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Tag Archives: हरिहर वैष्णव

जानिए बस्तर के घोटुल को

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी जनजातीय संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

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जानिए भंगाराम देवी हैं या देवता? 

बस्तर अंचल के कोंडागाँव जिले में रायपुर-जगदलपुर राजमार्ग पर कोंडागाँव से लगभग 52 किलोमीटर पहले या जगदलपुर की ओर से चलें तो जगदलपुर-रायपुर राजमार्ग पर जगदलपुर से 129 किलोमीटर दूर केसकाल नामक गाँव है। इसी गाँव के एक मोहल्ले सुरडोंगर से हो कर जाते हैं एक पहाड़ी की ओर जहाँ …

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झिटकू मिटकी : बस्तर की लोक कथा

ढाई आखर प्रेम का पढ़ कर पण्डित होने की बात तो सुनी थी किन्तु देवता होने की घटना हमें छत्तीसगढ़ के जनजाति बहुल अंचल बस्तर में ही सुनायी पड़ती है। केवल इतना ही नहीं किन्तु इनकी विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना भी होती है। इनमें से एक प्रेमी युगल है “झिटकू-मिटकी” और …

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नारी पर केन्द्रित बस्तर की महागाथा लछमी जगार

बस्तर अंचल अपनी सांस्कृतिक सम्पन्नता के लिए देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी चर्चित है। क्षेत्र चाहे रुपंकर कला का हो या कि प्रदर्शनकारी कलाओं या फिर मौखिक परम्परा का। प्रकृति के अवदान को कभी न भुलाने वाला बस्तर का जन मूलत: प्रकृति का उपासक है। उसके सभी पर्वों …

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बस्तर की मुरिया जनजाति का प्राचीन विश्वविद्यालय घोटुल

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी वनवासी संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

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लाला जगदलपुरी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हरिहर वैष्णव की कलम से

लाला जगदलपुरी बस्तर-साहित्याकाश के वे सूर्य हैं, जिनकी आभा से हिन्दी साहित्याकाश के कई नक्षत्र दीपित हुए और आज भी हो रहे हैं। ऐसे नक्षत्रों में शानी, डॉ. धनञ्जय वर्मा और लक्ष्मीनारायण “पयोधि” के नाम अग्रगण्य हैं। 17 दिसम्बर 1920 को जगदलपुर में जन्मे दण्डकारण्य के इस ऋषि, सन्त और …

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जानिए बस्तर की जनजातीय भाषा भतरी एवं उसकी व्याकरणिक संरचना

बस्तर की जनजातीय अथवा लोक-भाषाओं की चर्चा करते हुए अनायास ही इन लोक भाषाओं में प्रचलित रही लोक कथाओं की सुध आ जाती है। और फिर जब लोक कथाओं की बात हो तो इन पर बात करते हुए मुझे अपनी नानी स्व. चन्द्रवती वैष्णव (खोरखोसा) और छोटे नाना स्व. तुलसीदास …

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बस्तर की जनजातीय भाषा हल्बी के बारे में जानें

आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में यहाँ की मूल जनजातीय भाषा गोंडी (मैदानी गोंडी, अबुझमाड़ी गोंडी) के साथ-साथ हल्बी, भतरी, दोरली, धुरवी, परजी, चँडारी, लोहारी, पनकी, कोस्टी, बस्तरी, घड़वी, पारदी, अँदकुरी, मिरगानी, ओझी, बंजारी, लमानी, पण्डई या बामनी आदि जनजातीय एवं लोक-भाषाएँ बोली जाती रही हैं। प्राय: सभी लोक-भाषाएँ सम्बन्धित जनजातियों/जातियों …

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