वसंत का मौसम हो तथा पलाश की चर्चा न हो, ये नहीं हो सकता। यह समय छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक के वनों में पलाश के फ़ूलने का होता है, ऐसे लगता है कि जंगल में आग लगी हो, जंगल में आग जब चहूँ दिसि लगी हो तो …
Read More »ऐसा मेला जहाँ युवक-युवती गंधर्व विवाह के लिए हैं स्वतंत्र
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले व मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के साथ अन्य आस-पास के जिलों में भी बैगा जनजाति निवास करती है। इन जिलों की सीमा में प्रतिवर्ष पर्व विशेष पर मेला-मड़ई का आयोजन होता है। जहाँ बैगा पहुंच कर मेले का आनंद लेते हैं। यह मेले मड़ई इनके जीवन …
Read More »ऐसी कौन सी घास है जो जन्म से मरण तक साथ निभाती है?
मनुष्य का बांस से साक्षात्कार अग्नि के माध्यम से हुआ, अग्नि प्रज्जवलित करने के लिए उसने अरणी पर परणी का घर्षण कर अग्नि का संधान किया। वर्तमान में विशेष समुदायों में विशेष अवसरों पर इसी तरह अग्नि प्रकट करने का विधान दिखाई देता है। जन्म के बाद बाँस से व्यक्ति …
Read More »“शुद्र कौन थे” अवलोकन एवं समीक्षा : डॉ त्रिभुवन सिंह
एन राम ने डॉक्टर्ड डॉक्यूमेंट के आधार पर फेक न्यूज़ तैयार किया। 2014 में इलेक्शन के पूर्व शेखर गुप्ता ने फेक न्यूज़ बनाकर बड़े अंग्रेजी अखबार में तत्कालीन सेना प्रमुख बीके सिंह के लिए अफवाह फैलाई कि सेना सत्ता पर कब्जा करने के लिए कूंच कर चुकी है। फेक न्यूज़ का …
Read More »जानिए क्या है संदेश भेजने एवं उत्साह प्रकट करने का प्राचीन यंत्र
टेसू के फ़ूलों एवं नगाड़ों का चोली-दामन का साथ है, जब टेसू फ़ूलते हैं तो अमराई में बौरा जाती है और नगाड़े बजने लगते हैं। पतझड़ का मौसम होने के कारण पहाड़ों पर टेसू के फ़ूल ऐसे दिखाई देते हैं जानो पहाड़ में आग लग गई हो। विरही नायिका के …
Read More »पांच पैर वाला सुअर एवं सोनई डोंगर के योद्धा भाई
कथा कहानियों में से इतिहास निकल कर सामने आता है। एक बार की बात है, पलासिनी (जोंक) नदी के किनारे डूंडी शाह एवं कोंहंगी शाह नामक भाईयों ने आठ एकड़ भूमि पर चने की फ़सल उगाई थी। इस फ़सल को कोई जानवर रात्रि में आकर नष्ट कर जाता था। भाईयों …
Read More »जानिए बस्तर की जनजातीय भाषा भतरी एवं उसकी व्याकरणिक संरचना
बस्तर की जनजातीय अथवा लोक-भाषाओं की चर्चा करते हुए अनायास ही इन लोक भाषाओं में प्रचलित रही लोक कथाओं की सुध आ जाती है। और फिर जब लोक कथाओं की बात हो तो इन पर बात करते हुए मुझे अपनी नानी स्व. चन्द्रवती वैष्णव (खोरखोसा) और छोटे नाना स्व. तुलसीदास …
Read More »त्रिवेणी तीर्थ का राजिम कुंभ अब पुन्नी मेला
माघ पूर्णिमा को मेले तो बहुत सारे भरते हैं, परन्तु राजिम मेले का अलग ही महत्व है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है, यहाँ पैरी, सोंढूर एवं महानदी मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ तीन नदियों का संगम होता वह स्थान तीर्थ की …
Read More »क्या बस्तर की वनवासी संस्कृति में पुनर्जन्म को मान्यता है?
बस्तर के वनवासियों की पहचान उनकी अद्भुत अलौकिक संस्कृति और मान्य परम्परायें हैं। जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होकर यहाँ तक पहुँची है। भारतीय दर्शन की तरह आदिवासी समाज की भी मान्यता है कि पुनर्जन्म होता है। मृत्यु, सत्य और अटल है, जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु होती है। …
Read More »कौन थे वे जिन्होंने मूर्तिपूजा प्रारंभ की एवं पूजा पद्धति का विकास कब हुआ?
विश्व में विभिन्न धर्मावलम्बी निवास करते हैं, सब निज धर्म का पालन करते हैं। ये धर्मावलम्बी दो भागों में बंटे हैं साकार और निराकार। साकार माने मूर्ति पूजक एवं निराकार माने प्रकृति पूजक। हमेशा विवाद इन दोनों में ही होते रहता है। लोगों में मन में जिज्ञासा यह रहती है …
Read More »