जन्म दिवस एवं पुण्यतिथि विशेष आलेख
भारत में एक जुलाई डॉक्टर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि सुप्रसिद्ध चिकित्सक और स्वाधीनता सेनानी डॉ. बिधान चंद्र राय की जन्मतिथि है। डॉक्टर बिधान चंद्र राय उन विरले लोगों में से है जिनका एक जुलाई की तिथि को जन्म हुआ, और अस्सी वर्ष बाद उसी एक जुलाई 1962 को उन्होंने संसार त्यागा। उनके सम्मान में उनके जन्म तिथि, एक जुलाई को डॉक्टर्स दिवस मनाने की घोषणा की गई। यह शुरुआत 1992 में हुई थी।
डा. राय राजनीति में मध्यम मार्गी थे, लेकिन स्वाधीनता संग्राम में वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस की शैली के समर्थक थे। उन दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन नहीं किया था। वे काँग्रेस के ही सदस्य थे। डॉक्टर बिधान चंद्र राय भी राष्ट्रीय हितों के लिए संघर्ष करने में विश्वास करते थे पर वह हिंसक नहीं थे। इसीलिए उन्होंने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ के बनने के बाद स्वराज्य पार्टी को पुन: सक्रिय करने का प्रयास किया।
डॉक्टर बिधान चंद्र राय की गणना बंगाल के अग्रणी स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में होती है। वे बंगाल के पहले मुख्यमंत्री थे। उनका नाम चिकित्सीय दुनियाँ में भी बहुत आदर से लिया जाता है। अपने चिकित्सीय धर्म निभाने के साथ स्वाधीनता संग्राम से भी जुड़े रहे।
उन दिनों बंगाल में क्राँतिकारी आँदोलन का बड़ा जोर था पर डॉक्टर बिधान चंद्र राय को लगा कि वे क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़ कर लंबी लड़ाई नहीं लड़ सकते। अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिये धीरज के साथ लंबी लड़ाई लड़ने की आवश्यकता है। इसलिए पहले वे चितरंजन दास जी से जुड़े और इनके माध्यम से ही वे गाँधी जी के संपर्क में आये। गाँधी जी के अनुयायी बने और अहिंसक आंदोलन में सक्रिय हो गये।
उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को खजांची रोड बांकीपुर, पटना बिहार में एक बंगाली परिवार में हुआ था तब बिहार और उड़ीसा भी बंगाल प्रांत का अंग हुआ करते थे। जिस परिवार में डॉक्टर बिधान चंद्र राय जन्में यह परिवार ब्रह्मसमाजी था।
पिता प्रकाशचंद्र राय डिप्टी मजिस्ट्रेट थे इसलिए घर में पढ़ाई का वातावरण था। उनकी आरंभिक शिक्षा पटना में हुई और बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करके वे 1901 में कलकत्ता आये। यहाँ से एम. डी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे अपने अध्ययन का व्यय भार स्वयं वहन करते थे।
छात्रवृत्ति के अतिरिक्त अस्पताल में डॉक्टर का सहयोगी कार्य करके अपना निर्वाह कर लेते थे। मेधावी इतने थे कि एल.एम.पी. के बाद एम.डी. परीक्षा दो वर्षों की अल्पावधि में ही उत्तीर्ण करने का कीर्तिमान बनाया, फिर उच्च अध्ययन के लिये इंग्लैंड गए।
छात्र जीवन में वे अनुशीलन समिति के संपर्क में आ गये थे। यह समिति बंगाल के युवाओं में स्वाभिमान जागरण का काम कर रही थी। इस कारण उनका आवेदन पत्र अस्वीकृत हो गया था। पुनः प्रयास किया और फिर बड़ी कठिनाई से प्रवेश पा सके। उन्होंने दो वर्षों में एम. आर. सी. पी. तथा एफ. आर. सी. एस. परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं और भारत लौट आये।
स्वदेश लौटकर डॉक्टर बिधान चंद्र राय ने सियालदह में अपना निजी चिकित्सालय खोला और स्वाराज्य पार्टी से जुड़ गये। यहाँ से उनकी राजनैतिक और सामाजिक यात्रा आरंभ होती है।
चिकित्सालय खोला और उन्होंने सन् 1923 में सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञ और तत्कालीन मंत्री के विरुद्ध बंगाल-विधान-परिषद् से चुनाव लड़ा और स्वराज्य पार्टी की सहायता से चुनाव जीता भी। राजनीति में यह उनका धमाकेदार प्रवेश था।
डॉक्टर बिधान चंद्र राय आगे चलकर देशबंधु चित्तरंजन दास के प्रमुख सहायक बने और अल्पावधि में ही उन्होंने बंगाल की राजनीति में प्रमुख स्थान बना लिया। 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की स्वागत समिति के वे महामंत्री थे।
डॉक्टर बिधान चंद्र राय राजनीति में मध्यम मार्गी थे। लेकिन स्वाधीनता संग्राम में वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस की शैली के समर्थक थे। उन दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन नहीं किया था। वे काँग्रेस के ही सदस्य थे। डॉक्टर बिधान चंद्र राय भी राष्ट्रीय हितों के लिए संघर्ष करने में विश्वास करते थे, पर हिंसक नहीं थे इसीलिए उन्होंने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ के बनने के बाद स्वराज्य पार्टी को पुन: सक्रिय करने का प्रयास किया।
1934 में डाक्टर अंसारी की अध्यक्षता में गठित पार्लिया मेंटरी के डा. राय प्रथम महामंत्री बनाए गए। महानिर्वाचन में कांग्रेस, देश के सात प्रदेशों में शासनारूढ़ हुई। यह उनके महामंत्रित्व की महान् सफलता थी। अक्टूबर 1934 में वे बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने गए।
अप्रैल 1939 में सुभाष बाबू का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र हुआ। तब गांधीजी की इच्छा थी कि डॉ. राय कार्यकारिणी में कोई बड़ा पद ले लें, पर उन दिनों कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी बहुत अधिक थी इससे डॉक्टर राय ने स्वीकार न करते हुए केवल कार्य कारिणी सदस्य ही रहे।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डॉ. राय के कांग्रेस में मतभेद हुये वे अंग्रेजों के सहयोग के लिये तैयार न थे। उन्होंने कार्यकारिणी समिति से त्यागपत्र दे दिया और अपनी डॉक्टरी में लग गये किन्तु 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ हुआ, डाक्टर राय पुनः सक्रिय हुये और बंदी बनाये गये।
स्वतंत्रता के बाद वे बंगाल में बनी अंतरिम सरकार में मंत्री बने और 23 जनवरी 1948 को वे बंगाल के मुख्यमंत्री बने और जीवन की अंतिम श्वाँस तक मुख्यमंत्री रहे। डॉक्टर बिधान चंद्र राय ने जब पद संभाला तो, बंगाल विभाजन की विभीषिका से जूझ रहा था। हिंसा और शरणार्थियों की बड़ी समस्या थी।
डाक्टर राय शांत और गंभीर स्वभाव के थे उन्होंने दृढ़ता से परिस्थित का सामना किया और अराजकता के नियंत्रण में सफल हुये, साथ ही अपने प्रशासन की प्रतिष्ठा और सम्मान को भी बरकरार रखे।
एक जुलाई 1962 को उनका निधन हुआ। उन्हे 1962 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। वे जो भी आय अर्जित करते थे वह सब दान कर दिया करते थे। इसीलिए उनके इस त्याग और समर्पण को देखते हुए एक जुलाई को उनका जन्मदिन डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
आलेख
श्री रमेश शर्मा,
भोपाल मध्य प्रदेश