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Tag Archives: सूर्यकांत गुप्ता ‘कांत’

कैसा कलयुग आया

भिखारी छंद में एक भिखारी की याचना कैसा कलयुग आया, घड़ा पाप का भरता। धर्म मर्म बिन समझे, मानुष लड़ता मरता।। लगता भगवन तेरी, माया ने भरमाया। नासमझों ने तेरे , रूपों को ठुकराया।। कल तक वे करते थे, हे प्रभु पूजा तेरी। सहसा कुछ लोगों ने, झट इनकी मति …

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मुक्त मुल्क हो गद्दारों से

राजनीति के गलियारे में, निंदा की लगती झड़ियाँ।आतंकी पोषित हैं किनके, जुड़ी हुई किनसे कड़ियाँ।।बंद करो घड़ियाली आँसू, सत्ता का लालच छोड़ो।बिखर रही है व्यर्थं यहाँ पर, गुँथी एकता की लड़ियाँ।। वह जुनून अब रहा नहीं क्यों, देश प्रेम का भाव नहीं।पनप रही कट्टरता केवल, लिए साथ अलगाव वहीं।।स्वर्ग धरा …

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कुंडलियाँ : सप्ताह की कविता

बनकर मृग मारीच वे, बिछा रहे भ्रम जाल।फँसती जातीं बेटियाँ, समझ न पातीं चाल।।समझ न पातीं चाल, चली असुरों ने कैसी।तिलक सुशोभित भाल, क्रियाएँ पंडित जैसी।।प्रश्रय पा घुसपैठ, राष्ट्र को छलने तनकर।बिछा रहे भ्रम जाल, हिरण सोने का बनकर।। (2)कर लें पालन सूत्र हम, सर्व धर्म समभाव।सत्य सनातन धर्म का, …

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