भारत ही स्वामीजी का महानतम भाव था। …भारत ही उनके हृदय में धड़कता था, भारत ही उनकी धमनियों में प्रवाहित होता था, भारत ही उनका दिवा-स्वप्न था और भारत ही उनकी सनक थी। इतना ही नहीं, वे स्वयं भारत बन गए थे। वे भारत की सजीव प्रतिमूर्ति थे। वे स्वयं …
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