ भी सही हैजो हो …
Read More »जूझ रही ‘आदमखोरों’ से, हर औरत अफगान की
(अफगानिस्तान के वर्तमान हालात पर एक व्याकुल कविता) जूझ रही ‘आदमखोरों’ से, हर औरत अफगान की। नादानों को कहाँ सूझती – हैं बातें सम्मान की।। नाम भले मजहब का लेते,पर मजहब से दूर हुए।हाथ में ले हथियार भयानक,मर्द अचानक क्रूर हुए।छीन लिया महिलाओं का हक,कैद किया अधिकारों को। शर्म नहीं …
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