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Tag Archives: राजिम

महानदी अपवाह तंत्र की व्यापारिक पथ प्रणाली : शोध पत्र

विश्व में प्राचीन सभ्यताओं का उदय नदियों की घाटी पर हुआ है। आरंभ में आदिम मानव के लिए स्वयं को लंबे समय तक सुरक्षित रख पाना बेहद ही चुनौती पूर्ण था। आदिम मानव का निवास जंगलों में नदी-नालों, झरनों एवं झीलों के आस पास रहा करता था। उसके लिए जंगली …

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प्राचीन स्थापत्य कला में हनुमान : छत्तीसगढ़

श्री हनुमान जन्मोत्सव विशेष आलेख हमारे देश में मूर्ति पूजा के रूप में महावीर हनुमान की पूजा अत्यधिक होती है क्योंकि प्रत्येक शहर, कस्बों तथा गांवों में भी हनुमान की पूजा का प्रचलन आज भी देखने को मिलता है। हनुमान त्रेतायुग में भगवान राम के परम भक्त तथा महाभारत के …

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वल्लभाचार्य की जन्मभूमि चम्पारण एवं चम्पेश्वर महादेव

पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …

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महर्षि महेश योगी की जन्म भूमि पाण्डुका

छत्तीसगढ़ की पावन धरा अनेक संतों एवं महापुरूषों की जन्म स्थली रही है। उन्हीं में से एक दिव्यात्मा महर्षि महेश योगी जी हैं। इनका जन्म पवित्र राजिम नगरी से कुछ दूरी पर स्थित पाण्डुका ग्राम में 12 जनवरी सन् 1918 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। जहां पर …

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दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में लक्ष्मी का प्रतिमांकन

प्राचीन काल में भारत में शक्ति उपासना सर्वत्र व्याप्त थी, जिसके प्रमाण हमें अनेक अभिलेखों, मुहरों, मुद्राओं, मंदिर स्थापत्य एवं मूर्तियों में दिखाई देते हैं। शैव धर्म में पार्वती या दुर्गा तथा वैष्णव धर्म में लक्ष्मी के रूप में देवी उपासना का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ। लक्ष्मी जी को समृद्धि सौभाग्य …

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बुद्ध प्रतिमाओं की मुद्राएं

भारत में एक दौर ऐसा आया कि भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं बहुतायत में निर्मित होने लगी। स्थानक बुद्ध से लेकर ध्यानस्थ बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित होने लगी। ज्ञात हो कि भारतीय शिल्पकला में हिन्दू एवं बौद्ध प्रतिमाओं में प्रमुखता से आसन एवं हस्त मुद्राएं अंकित की जाती है। हमें प्राचीन …

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छत्तीगढ़ अंचल की प्राचीन प्रतिमाओं का केश अलंकरण

छत्तीसगढ़ अंचल के पुरास्मारकों की प्रतिमाओं में विभिन्न तरह के केश अलंकरण दिखाई देते हैं। मंदिरों की भित्तियों में स्थापित प्रतिमाओं में कालखंड के अनुरुप स्त्री-पुरुष का केश अलंकरण दिखाई देता है। उत्त्खनन में केश संवारने के साधन प्राप्त होते हैं, जिनमें डमरु (बलौदाबाजार) से प्राप्त हाथी दांत का कंघा …

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जिसकी समृद्धि का उल्लेख व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में किया, क्यों उजड़ा वह नगर?

दक्षिण कोसल की एक प्रमुख पुरा धरोहर सिरपुर है, किसी जमाने में यह समृद्ध सर्वसुविधा युक्त विशाल एवं भव्य नगर हुआ करता था, जिसके प्रमाण आज हमें मिलते हैं। यह कास्मोपोलिटिन शहर शरभपुरियों एवं पाण्डुवंशियों की राजधानी रहा है और यहाँ प्रसिद्ध चीनी यात्रा ह्वेनसांग के भी कदम पड़े थे, …

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