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Tag Archives: गुरु शिष्य परम्परा

धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक : डॉ राधाकृष्णन

किसी भी देश को महान बनाने के लिए माता-पिता और शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।माता को प्रथम गुरु एवं परिवार को प्रथम पाठशाला कहा जाता है। माँ हमें दया, करुणा, आदर, क्षमा, परोपकार सहयोग, समानता आदि सभी मानवीय गुणों का भाव देती है। जिस प्रकार माता पिता शरीर का …

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प्राचीन गुरुकुल पद्धति और शिक्षा के सरोकार

‘‘या प्रथमा संस्कृति विश्वारा’’ अर्थात् भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। विश्व इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में विश्व के दृश्य पटल पर यदि किसी देश की संस्कृति ने पूर्णता एवं दिव्यता के साथ-साथ सामाजिक वैज्ञानिक, दार्शनिक, आर्थिक समृद्धि एवं सांस्कृतिक-नैतिक श्रैष्ठता को प्राप्त …

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सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय : गुरु पूर्णिमा विशेष

“गु अँधियारी जानिये, रु कहिये परकाश। मिटि अज्ञाने ज्ञान दे, गुरु नाम है तास।” कबीरदास ने गुरु के अर्थ और उनके बारे में अंनत लिखा है ।यहाँ तक की सभी महापुरुषों ने गुरु को दुर्लभ मनुष्य जीवन की अत्यंत अनिवार्य कड़ी बताया है। कबीर कहते है-“गुरु गोविंद दाऊ खड़े काके …

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गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का महान पर्व गुरु पूर्णिमा

“गुरु परम्परा से निरन्तर जो शक्ति प्राप्त होते आयी है, उसी के साथ अपना संयोग स्थापित करना होगा, क्योंकि वैराग्य और तीव्र मुमुक्षुत्व रहने पर भी गुरु के बिना कुछ नहीं हो सकेगा। शिष्य को चाहिए कि वह अपने गुरु को परामर्शदाता, दार्शनिक, सुहृदय और पथप्रदर्शक के रूप में अंगीकार …

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