सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिला अंतर्गत प्रतापपुर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में पहाड़ों की पीठ पर ग्राम पंचायत शिवपुर में शिवपुर तुर्रा नामक स्थल प्रसिद्ध है। यहीं शिव मंदिर के अंदर जलकुण्ड में अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग विराजमान हैं। इस शिवलिंग में शिव एवं पार्वती दोनों के रूप (चिन्ह) स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इसलिए इस दुर्लभ शिवलिंग को ‘‘जलेश्वरनाथ अर्द्धनारीश्वर महादेव‘‘ कहते हैं।
जलेश्वर नाथ शिवलिंग के प्रकाश में आने के संबंध में किंवदंती प्रचलित है कि इस क्षेत्र में एक महान प्रतापी धार्मिक प्रकृति का राजा राज करता था। उसे ही स्वप्न में शिवपुर पहाड़ी पर दुर्लभ शिवलिंग के दर्शन हुए, जो सघन वन में बरगद वृक्ष के नीचे दबा हुआ था। राजा ने दूसरे दिन सुबह होते ही दुर्लभ शिवलिंग की खोज प्रारंभ करवा दी। अथक प्रयास के बाद शिवलिंग की खोज पूरी हुई। उन्होने अपने महल के समीप तालाब के किनारे मंदिर बनवाकर उसमें स्थापित करवाने के लिए खुदाई प्रारंभ करवाई।
स्थानीय लोग इसे तुरेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारते हैं। शिवलिंग के बगल से विशाल चट्टान के मध्य खोह से अविरल जलधारा निकलती हुई कुण्ड के शिवलिंग की परिक्रमा करती हुई नीचे एक बड़ी टंकी में गिरती है। इस जल को चार धारा पुरुषों के लिए एवं तीन धारा महिलाओं के लिए स्नान घर में प्रवाहित किया गया है। अन्ततः इन सातों धाराओं का पानी एक तालाब में एकत्रित होता है, जिससे शिवपुर एवं बैकोना गाँव के खेतों की सिंचाई होती है।
जलेश्वरनाथ महादेव के संबंध में किंवदंती-
जलेश्वर नाथ शिवलिंग के प्रकाश में आने के संबंध में किंवदंती प्रचलित है कि इस क्षेत्र में एक महान प्रतापी धार्मिक प्रकृति का राजा राज करता था। उसे ही स्वप्न में शिवपुर पहाड़ी पर दुर्लभ शिवलिंग के दर्शन हुए, जो सघन वन में बरगद वृक्ष के नीचे दबा हुआ था। राजा ने दूसरे दिन सुबह होते ही दुर्लभ शिवलिंग की खोज प्रारंभ करवा दी। अथक प्रयास के बाद शिवलिंग की खोज पूरी हुई। उन्होने अपने महल के समीप तालाब के किनारे मंदिर बनवाकर उसमें स्थापित करवाने के लिए खुदाई प्रारंभ करवाई।
उत्खनन के दौरान दो शिवलिंग एवं एक नंदी की मूर्ति मुख्य शिवलिंग से चिपकी हुई मिली। इसे भी मंदिर में दुग्धेश्वर महादेव एवं नर्मदेश्वर महादेव एवं नंदीश्वर मूर्ति के नाम से स्थपित किया गया है। ग्रामीणों के द्वारा बताया जाता है कि उत्खन के समय सब्बल के प्रहार से शिवलिंग के आधे भाग से रक्त एवं आधे भाग से दूध निकलने लगा तथा तीव्र आकाशीय बिजली चमकने से स्थापना हेतु बना मंदिर ध्वस्त हो गया।
राजपुरोहितों ने शीघ्र शांति हेतु महारूद्र यज्ञ करवाने को कहा। विधिपूर्वक महारूद्र यज्ञ का आयोजन हुआ। इसके पूर्णाहुति के दिन समीप के विशाल चट्टान की मध्य खोह से ‘‘पाताल गंगा‘‘ निकल पड़ीं। जो वर्तमान में भी शिवलिंग की परिक्रमा करती हुई नीचे एक बड़ी टंकी में गिरती है। महारूद्र यज्ञ के समय केतकी झाड़ लगाये गये थे, जो आज भी मंदिर परिसर में लगे हुए हैं।
शुद्ध, मधुर एवं मौसम के अनुकुल रहता है जल-
यहाँ का जल शुद्ध, मधुर एवं मौसम के अनुकुल गर्मी में सुबह ठण्डा एवं ठण्ड में कुनकुना गर्म पानी प्राकृतिक वरदान से मिलता है। श्रद्धालु भक्त इसे ईश्वरीय कृपा मानते हैं। यहाँ का जल ‘‘गंगा जल ‘‘ तुल्य है, जल को बोतल में रखने पर कभी कीड़े नही पड़ते। शुद्धता एवं मधुर स्वाद हमेशा बना रहता है। इसलिए इसे ‘‘शिवगंगा‘‘ एवं ‘‘पाताल गंगा झरना‘‘ भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ के जल सेवन मात्र से शारीरिक व्याधियां दूर होती है। ज्योतिर्लिंग तुल्य शिवलिंग वाले इस धार्मिक स्थल को ‘‘सरगुजा का बाबा धाम‘‘ माना जाता है। पुराणों में देव शंकर के निवास स्थल पर बरगद, बेल, आम, पीपल एवं पाकड़ वृक्षों के होने का उल्लेखित है। यहां भी शिव मंदिर परिसर में सभी वृक्ष लगे हुए हैं।
वनवास काल में भगवान श्रीराम ने की थी इस शिवलिंग स्थापना –
एक किंवदंती है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल के समय इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। मान्यता हैं कि भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किये उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण जी भी साथ आये थे। शिव मंदिर के पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर नाले के समीप ‘‘सीता पांव‘‘ नामक स्थान भी है। यहीं पर माता सीता के पैर के निशान पानी पीने के दौरान एक पत्थर पड़े थे। इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बहता रहता है। स्थानीय लोग इसे ‘‘गोसांई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं।
यहाँ शिवलिंग के ऊपर कभी-कभी सर्प, केकड़े, बिच्छू एवं अन्य जलीय कीड़ों के साथ एक बड़ा काला नाग सर्प फन फैलाये भक्तों को दिखाई देता है। जो श्रद्धालुओं को कभी हानि नहीं पहुँचाते है। ये सभी भोले शंकर के गण माने जाते हैं। यहां विशाल धुरंधरनाथ शिवलिंग, राधा कृष्ण पंचमुखी मंदिर, नंदीश्वर की मूर्ति, हनुमान जी की प्रतिमा एवं राहु-केतु की मूर्ति स्थापित है।
सावन में कावरियों का लगता है तांता-
शिव भक्त भैयाथान तहसील के ग्राम पंचायत पहाड़ अमोरनी के सारासोर पावन स्थल से जल लेकर शिवपुर पहुचते हैं। यह स्थल जिला मुख्यालय सूरजपुर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर भैयाथान-प्रतापपुर रोड पर चन्द्रमेढ़ा से उत्तर दिशा में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर महान नदी पर्वत को दो भाग में चीरती हुई बहती है।
नदी का जल काफी सकरा और ऊंचे से नीचे जलधारा के रूप में गिरता है। बताया जाता जाता है कि पहले दोनों पर्वत एक थे। जनश्रुति है कि वनवास काल में श्रीराम, लक्ष्मण एवं माता सीता यहां आये थे। बिल द्वार गुफा और शंकर घाट अंबिकापुर से शिव भक्त कांवर ले कर शिवपुर बाबा धाम जलाभिषेक करने पहुंचते हैं।
बिल द्वार गुफा सरगुजा संभाग के प्रमुख ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल में से एक है। यह प्रतापपुर विकास खण्ड मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर खड़गवाँ ग्राम से पूर्व में लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर महान नदी के समीप स्थित एक तटीय गुफा है । जिसका द्वार या मुख उत्तर दिशा में है। इसके अंदर से लगातार स्वच्छ पानी निकलता रहता है। इस प्राकृतिक सुदंरता से परिपूर्ण गुफा को महरमुण्ड़ा ऋषि का आश्रम एवं पाण्डव कालीन भी बताया जाता है।
देऊर बाड़ी बैकोना का शिवलिंग-
शिवपुर मंदिर से लगभग एक किमी. की दूरी पर दक्षिण दिशा में बैकोना गाँव में नाले के समीप एक प्राचीन स्थल ‘‘देऊर बाड़ी’’ है। मान्यता है कि यह शिवलिंग बढ़ता है। बताया जाता है कि इसको एक दो बार काट कर अन्यत्र मंदिरों में स्थापित किया गया है। एक बार बैल मार कर तोड़ दिया था, फिर यह शिवलिंग वर्तमान समय में 26 इंच ऊँचा है।
यहां के प्राचीन अवशेषों से स्पष्ट होता है कि ‘‘देऊर बाड़ी’’ नामक जगह पर प्राचीन काल में कोई विशाल ‘‘देऊर मंदिर’’ या शिवालय रहा होगा। प्राकृतिक कारणों से देऊर मंदिर ध्वस्त हो गया होगा। छत्तीसगढ़ में अनेक स्थान पर ‘‘देऊर’’ नाम से प्राचीन मंदिर एवं टीलों के अवशेष देखने को मिलते हैं।
पारदेश्वर शिव मंदिर मे स्थापित है पारद शिवलिंग-
प्रतापपुर के बनखेता मुहल्ले में बांकी नदी के समीप छत्तीसगढ़ का इकलौता शिवलिंगाकार पारदेश्वर शिव मंदिर है। इस मंदिर में 151 किलो पारा धातु से निर्मित पारद- शिवलिंग की स्थापना 21 अक्टूबर 1996 को की गयी है। पारदेश्वर शिव मंदिर में स्थापित सभी मूर्तियां पारा धातु से ही निर्मित हैं। इनमें नंदी की मूर्ति 85 किलो, गणेश की मूर्ति 11 किलो, कार्तिकेय की मूर्ति 11 किलो, शिव की मूर्ति 21 किलो, पार्वती की मूर्ति 21 किलो एवं गुरुदेव निखलेश्वरानंद की मूर्ति 21 किलो से निर्मित है।
निर्णय रत्नाकर में उल्लेख है कि पारद निर्मित शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो संसार में हुआ है, और न हो सकता है। रसरत्नसमुच्य में पारद शिवलिंग के संबंध में बताया गया है कि पारद शिवलिंग की पूजा से तीनों लोकों में स्थित शिवलिंग की पूजा का फल प्राप्त होता है। विधाय रसलिंगयो भक्तियुक्तः समर्चयेत। जगत्रियलिंगानाँ पूजाफलमवाप्नुयात।। शिवरात्रि के पावन अवसर पर काफी संयख्या में श्रद्धालु भक्त इन मंदिरों में दर्शन करते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां के शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही मनवांक्षित वरदान के साथ मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है।
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